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विश्वरंग 2020 - कैनेडा सत्र नवम्बर 07

रिपोर्ट- आशा बर्मन 

कैनेडा के हिंदी-प्रेमियों के लिए 7 नवम्बर 2020 एक अविस्मरणीय दिन रहेगा। इसी दिन पहली बार कैनेडा में विश्व रंग कैनेडा 2020 का हिंदी उत्सव आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम के लिए हम लोग 'रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय' और उसके चांसलर डॉ संतोष चौबे जी के आभारी हैं। इस आयोजन में हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर बातचीत तथा प्रवासी भारतवासियों द्वारा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये गये।

सर्वप्रथम डॉक्टर शैलजा सक्सेना ने सभी दर्शकों का स्वागत करते हुए हमारी काउंसलाध्यक्ष श्रीमती अपूर्वा श्रीवास्तव जी को सभा के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया। उनके कथनानुसार हिंदी में ही भारत को एक सूत्र में बाँधने की क्षमता है भारत की सांस्कृतिक विविधता और सुंदरता को बनाए रखने के लिए भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना बहुत ज़रूरी है।

इसलिये इस प्रकार के आयोजनों की आवश्यकता है। इसके पश्चात् श्रीमती मानोशी चटर्जी ने अपने सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर वातावरण को गरिमामय बनाया। साथ ही लुई लेब्लांक जी ने सर्वशक्तिमान ईश्वर की प्रार्थना कर हमारे कार्यक्रम की सफलता की कामना की।

इसके बाद सुश्री करीना अलग ने एक कैनेडा के सम्बन्ध में एक वृत्तचित्र प्रस्तुत किया जिसमें यहाँ के सुन्दर प्राकृतिक वातावरण में कैनेडा की जीवन प्रणाली को दर्शाया गया था। सुश्री सिंधु नायर ने एक अत्यंत मनोहारी कत्थक नृत्य प्रस्तुत कर सबको मुग्ध कर दिया।

दूसरा सत्र था -'बिन पानी सब सून'। इसमें प्रोफ़ेसर डॉक्टर रोमिला वर्मा जी ने एक वृत्तचित्र के माध्यम से जीवन में जल की महत्ता तथा जल के अभाव व प्रदूषण की समस्या पर विचार किया और उन समस्याओं के समाधान की भी चर्चा की।

 

अपनी ज्ञानवर्धक वार्ता में उन्होंने बताया कि प्रकृति ने जिस जल को निःशुल्क दिया है, उसका उचित संरक्षण हमारा कर्तव्य है। अंत में, इस सत्र की दोनों प्रतिभागियों डॉक्टर रोमिला वर्मा तथा प्रभजोत जी ने स्वरचित कविताएँ भी पढ़ी जो अत्यंत मार्मिक थीं श्री संदीप कुमार जी ने सत्र का सुन्दर संचालन किया और वार्ता को सही दिशा और गति प्रदान की।

तीसरा सत्र था, ‘भारतवंशी प्रवासी लेखक’, जिसमें भारतीय मूल के कैनेडा साहित्यकारों ने भी कार्यक्रम की सुंदरता में चार चाँद लगाये। 

 इनमें पंजाबी, अँग्रेज़ी और गुजराती के लेखकों ने अपने साहित्यिक अवदान के बारे में दर्शकों को बताया। श्रीमती अंबिका शर्मा ने इस कार्यक्रम का बहुत सुंदर संचालन किया। सर्वप्रथम इसमें पंजाबी लेखिका श्रीमती सुरजीत कौर ने अपनी पंजाबी की कुछ कविताएँ पढ़ी और उन्होंने बताया कि किस प्रकार वे कई वर्षों से पंजाबी की संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं। मयंक भट्ट जी ने कहा कि उन्होंने अँग्रेज़ी में उपन्यास और लघु कथाएँ लिखी है। गुजराती भाषा की लेखिका नीता शैलेश जी ने बताया कि उन्होंने गुजराती भाषा में कई नाटक तथा लघु कथाएँ लिखी हैं। वे गुजराती भाषा की अनुवादक भी रही हैं तथा गुजराती संस्था से जुड़ी हुई हैं।

कार्यक्रम का चौथा सत्र था, ’हमारी नींव- वरिष्ठ लेखक’। इस सत्र में कैनेडा के हिंदी विकास के संबंध में चर्चा की गई। इसमें आधारशिला के रूप में कैनेडा के तीन वरिष्ठ साहित्यकारों से साक्षात्कार किया गया जो 50 वर्षों से अधिक समय से हिंदी के प्रचार प्रसार कार्य में संलग्न रहे और उन्होंने एक ऐसी आधारभूमि तैयार की जिसके कारण आज यहाँ हिंदी इतनी विकसित अवस्था में है। ये वरिष्ठ साहित्यकार थे आचार्य श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी जी तथा डॉक्टर भारतेंदु जी, जिन्होंने विशद रूप से अपनी साहित्यिक यात्रा के संबंध में चर्चा की।

उनके साथ थीं श्रीमती अर्चना दीप्ति कुमार, जो भारत के एक अत्यंत प्रतिष्ठित साहित्यिक परिवार से हैं और यहाँ की एक प्रसिद्ध लेखिका हैं। उन्होंने छठे दशक में कैनेडा के परिवेश में बसने की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। दीप्ति जी ने अपने काव्य पाठ से से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया इस सत्र का सुचारू संचालन किया श्रीमती आशा बर्मन ने जो स्वयं पिछले 40 वर्षों से टोरंटो में हिंदी के कार्यकलापों से जुड़ी हैं और कवयित्री भी हैं।

आयोजन के अंतिम सत्र में दो नाटक प्रस्तुत किए गए। पहले नाटक ‘अश्वत्थामा’ में निमेष नानावती जी का अभिनय अत्यंत सराहनीय था और दूसरा नाटक था भीष्म साहनी द्वारा रचित ‘चीफ की दावत’। इसमें जिन पात्रों में अभिनय किया था उनके नाम इस प्रकार हैं, विद्याभूषण धर, श्रीमती कृष्णा वर्मा, श्री निर्मल सिद्धू तथा श्रीमती लता पांडे। इन दोनों नाटकों की दर्शकों ने बहुत सराहना की।

‘विश्वरंग’ ने विश्व के सभी साहित्यकारों तथा कलाकारों को अपनी कला को अभिव्यक्त करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया, हम सारे विश्व से जुड़े। प्रसन्नता की बात है कि विभिन्न देशों के इन कार्यक्रमों में 25,000 से अधिक दर्शक जुड़े। यह हमारे लिए एक परम सौभाग्य की बात है, धन्यवाद ‘विश्वरंग’।
 

 

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