अगर शीशा दरका तो . . .
कथा साहित्य | कहानी संजीव जायसवाल ‘संजय’1 Jul 2025 (अंक: 280, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
ड्राइवर ने गाड़ी में ब्रेक लगाए तो मोनिका की तंद्रा भंग हुई। सामने 'ग्रीन-टावर' की गगनचुंबी इमारत खड़ी थी। उसकी 16वीं मंज़िल पर 'यूनिवर्स टेक्नोलॉजी' का रीजनल ऑफ़िस था। मोनिका ने पूरी बिल्डिंग को ऊपर से नीचे तक निहारा, फिर कार से उतरकर बिल्डिंग के भीतर दाख़िल हो गई।
16वीं मंज़िल पर मोनिका लिफ़्ट से बाहर निकली ही थी कि एक सुखद वातावरण का एहसास हुआ। वातानुकूलित कॉरिडोर और उसकी भव्य सज्जा कंपनी की हैसियत का एहसास करा रही थी। सामने बने कलात्मक-द्वार को खोल मोनिका ने अपने क़दम बड़े से हॉल के भीतर रखे ही थे कि वहाँ की भव्यता देखकर दंग रह गई। पूरे फ़र्श पर महँगा ईरानी कालीन बिछा था। दीवारों पर टँगी मशहूर कलाकारों की पेंटिंग्स और छत पर टँगे महँगे फ़ानूस कंपनी के प्रमोटरों की सुरुचि का परिचय दे रहे थे।
प्रवेश-द्वार के बायीं ओर आगंतुकों के बैठने के लिए आकर्षक सोफ़े रखे हुए थे और दूसरी ओर ग्रेनाइट पत्थरों से जगमगा रहा एक काउंटर बना हुआ था जिसके पीछे एक ख़ूबसूरत युवती बैठी हुई थी। उसके सामने रखे नेम-प्लेट पर सुनहरे अक्षरों पर लिखा हुआ था 'मार्था डिसिल्वा'।
मोनिका रिसेप्शनिस्ट की ओर बढ़ी ही थी कि वह मुस्कुरा उठी, “मिस मोनिका, देश की इस बेहतरीन कंपनी में आपका स्वागत है।”
“मिस मार्था, आप मुझे जानती हैं?” मोनिका आश्चर्य से भर उठी।
“हमारी नई 'क्रिएटिव-हेड' आज जॉइन करने वाली हैं, यह जानती थी। इसलिए फ़ेसबुक पर आपकी प्रोफ़ाइल फोटो चेक की थी। आपकी पर्सनैलिटी आपकी फोटो से कहीं ज़्यादा अट्रैक्टिव है,” मिस मार्था हल्का-सा हँसी तो उनकी ख़ूबसूरत दंत-पंक्तियाँ जगमगा उठीं।
“थैंक यू वेरी मच,” मोनिका ने भी हँसते हुए प्रतिउत्तर दिया, फिर बोली, “जॉइनिंग के लिए मुझे किसको रिपोर्ट करना होगा?”
“हमारे प्रोजेक्ट डायरेक्टर तीन दिन पहले ही प्रमोट होकर हेड-ऑफ़िस चले गए हैं। नए प्रोजेक्ट डायरेक्टर दो-तीन दिनों में आने वाले हैं। तब तक असिस्टेंट डायरेक्टर ओबेरॉय सर यहाँ के इंचार्ज हैं। आप उनको रिपोर्ट कर सकती हैं,” मिस मार्था ने बताया।
ओबेरॉय सर गंभीर व्यक्तित्व वाले क़रीब 50 वर्षीय व्यक्ति थे। उन्होंने मोनिका के अपॉइंटमेंट लेटर को देखा, फिर बोले, “मिस मोनिका, हाई-स्कूल से लेकर बी-टेक तक आप गोल्ड-मेडलिस्ट रही हैं। आपकी पिछली कंपनी का मैनेजर मेरा बैचमेट रहा है। वह आपकी क़ाबिलियत की बहुत तारीफ़ कर रहा था। वे लोग आपको खोना नहीं चाहते थे, लेकिन आपको देश की नामी कंपनी में आने का मौक़ा मिल रहा था इसलिए वे चाहकर भी आपको रोक नहीं पाए। मुझे विश्वास है कि आपकी प्रतिभा और क़ाबिलियत से इस कंपनी की तरक़्क़ी में भी चार चाँद लग जाएँगे।”
“सर, चार चाँद लगाने का वादा तो नहीं कर सकती, लेकिन इतनी कोशिश ज़रूर करूँगी कि मेरी वजह से कंपनी की चाँदनी में कुछ श्रीवृद्धि ज़रूर हो,” अपनी प्रशंसा से अभिभूत मोनिका ने कहा।
“दैट्स गुड, आपका कॉन्फ़िडेंस क़ाबिले तारीफ़ है,” ओबेरॉय सर शालीनता से मुस्कुराए, फिर बोले, “आप कॉफ़ी पसंद करिएगा या चाय?”
“सर, इसकी कोई ज़रूरत नहीं,” मोनिका हिचकिचाई।
“आप हमारी कंपनी में जॉइन करने आई हैं, इसलिए कॉफ़ी या चाय पिलाकर आपका स्वागत करना कंपनी के एटिकेट्स में आता है,” ओबेरॉय सर हल्का सा मुस्कुराए।
“ओके सर, कॉफ़ी मँगवा लीजिए,” मोनिका ने धीमे से कहा।
इंटरकॉम पर कॉफ़ी ऑर्डर करने के बाद ओबेरॉय सर मोनिका को ड्यूटी जॉइन करवाने लगे। काग़ज़ी औपचारिकताओं को पूरा करवाने के बाद हॉल में आकर उन्होंने कंपनी के अन्य कर्मचारियों से मोनिका का परिचय करवाया, फिर उसे लेकर उसके चैंबर में आ गए।
मोनिका को उसकी कुर्सी पर बैठने का इशारा करने के बाद उन्होंने सामने रखे लैपटॉप का पासवर्ड बताया, फिर बोले, “क़ायदे से शुरूआत में आपको कोई छोटा प्रोजेक्ट दिया जाना चाहिए, लेकिन आपकी क़ाबिलियत को देखते हुए मैं आपको एक कठिन प्रोजेक्ट दे रहा हूँ। यह अमेरिका के हमारे एक बड़े क्लाइंट का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसमें कुछ समस्याएँ हैं जिन्हें हमारा क्रिएटिव डिपार्टमेंट हल नहीं कर पा रहा है। अगर आपने यह समस्या हल कर दी तो पूरा डिपार्टमेंट शुरूआत से ही आपकी प्रतिभा का लोहा मान लेगा।”
“लेकिन सर, . .” मोनिका कहते-कहते रुक गई। पहले ही दिन ऐसा प्रोजेक्ट हाथ में लेने में उसे कुछ हिचक-सी हो रही थी, लेकिन तय नहीं कर पाई कि किस तरह इनकार करे।
ओबेरॉय सर उसके मनोभावों को समझ गए थे। अतः मुस्कुराते हुए बोले, “असफलता से डर लग रहा है?”
“सर, दरअसल वह पहला दिन था इसलिए थोड़ी हिचकिचाहट . . .”
“अपनी प्रतिभा के दम पर तुम आज इस बड़ी कंपनी की क्रिएटिव-हेड बन गई हो, लेकिन अभी तुम्हारी उम्र काफ़ी कम है। तुम्हारे डिपार्टमेंट के सभी लोगों की उम्र तुमसे ज़्यादा है। छोटी समझकर वे तुम्हें अंडर-एस्टीमेट करने की कोशिश कर सकते हैं, क्योंकि कर्मचारी अपने अधिकारी की इज़्ज़त तभी करते हैं जब उन्हें मालूम हो कि वह उनसे ज़्यादा क़ाबिलियत रखता है और तुम्हें अपनी क़ाबिलियत साबित करने का इससे अच्छा मौक़ा दोबारा नहीं मिलेगा,” ओबेरॉय सर ने समझाया।
मोनिका के चेहरे पर अभी भी असमंजस के चिह्न थे। यह देख उन्होंने कहा, “तुम्हारी जगह अगर आज मेरी बेटी ने जॉइन किया होता तो मैं उसे भी यही प्रोजेक्ट देता। याद रखो चुनौतियों से भागने वालों को कभी चैन नहीं मिलता। उनका सामना करने वाले ही सफलता की नई इबारत लिखते हैं।” इतना कहकर वे पल भर के लिए रुके, फिर उठते हुए बोले, “वैसे अगर तुम कहोगी तो मैं तुम्हारा प्रोजेक्ट बदल दूँगा।”
“नो सर, आई विल एक्सेप्ट दिस चैलेंज,” मोनिका की आँखें आत्मविश्वास से चमक उठीं। उसने इस चुनौती का सामना करने का निश्चय कर लिया था। लैपटॉप पर लॉग-इन करके उसने पहले अपना पासवर्ड बदला, फिर ओबेरॉय सर द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट का अध्ययन करने लगी। बीच-बीच में वह एक फ़ाइल में कुछ बातें नोट करती जा रही थी।
क़रीब दो घंटे बाद उसने वह फ़ाइल ओबेरॉय सर को मेल कर दी। थोड़ी ही देर में उनका उत्तर आ गया। मोनिका ने जितने भी पॉइंट नोट किए थे, उन्होंने सभी का सिलसिलेवार उत्तर दिया था। प्रोजेक्ट की तस्वीर अब काफ़ी हद तक उसकी आँखों के सामने साफ़ हो गई थी। उसकी उँगलियाँ तेज़ी से लैपटॉप पर चलने लगीं।
मोनिका ने अपने रहने का इंतज़ाम एक वर्किंग हॉस्टल में कर लिया था। शाम को जब वह वहाँ लौटी तो उसके दिमाग़ में उस प्रोजेक्ट की ही बातें चल रही थीं। उसने पूरी रिपोर्ट का बहुत गहराई से अध्ययन किया था, लेकिन कोई कमी ढूँढ़ नहीं पाई थी। किन्तु कोई न कोई कमी ज़रूर थी जिसकी वजह से प्रोजेक्ट पूरा होने पर कंपनी को फ़ायदा के बजाय घाटे का अनुमान हो रहा था। लेकिन वह कमी क्या है, मोनिका तय नहीं कर पा रही थी।
सोचते-सोचते वह सो गई। आधी रात के बाद नींद टूट गई। करवटें बदलते हुए वह प्रोजेक्ट के बारे में ही सोचती रही। अचानक उसके अंतर्मन में एक प्रकाश-सा कौंध पड़ा। ऐसा लगा जैसे अँधियारा छँट गया है। उसे कमी का पता चल चुका था। वह बिस्तर से उछल पड़ी। वह यह ख़बर जल्द से जल्द ओबेरॉय सर को देना चाहती थी। उन्हें बताना चाहती थी कि उन्होंने उसके ऊपर जो भरोसा जताया था वह उस पर पूरी तरह खरी उतरी है। सुबह सात बजे उसने उन्हें फोन मिला दिया।
“यह मिस मोनिका, सब ख़ैरियत तो है?” इतनी सुबह उसकी आवाज़ सुन ओबेरॉय सर चिंता से भर उठे।
“हाँ, सर, सब ख़ैरियत है। उस प्रोजेक्ट की कमी पता लग गई है। मैंने सोचा सबसे पहले आपको बताऊँ,” मोनिका का स्वर उत्साह से भरा हुआ था।
“मिस मोनिका, मैं घर पर ऑफ़िस की बात करना पसंद नहीं करता,” मिस्टर ओबेरॉय का स्वर शुष्क हो गया।
“सॉरी सर, . . . वो . . . मैं . . . ऑफ़िस . . . में बता दूँगी,” मोनिका हकला कर रह गई।
“आज आपने पहली बार फोन किया है, इसलिए चलिए बता दीजिए, लेकिन आगे से ध्यान रखिएगा,” मिस्टर ओबेरॉय का स्वर अभी भी शुष्क था।
“सर . . . वो . . . दरअसल . . . मैंने देखा कि अपना यह प्रोजेक्ट पाँच साल में पूरा होगा, लेकिन कॉस्टिंग को हमने इन्फ़्लेशन रेट से नहीं जोड़ा है। छोटी-सी इस ग़लती के ही कारण हमारे मुनाफ़े का अनुमान घाटे में बदला जा रहा है,” मोनिका ने डरते-डरते अपनी बात पूरी की।
“यह छोटी नहीं बहुत बड़ी ग़लती है,” ओबेरॉय सर उछल-से पड़े, “जो ग़लती कंपनी के बड़े-बड़े दिग्गज नहीं पकड़ सके उसे आपने एक ही दिन में पकड़ लिया। आई एम प्राउड ऑफ़ यू एंड सॉरी फ़ॉर माई बिहेवियर।”
“इट्स ओके, सर,” मोनिका ने राहत की साँस ली, फिर बोली, “मैं ऑफ़िस आने से पहले पूरी कॉस्टिंग रिवाइज़ कर लेती हूँ। आप उसे देख लीजिएगा।”
“अब आप आराम से तैयार होइए। अब यह काम ऑफ़िस आने से पहले मैं पूरा करूँगा। यही मेरा प्रायश्चित होगा,” ओबेरॉय सर ने हँसते हुए कुछ इस अंदाज़ में कहा कि मोनिका भी हँस पड़ी।
वह जब ऑफ़िस पहुँची तो सभी उसी का इंतज़ार कर रहे थे। ओबेरॉय सर ने प्रोजेक्ट की लागत रिवाइज़ कर दी थी जिससे अब घाटे के बजाय उस प्रोजेक्ट पर क़रीब 5 लाख डॉलर का मुनाफ़ा हो रहा था। उन्होंने रिवाइज़्ड रिपोर्ट की कॉपी सभी सहयोगियों को घर से ही मेल कर दी थी।
“मैम, रियली यू आर जीनियस। जो काम हमारी पूरी टीम इतने दिनों से नहीं कर सकी वह आपने एक दिन में ही कर दिया। हमें आप जैसी प्रतिभाशाली ऑफ़िसर के अंडर काम करने का मौक़ा मिल रहा है, यह सोचकर ही हम सब गौरवान्वित हैं,” टेक्निकल एडवाइज़र रमन भट्टाचार्य की आँखों में मोनिका के प्रति सम्मान झलक रहा था।
“सर, मैडम ने एक ही दिन में कंपनी को 5 लाख डॉलर का लाभ प्रस्तावित कर दिया है। इन्हें तो आउट ऑफ़ टर्न इंक्रीमेंट देने की रिकमेंडेशन करनी चाहिए,” सीनियर डिज़ाइनर महेश शर्मा ने प्रस्ताव रखा।
“ऐसी रिकमेंडेशन करने की पॉवर केवल प्रोजेक्ट डायरेक्टर के पास होती है। दो-तीन दिनों में वह जॉइन करने वाले हैं। मैं आप सबकी बात उनके सामने रखूँगा,” ओबेरॉय सर ने आश्वस्त किया।
मोनिका की ख़ुशियों का ठिकाना न था। दो साल पहले जब उसने मुंबई की अपनी नौकरी छोड़ी थी तब बुरी तरह टूट चुकी थी। उसका आत्मविश्वास भी लगभग समाप्त हो चुका था। छह महीने निराशा के गर्त में डूबने के बाद वह कोलकाता चली आई थी। नया शहर, नई कंपनी और नए लोगों के बीच उसका खोया हुआ आत्मविश्वास धीरे-धीरे वापस आ गया था। डेढ़ साल कोलकाता में रहने के बाद वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए बैंगलोर आ गई थी। किन्तु उसके अंदर एक डर समाया हुआ था कि इतनी बड़ी कंपनी में अनुभवी व्यक्तियों के बीच कहीं उसकी प्रतिभा दब न जाए, लेकिन आज उसका आत्मविश्वास नई ऊँचाइयों पर पहुँच गया था। उसे लग रहा था कि जीवन में अब हर वह मंज़िल हासिल कर सकेगी जिसके सपने कभी उसने देखे थे।
ओबेरॉय सर ने प्रोजेक्ट रिपोर्ट हेड-ऑफ़िस भेज दी थी। वहाँ से वह रिपोर्ट क्लाइंट को चली गई। क्लाइंट को रिपोर्ट बहुत पसंद आई और उसने जल्द से जल्द ‘एमओयू’ (मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग) तैयार करने के लिए कहा ताकि उस पर हस्ताक्षर किए जा सकें। मोनिका ने यह ज़िम्मेदारी भी सँभाल ली। देर रात तक काम कर-करके उसने तीन दिनों में ‘एमओयू’ तैयार कर दिया था। नींद पूरी न होने के कारण उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था, इसलिए उसने अगले दिन की छुट्टी ले ली।
उसी दिन नए प्रोजेक्ट डायरेक्टर मिस्टर आर.के. पाहवा ने जॉइन कर लिया था। ओबेरॉय सर ने मोनिका को बताया कि पाहवा साहब तुम्हारे काम से काफ़ी प्रभावित हैं और क्रिएटिव डिपार्टमेंट की सिफ़ारिश पर उन्होंने कल ही तुम्हें आउट-ऑफ़-टर्न इंक्रीमेंट देने की सिफ़ारिश भी कर दी है। वे इस प्रोजेक्ट के बारे में तुमसे कुछ बातें करना चाहते हैं।
ख़ुशी से झूमती मोनिका प्रोजेक्ट डायरेक्टर के चैंबर में पहुँची, लेकिन सामने कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को देखते ही बुरी तरह चौंक पड़ी, “रमन तुम!”
“हाँ मैं?”
“तुमने अपना नाम आर.के. पाहवा कब से रख लिया?” मोनिका ने अपने माथे पर छलक आए पसीने को पोंछते हुए कहा।
“मेरा पूरा नाम रमन कुमार पाहवा ही है और मैंने कल ही यहाँ प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में जॉइन किया है,” रमन के स्वर से गर्व भरी अनुभूति झलक उठी।
“और अपनी अधूरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए तुमने कल ही मेरा आउट-ऑफ़-टर्न इंक्रीमेंट रिकमेंड कर दिया,” मोनिका का स्वर दर्द से भीग उठा।
“तुम मुझे ग़लत समझ रही हो। मैंने वह रिकमेंडेशन तुम्हारी क़ाबिलियत देखकर की है,” रमन ने कहा।
“तुम्हें मैं अच्छी तरह समझ चुकी हूँ, अब और कुछ समझने को शेष नहीं है,” मोनिका ने हाँफते हुए कहा। उसकी साँस अचानक ही उखड़ने लगी थी और आस-पास की चीज़ें घूमती नज़र आने लगीं। ऐसा लग रहा था कि वह चक्कर खाकर गिर पड़ेगी। उसने दीवार का सहारा लेने की कोशिश की।
“मोनिका प्लीज़, कुर्सी पर बैठ जाओ,” रमन ने तेज़ी से आगे बढ़कर मोनिका को थाम लिया वरना वह गिर ही जाती।
“हाथ मत लगाओ मुझे,” मोनिका नफ़रत से काँप उठी।
“नहीं लगाऊँगा मगर तुम कुर्सी पर बैठ जाओ और अपने को सँभालने की कोशिश करो। यह ऑफ़िस है जहाँ और लोग भी मौजूद हैं,” रमन ने लगभग ज़बरदस्ती उसे कुर्सी पर बैठा दिया और सामने रखा पानी का गिलास उसकी ओर बढ़ा दिया।
मोनिका ने एक साँस में गिलास ख़ाली कर दिया। उसे मेज़ पर रखकर वह झटके से उठी और बिना कुछ कहे बाहर चली गई।
अपने चैंबर में आकर वह निढाल हो कुर्सी पर गिर पड़ी। जिस अतीत से पीछा छुड़ाने के लिए उसने अपना शहर छोड़ा था आज वह अचानक फिर सामने आ खड़ा हुआ था।
उसे आज भी वह दिन याद है जब वह मुंबई में एक फ़्लैट को देखकर निकल रही थी तो सामने उसके ऑफ़िस का सहकर्मी रमन खड़ा था।
“क्या हुआ फ़्लैट पसंद नहीं आया?” रमन ने पूछा।
“फ़्लैट तो पसंद आया, लेकिन किराया नहीं। हर जगह की तरह यहाँ भी मेरी जेब से ज़्यादा भारी है,” मोनिका ने हँसते हुए बताया, फिर बोली, “तुम देख लो शायद तुम्हें पसंद आ जाए।”
“किराया कितना है?” रमन ने पूछा।
“चालीस हज़ार। तुम दे सकते हो?” मोनिका ने कहा।
“हाँ, इतनी तनख़्वाह है कि चालीस हज़ार किराया दे सकता हूँ, लेकिन उसके बाद पूरे महीने खाना तुम्हारे घर खाना पड़ेगा,” रमन ने कुछ ऐसे अंदाज़ में कहा कि मोनिका खिलखिला कर हँस पड़ी।
दोनों एक कॉफ़ी हाउस में आ गए। उनका ऑफ़िस मरीन ड्राइव में था। वह मुंबई का सबसे पॉश इलाक़ा है। इसलिए उसके आस-पास की कॉलोनियों में फ़्लैट का किराया बहुत ज़्यादा था। अभी दोनों नवी मुंबई में रहते थे, लेकिन वहाँ से आने-जाने में डेढ़-दो घंटे का समय सुबह और इतना ही शाम को लग जाता था। फ़्लैट तक पहुँचते-पहुँचते वे थककर चूर हो जाते थे।
“मोनिका, अगर तुम चाहो तो हम दोनों मिलकर यह फ़्लैट ले सकते हैं,” रमन ने कॉफ़ी का घूँट भरते हुए कहा।
“क्या मतलब?” अप्रत्याशित प्रस्ताव पर मोनिका ने उसे घूर कर देखा।
“मुझे ग़लत मत समझो। इस फ़्लैट से हम लोग दस मिनट में ऑफ़िस पहुँच जाएँगे और पैसे भी काफ़ी बच जाया करेंगे। इससे ज़िन्दगी काफ़ी आसान हो जाएगी,” रमन ने सफ़ाई दी।
“लेकिन तुमने यह सोचा भी कैसे कि मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे फ़्लैट में रह सकती हूँ?” मोनिका के स्वर में ग़ुस्सा अभी भी झलक रहा था।
“तुम्हारा सोचना भी सही है। एक फ़्लैट में तुम्हें मुझसे ख़तरा हो सकता है, लेकिन जिस बिल्डिंग में तुम रहती हो क्या उसमें बग़ल के फ़्लैट में रहने वाले अनजान व्यक्ति से तुम्हें ख़तरा नहीं है? क्या मौक़ा देखकर वह तुम्हारे फ़्लैट में नहीं घुस सकता? वहाँ सुरक्षा की क्या गारंटी है तुम्हारी? बस एक दरवाज़ा! तो वह दरवाज़ा तो फ़्लैट के हर कमरे में होता है। तुम अपने कमरे का दरवाज़ा भीतर से बंद करके रह सकती हो। रही बात मेरी तो मैं तुम्हारा सहकर्मी हूँ। तुम मुझे अच्छी तरह जानती हो। मैं किसी अनजान पड़ोसी से कम ख़तरनाक होऊँगा,” रमन ने कहा तो मोनिका की आँखों का क्रोध कम होने लगा।
रमन उसे काफ़ी देर तक फायदे-नुकसान के बारे में समझाता रहा। आख़िर में मोनिका उसके साथ एक फ़्लैट में रहने के लिए राज़ी हो गई। ऑफ़िस से फ़्लैट में पहुँचते ही वह अपने कमरे का दरवाज़ा भीतर से बंद कर लेती। रमन भी अपने कमरे में ही रहता। धीरे-धीरे उसका डर कम होने लगा। दोनों एक ही टैक्सी से ऑफ़िस आते-जाते, इससे भी काफ़ी बचत हो जाती थी।
एक दिन रमन ने कहा, “होटल का खाना खा-खाकर मेरा हाज़मा गड़बड़ा रहा है। मैं खाना बहुत अच्छा बना लेता हूँ। अगर तुम्हें दिक़्क़त न हो तो मैं किचन का सामान ले आऊँ और खाना बना लिया करूँ?”
“तुम खाना बनाओगे?” मोनिका ने आश्चर्य से पूछा।
“हाँ,” रमन ने सिर हिलाया, फिर बोला, “अगर कहोगी तो तुम्हारे लिए भी बना दिया करूँगा।”
“उसकी ज़रूरत नहीं है। चलो किचन का सामान ले आते हैं। मिल-जुलकर कुछ बना लिया करेंगे। होटल का खा-खाकर मैं भी ऊब चुकी हूँ,” मोनिका हँस पड़ी।
उस दिन पसीने से लथपथ रमन को आटा गूँथते देख मोनिका को पहली बार उस पर प्यार आने लगा था। रमन अपने मधुर व्यवहार से दिन-प्रतिदिन उस पर छाता चला जा रहा था। दोनों अब वीकेंड में साथ-साथ घूमने भी जाने लगे थे। एक दिन कमज़ोर क्षणों में वह रमन का आमंत्रण अस्वीकार न कर सकी और लक्ष्मण रेखा को पार कर गई।
होश आने पर वह सिसक कर रोने लगी तो रमन ने उसे बाँहों में समेटते हुए समझाया कि अब वे दोनों अजनबी नहीं रहे। अगर मोनिका साथ दे तो वह जीवन भर इसी तरह उसका साथ निभा सकता है। मोनिका ने अपना चेहरा रमन के चौड़े सीने में छुपा लिया।
उस दिन के बाद से दोनों की दुनिया ही बदल गई। प्यार में डूबे पंछियों को जैसे दुनिया का होश ही न रहा। रमन, मोनिका की ख़ुशियों का पूरा ध्यान रखता और वह भी रमन को पूरी ख़ुशी देने की कोशिश करती।
ख़ुशियों भरे दिन एक-एक करके बीतते जा रहे थे। मोनिका पंख लगाकर आसमान में उड़ रही थी। अचानक एक दिन झटका लगा और वह लहुलुहान होकर गिर पड़ी। रमन इस बार अपने घर लखनऊ से वापस आया तो पता चला की उसकी शादी तय हो गई है। यह जान मोनिका फट पड़ी थी।
“मेरी मजबूरी समझने की कोशिश करो। माँ-पापा ने यह शादी ज़बरदस्ती तय कर दी है। लेकिन तुम चिंता मत करो। नमिता लखनऊ में सेवा करने के लिए उनके पास ही रहेगी। हमारा तुम्हारा सम्बन्ध पहले के ही तरह बना रहेगा। हम पहले की ही तरह साथ-साथ इस फ़्लैट में रहेंगे,” रमन ने समझाने की कोशिश की।
“यानि तुम मुझे अपनी रखैल बनाकर रखना चाहते हो?” मोनिका तड़प उठी।
“छिः, हमारे रिश्ते को ऐसा घिनौना नाम मत दो। हम . . .”
“रिश्ता! कैसा रिश्ता? प्यार का, व्यभिचार का या नाजायज़ सम्बन्धों का?” मोनिका उसकी बात काट चीख पड़ी, “मैं इस रिश्ते और तुम्हारी, दोनों की सच्चाई अच्छी तरह समझ गई हूँ। मैं अब एक पल भी तुम्हारे साथ नहीं रह सकती।”
मोनिका ने उसी दिन वह फ़्लैट छोड़ दिया। अगले दिन उसने उस कंपनी से भी इस्तीफ़ा दे दिया था। रमन के धोखे से वह बुरी तरह टूट गई थी। छह महीनों तक यूँ-ही भटकती रही, फिर कोलकाता आकर एक कंपनी जॉइन कर ली।
घाव चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, धीरे-धीरे भर ही जाता है। काम की व्यस्तता के तले मोनिका ने अपने को सँभाल लिया था। डेढ़ साल उस कंपनी में काम करने के बाद चार दिन पहले ही वह 'यूनिवर्स टेक्नोलॉजी' के बैंगलोर ऑफ़िस में ‘क्रिएटिव-हेड’ बनकर आई थी। पहले ही दिन कंपनी में उसकी प्रतिभा का सिक्का जम गया था। मोनिका की आँखों में सुनहरे भविष्य के सपने जगमगाने लगे थे, लेकिन अचानक सब कुछ एक बार बिखर गया था।
रमन के अधीन काम करना तो दूर वह उस जगह भी काम नहीं कर सकती जहाँ उसकी छाया भी पड़ी हो। सोचते-सोचते मोनिका का शरीर क्रोध की अधिकता से काँपने लगा। ऐसी हालत में ऑफ़िस में रुक पाना सम्भव नहीं था। उसने इंटरकॉम का बटन दबा ओबेरॉय सर से कहा, “मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही। मैं छुट्टी चाहती हूँ।”
“लगता है तुम्हारी नींद अभी पूरी नहीं हुई है। घर जाकर आराम करो। मैं यहाँ सब सँभाल लूँगा,” ओबेरॉय साहब ने इजाज़त दे दी।
घर आ मोनिका बिस्तर पर गिर पड़ी। आँसुओं से उसका चेहरा गीला हो गया था। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? अगर इतनी जल्दी इस कंपनी से भी इस्तीफ़ा दे देगी तो दूसरी नौकरी जल्दी मिल पाना सम्भव न होगा। पूरी रात काँटों पर करवटें बदलते बीती।
अगले दिन मन में अनेकों आशंकाएँ लिए वह ऑफ़िस पहुँची। रास्ते भर सोचती रही कि अगर रमन ने कुछ कहा तो वह क्या-क्या कहेगी। किन्तु उसकी आशंकाओं के विपरीत रमन का व्यवहार बिल्कुल शांत था। उसके चेहरे को देखकर लग ही नहीं रहा था कि उसकी वजह से मोनिका के जीवन में इतना बड़ा तूफ़ान आ गया है।
दो-तीन दिनों तक मोनिका आशंकित रही, फिर वह भी सामान्य होने लगी। धीरे-धीरे एक महीना बीत गया। एक बार किसी ज़रूरी काम से रमन ने उसे अपने चैंबर में बुलाया। न चाहते हुए भी मोनिका को जाना पड़ा किन्तु रमन का व्यवहार पूरी तरह संयमित था। शायद उसे अपनी ग़लती का एहसास हो चुका था और अब वह सुधरने का प्रयत्न कर रहा था। उस दिन के बाद से मोनिका की आशंका बिल्कुल समाप्त हो गई और वह महत्त्वपूर्ण मामलों पर सलाह करने उसके पास जाने लगी।
एक बार मोनिका की बनाई एक रिपोर्ट में एक बड़ी ग़लती हो गई थी। जिस पर हेड-ऑफ़िस ने उसका कड़ा स्पष्टीकरण माँग लिया था। रमन ने जब उसे हेड-ऑफ़िस की मेल दिखाई तो वह घबरा उठी।
“मेरे रहते तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं। मैं सब सँभाल लूँगा,” कहते हुए रमन ने अपना हाथ मोनिका के हाथ पर रख दिया। उसकी आँखों में वासना के डोरे तैरने लगे थे। शायद उसे ऐसे ही मौक़े की तलाश थी।
मोनिका ने अपना हाथ वापस खींचा तो रमन ने उसे मज़बूती से थाम लिया। मोनिका कसमसा उठी तो रमन ने कहा, “मोनिका, मुझे ग़ैर मत समझो। मैं आज भी तुम्हें उतना ही प्यार करता हूँ और हर तरह से तुम्हारा ख़्याल रखने को तैयार हूँ।”
“हाथ छोड़िए, वरना मैं शोर मचा दूँगी,” मोनिका के नथुने क्रोध से फड़क उठे।
“अगर तुमने ऐसा किया तो मैं सभी को बता दूँगा कि तुम मेरे साथ रातें बिताती थीं,” रमन बेशर्मी से हँसा, फिर बोला, “याद रखो औरत की इज़्ज़त शीशे की तरह होती है। शीशा अगर एक बार दरक गया तो फिर दोबारा नहीं जुड़ता है।”
जैसे अनेकों ज्वालामुखी एक साथ धधक उठे हों। जैसे सैकड़ों बिजलियाँ एक साथ गिर पड़ी हों। ऐसा लगा जैसे कानों में पिघला हुआ शीशा उड़ेल दिया गया है। मोनिका को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि रमन इतना नीचे भी गिर सकता है। किसी तरह हाथ छुड़ाकर वह वहाँ से चली आई। उसने उस दिन भी छुट्टी ले ली।
किन्तु घर आकर भी उसे चैन नहीं मिला। रमन के शब्द उसके कानों में अंगारों की तरह दहक रहे थे। ऐसी हालत में इस कंपनी में रुक पाना सम्भव न था। वह कल ही इस कंपनी से इस्तीफ़ा दे देगी। मोनिका ने सोचा पर अगले ही पल उसकी सोच को झटका-सा लगा। उसके और रमन के बीच जो कुछ भी हुआ था वह आपसी सहमति से हुआ था, फिर हर जगह से इस्तीफ़ा देकर वह ही क्यों भागे? महज़ इसलिए कि वह एक लड़की है? अगर आज यहाँ से भागी और कल दूसरी जगह भी रमन मिल गया तो क्या होगा? उसके अंतर्मन में ओबेरॉय साहब के स्वर गूँजने लगे, ‘चुनौतियों से भागने वालों को कभी चैन नहीं मिलता। उनका सामना करने वाले ही सफलता की नई इबारत लिखते हैं।’ मोनिका ने तय कर लिया कि इस बार वह पलायन नहीं करेगी और रमन का डटकर मुक़ाबला करेगी। उसको उसी की भाषा में जवाब देगी।
अगले दिन वह हमेशा की तरह ऑफ़िस पहुँची। रमन कंपनी की गाड़ी से घर आता-जाता था। ड्राइवर से पता चल गया कि उसकी पत्नी नमिता भी बैंगलोर के एक ऑफ़िस में काम करती है। किन्तु ऑफ़िस दूर होने के कारण वह रमन से क़रीब आधा घंटा बाद घर पहुँचती है। पूरा दिन वह रमन का सामना करने से बचती रही।
उस दिन शाम रमन ने घर पहुँचकर अपना लैपटॉप बैग रखा ही था कि दरवाज़े की घंटी बज उठी। उसने दरवाज़ा खोला तो मोनिका सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। वह बुरी तरह चौंक पड़ा, “तुम यहाँ क्या करने आई हो?”
“तुम्हारी इच्छा पूरी करने,” मोनिका ने अपनी आँखें रमन के चेहरे पर गड़ा दीं।
“लेकिन तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था,” रमन घबराकर इधर-उधर देखता हुआ बोला।
उसकी हालत से बेपरवाह मोनिका फ़्लैट के भीतर घुस आई और बहुत अधिकार के साथ बोली, “तुम्हारा फ़्लैट तो बहुत बड़ा है। एक कमरे में नमिता रह लेगी और दूसरी में मैं।”
“यह कैसे हो सकता है?” रमन उछल सा पड़ा, फिर अपने को सँभालने की कोशिश करते हुए बोला, “प्लीज़, अभी तुम जाओ यहाँ से। हम इस बारे में बाद में बात कर लेंगे।”
“बाद में क्यों? नमिता के आने में अभी क़रीब 20 मिनट बाक़ी हैं। इतना समय पर्याप्त है। कपड़े बदलकर बेडरूम में आ जाओ। मैं तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ,” मोनिका उसके बेडरूम की ओर बढ़ते हुए मुस्कुराई।
अब तो रमन के होश उड़ गए। वह हड़बड़ाते हुए बोला, “प्लीज़, चली जाओ यहाँ से। अगर नमिता आ गई तो मेरी ज़िन्दगी ख़राब हो जाएगी।”
“अगर अपनी ज़िन्दगी ख़राब होने का इतना ही ख़ौफ़ है तो दूसरे की ज़िन्दगी ख़राब करने का हक़ तुम्हें किसने दिया है?” मोनिका की आँखों में अचानक अंगारे दहक़ उठे और वह दाँत पीसते हुए बोली, “औरत चाहे कितनी भी प्रतिभाशाली क्यों न हो, तुम लोगों के लिए उसकी हैसियत सेक्स-टॉय से ज़्यादा नहीं है। रज़ामंदी हो या ज़बरदस्ती, तुम्हें उसे अपनी हवस का शिकार बनाना ही है। लेकिन आज मैं तुम्हें बताऊँगी कि औरत केवल खिलौना नहीं है, बल्कि वह शिकारी को उसके ही जाल में फँसाना भी जानती है।”
सड़ाक . . . सड़ाक . . . सड़ाक . . . जैसे नंगी पीठ पर चाबुक पड़ रहे हों। वह अपने ही बिछाए जाल में फँस जाएगा, रमन ने ऐसी स्थिति की स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी। उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। ऐसा लग रहा था जैसे उसका सारा रक्त चूस लिया गया हो। मोनिका की आँखों में दहक़ते अंगारों को देख उसकी रूह काँप उठी और वह हाथ जोड़ गिड़गिड़ाने लगा, “मुझसे ग़लती हो गई। प्लीज़, मुझे माफ़ कर दो और चली जाओ यहाँ से। अगर नमिता को पता चल गया तो मेरे साथ उसकी भी ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी। इस सबमें उस बेचारी का कोई दोष नहीं है।”
“ठीक कहते हो। इसमें उसका कोई दोष नहीं है,” मोनिका ने पल भर के लिए कुछ सोचा, फिर मुट्ठियाँ भींचते हुए बोली, “सिर्फ एक शर्त पर तुम्हें माफ़ी मिल सकती है।”
“मुझे हर शर्त मंज़ूर है,” रमन ने फ़ौरन हामी भर दी।
“तुम्हें कल ही इस कंपनी से इस्तीफ़ा देना होगा,” मोनिका ने शर्त बताई।
“लेकिन यह कैसे हो सकता है?” रमन बुरी तरह उछल पड़ा।
“मिस्टर रमन, तुमने सही कहा था कि औरत की इज़्ज़त शीशे की तरह होती है। एक बार दरक गई तो दोबारा नहीं जुड़ सकती, लेकिन याद रखना कि अगर शीशा दरकेगा तो उसमें तुम्हें अपनी सूरत भी खंडित ही नज़र आएगी,” मोनिका ने पल भर के लिए रुक कर रमन के चेहरे पर नफ़रत भरी दृष्टि डाली, फिर एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोली, “अगर कल ऑफ़िस आने के पाँच मिनट के भीतर तुमने इस्तीफ़ा नहीं दिया तो मैं सबको बता दूँगी कि शादी का झाँसा देकर तुम मेरा शोषण करते रहे थे और आज भी अपनी हवस पूरी करने के लिए दबाव बना रहे हो। उसके बाद तुम्हारा क्या हश्र होगा तुम अच्छी तरह समझ सकते हो क्योंकि देश के क़ानून की जानकारी तुम्हें ज़रूर होगी।”
“लेकिन इस तरह . . . तो . . . मेरा . . . कैरियर बर्बाद हो . . . जाएगा,” रमन किसी तरह थूक निगलते हुए बोला।
“दूसरों की ज़िन्दगी बर्बाद करने वालों को अपना कैरियर बर्बाद होने की चिंता सता रही है?” मोनिका ने दाँत पीसे, फिर रमन पर घृणा भरी दृष्टि डालते हुए बोली, “फ़ैसला तुम्हारे हाथों में है, चाहो तो अपनी ज़िन्दगी बचा लो या फिर कैरियर।”
मोनिका ने दो टूक फ़ैसला सुनाया और उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना वहाँ से चल दी। उसके तमतमाए चेहरे पर भरपूर आत्मविश्वास झलक रहा था। वह एक-एक क़दम मज़बूती से बढ़ाते हुए दूर चली जा रही थी। रमन में उसे रोक पाने का साहस न था। किसी हारे हुए योद्धा की भाँति वह मोनिका को दूर जाते हुए देखे जा रहा था। पलायन के अतिरिक्त अब उसके पास कोई और विकल्प न था।
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