अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

विषयों का जाल

अकस्मात् ही आया, मन में एक सवाल
विषयों का यह कैसा जाल
क्यों अनिवार्य है विषयों का संसार?

नानी की यह याद दिलाता
"गणित" क्यों है हमें रुलाता?
गुणा, भाग, जोड़, घटाव
क्यों आते जीवन में ऐसे पड़ाव?

विषय "अँग्रेज़ी" का पूछो न हाल
नव पीढ़ी के सिर चढ़ा बुखार
पश्चिमी भॅंवर में हम हैं घिरते
बिन इसके दो क़दम भी न रखते।

"इतिहास" की तो कुछ ऐसी है गाथा
अतीत की मरुभूमि पर हमें सुलाता
सुनी अनसुनी न जाने कितनी पुरानी
ढूँढता फिरता पत्थरों में फिर नई कहानी।

उधर "विज्ञान" नित करता अविष्कार
न चाह कर भी बच्चे कर लेते स्वीकार
माना जल, वायु, प्रकाश से है यह संसार
पर यह तो ईश का है सब चमत्कार।

"हिन्दी" भाषा का ना करना तिरस्कार
बंद दीवारों में ही सब करते हैं विचार
चाह कर भी यह न पा सका सम्मान
विषयों के चक्रव्यूह में -
फँसता गया नन्हीं सी जान!

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

आओ, पर्यावरण बचाएँ
|

सूरज ने जब आँख दिखाई। लगी झुलसने धरती माई॥…

आज के हम बच्चे
|

हम नन्हे-मुन्हे तारे, आओ टिमटिमाएँ सारे।…

एक यार दे दो ना भगवान
|

सुख में साथ नाचने को तो हज़ारों लोग हैं मेरे…

ऐसा जीवन आया था
|

घूमते हो जो तुम इन  रंग बिरंगे बाज़ारों…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

किशोर साहित्य कविता

लघुकथा

बाल साहित्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं