अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

योग के बहाने

गुप्ता साहब ने यूँ तो कभी "योगा" किया नहीं। पर भला आज कैसे न करते? हम तो कहते हैं ऐसे योग रोज़ हों जिसमें रोज़ाना कुछ न कुछ मिले। अब देखो न आज योग दिवस मनाया गया। किसी ने सूचना दी कि योग के लिए जाओगे तो टी-शर्ट, योगा मैट, बैग वग़ैरह मिलेगा। तो चल दिये अपने सहयोगियों को सामान मिलने के लालच में।

हमारे यहाँ तो वैसे भी परम्परा रही है आम के आम गुठलियों के दाम। शर्मा जी तो योगा के लिए भी गए और सामान भी मिला पर मारा-मारी बहुत थी। किसी को तो मात्र टी-शर्ट से काम चलाना पड़ा और किसी को मैट से ही। और किसी को सभी मिला। पर सब ख़ुश थे। भला फ़्री की चीज़ किसे नहीं भाती।

पड़ोस में रहने वाले चंदु ने कहा, "क्या कभी भोग दिवस भी मनाया जाता है? रोज़ कोई न कोई डे हो और लोगों को बदले में कुछ मिले। चाचा! अगर भोग दिवस होगा तो लोगों को तरह-तरह का खाने को मिलेगा। जिन्हें कभी वो चीज़ें नसीब न हुई वो मज़ा ले लेंगे। कभी फल दिवस तो कभी मेवा दिवस, ऐसे ही रोज़ाना दिवस मनाने चाहिए।"

तभी गुप्ता जी बोले पड़े, "तुम अच्छे निकले भला ऐसा भी हो सकता है क्या? योग का तो अपना अर्थ है पर भोग दिवस, फल दिवस, मेवा दिवस का क्या औचित्य। योग से तो फ़ायदा होगा पर भोग दिवस से तो लोगों का नुक़सान होगा लोग डायबीटीज़ के शिकार होंगे। सत्तर बीमारियाँ लगेगीं अलग से।"

शर्मा जी बीच में ही बोल पड़े, "सरकार बड़े सोच-समझ कर दिवस तय करती है। अब अगर योग दिवस के आलावा तुम्हारे बताये दिवस मनाने लगे तो क्या फ़ायदा होगा सरकार का और क्या फ़ायदा होगा भागीदारी कम्पनियों का?"

शर्मा जी थोड़ा समझाते हुए बोले, "अब देखो रिबोक के मैट, बैग मिले तो कम्पनी का कुछ तो फ़ायदा ही हुआ होगा। अब ऐसे में भोग दिवस में क्या किसान अपना अनाज मुफ़्त में जनता को बाँटेगे? नहीं न!"

अब कुछ-कुछ बात चंदु के समझ आने लगी थी। पर उसे टी-शर्ट मिलने की ख़ुशी थी। पर वो सोच रहा था, "काश ये योग गाँवों में भी होता और वहाँ लोगों को इस तरह सामान मिलता। पर वो लोग कौन सा रिबोक को जानते हैं तो कम्पनी भला क्यों बाँटती? और वैसे भी योग की ज़रूरत तो शहरों में है, गाँवो में कहाँ। वहाँ तो लोग जाते ही हैं सुबह-सुबह सैर पर।

पर हाँ अब जो शौचालय का अभियान पूरा हुआ तो आगे आने वाले सालों में वहाँ कुछ गुंजाईश ज़रूर होगी योग दिवस मनाने की। पर ख़ैर अभी तो नींद आ रही है। चलो, चला जाये सोने इस योग के चक्कर में चार बजे उठना पड़ गया।"

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

सामाजिक आलेख

पुस्तक समीक्षा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं