खट्टे मीठे रिश्ते
कथा साहित्य | कहानी लतिका बत्रा1 Jun 2025 (अंक: 278, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
लवली अपनी नवनिर्मित कोठी के लॉन में बैठी हुई थी। लॉन में चारों और कुर्सियाँ बिछी हुई थीं। भीतर हॉल में अभी-अभी हवन हो कर चुका था। प्रसाद वितरण के बाद जलपान का प्रबंध था। उसके बाद भोजन परोसा जाएगा। सड़क के एक कोने में हलवाई प्रीतिभोज में परोसे जाने वाले व्यंजन तैयार करने में जुटे थे। वातावरण में हवन और पकवानों की मिली-जुली सुगंध फैली हुई थी। हवन के बाद आमंत्रित अतिथि बाहर शामियाने में जा बैठे थे और अल्प आहार व नाना प्रकार के पेय पदार्थों का आनंद ले रहे थे। चारों और उत्सव और आनंद का वातावरण था। उस के पति सारी व्यवस्थाएँ बड़ी कुशलता से सँभाले हुए थे। जेठ जी व ससुर जी भी मेहमानों के साथ बातचीत में व्यस्त थे। दूसरी और उसकी सास व जेठानी महिला मंडल के साथ गपशप में व्यस्त थीं। इस सारे समारोह से निर्लिप्त और अलग-थलग कोई था तो वह थी लवली और उसका देवर निखिल। निखिल तो आज सुबह हवन के समय से ही दिखाई नहीं दे रहा था और लवली मेहमानों की भीड़-भाड़ से दूर ज़रा सा एकांत खोज कर लॉन में चुपके से उतर आए धूप के एक छोटे से चौकोर टुकड़े में कुर्सी बिछाकर सारी हलचल से संपृक्त-सी बैठी थी। सबके बीच में होकर भी सब से दूर।
अचानक ही उसकी दृष्टि लॉन के दूसरे छोर पर दो चिड़ियों पर पड़ी। दोनों बड़े जतन से घास में से कुछ कुरेद रही थी फिर अपनी अपनी चोंच में एक-एक तिनका भरकर फुर्र हो गई। लवली के चेहरे पर मुस्कान खेल गई, ‘तो यह बात है’ लवली ने मन ही मन सोचा।
यह दोनों भी आज मेरी ही तरह अपना नीड़ बसाने की तैयारी में है। लवली कल्पना में खो गई। वह सोचने लगी कि हर ऋतु चक्र के साथ जब अंडे देने का समय आता है तो कैसे नर और मादा चिड़िया मिलकर अपने घोंसले का निर्माण करते हैं। चुन-चुन नर्म घास, पंख, तिनके और पत्ते जमा करते हैं, फिर जतन से एक सुरक्षित और आरामदायक घोंसला बनाते हैं। अंडे देते हैं, उन्हें सेते हैं। फिर जब बच्चे निकलते हैं तो उनके लिए दाना चुग कर लाते हैं। बच्चे धीरे-धीरे बड़े होते हैं, और उड़ना सीख जाते हैं। एक दिन अचानक पता नहीं कहाँ फुर्र हो जाते हैं। नर और मादा पक्षी भी फिर कभी वहाँ दिखाई नहीं देते। घोंसला ख़ाली हो जाता है। लवली सोच रही थी, ‘मैंने भी मैंने कभी भी किसी चिड़िया को घोंसला छोड़कर जाने के ग़म में बैठकर आँसू बहाते नहीं देखा। ना ही कभी कोई चिड़िया अगले ऋतु चक्र में अपने पुराने घोंसले को ढूँढ़ने निकलती है। इन परिंदों को कौन से ब्रह्मवेता गुरु ने ज्ञान दिया है, कौन से योगेश्वर ने उन्हें मन इंद्रियों की रासें खींचने का मंत्र दिया है।’
ठंडी आह भरकर लवली ने मन ही मन कहा, ‘इन चिड़ियों की शादी नहीं हुई होती ना। डोली में बैठकर नहीं ना आती चिड़िया अपने घोंसले में। ना ही उनके आलता लगे पाँवों की छाप पड़ती है घोंसले के फ़र्श, पर तो भला कैसे होगा उन्हें अपने घोंसले से मोह।’
लवली अपनी ही दुनिया में खोई कल्पना करने लगी कि अगर किसी चिड़िया को गोटे सितारों से जड़ा लाल जोड़ा पहना दिया जाए तो वह कैसे दिखेगी?
अपनी सोच पर वह ख़ुद ही मुस्कुरा उठी। यही तो ख़ासियत है लवली की। कैसी भी परिस्थिति क्यों ना हो, उसके भीतर किसी कोने में छिपी बैठी नन्ही सी अल्हड़ विनोद प्रिय बच्ची कभी भी कुलबुला कर बाहर आ निकलती है।
लवली ने सँभलकर चारों और दृष्टि घुमाई। कैसा भरा-पूरा परिवार था उसका। जब वह विवाह के बाद इस घर में आई थी तो सास और जेठानी ने उसे इतनी ममता और स्नेह दिया था कि कब वह अपना मायका भूलकर तन-मन से यहाँ रह गई थी उसे पता ही ना चला था। इतनी सुखमय घर गृहस्थी थी, फिर भी एक फाँस ऐसी थी जो कलेजे में नासूर बनकर उसके जीवन रस को विषाक्त कर रही थी। इसीलिए तो वह अलग सबसे अलग होकर वहाँ से भागकर इस नए नीड़ को बसाने बैठी है। नफ़रत और प्रेम के द्वंद्व में नफ़रत का पलड़ा भारी पड़ गया था।
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लवली को ब्याह कर इस परिवार में आए लगभग ढाई वर्ष हो गए थे। उसके पति कमल तीन भाई थे। बड़े भाई विमल का विवाह हो चुका था और उनका एक दो साल का पुत्र भी था। छोटा देवर निखिल कमल से आठ साल छोटा था और उस समय दसवीं कक्षा का छात्र था। विमल और कमल अपनी गोरी चिट्टी माँ की प्रतिकृति थे, तो अनजाने अनचाहे ही गर्भ में आ टिके निखिल की क़द काठी रंग रूप सब पिता पर गया था। छोटा होने के कारण वह सबका लाड़ला था तो साँवला होने के कारण माँ का कृष्ण कन्हैया। मसें भीगते ना भीगते उसमें यथा नाम तथा गुण परिलक्षित होने लगे थे। महल्ले की समस्त लड़कियाँ उसके लिए गोपियाँ थीं और वह कदम्ब की डाल पर बैठकर बंसी बजाने के स्थान पर गली के नुक्कड़ पर अपने निकम्मे और आवारा दोस्तों के साथ अड्डा जमाये रखता था। माँ के कानों तक उस की शिकायतें पहुँचती भी तो वह शिकायत करने वालों को ही डाँट देती, कि उसके नटखट बालक की भोली शरारतों को सब ग़लत दृष्टि से देखते हैं। पिता तक अव्वल तो यह बातें पहुँचती ही नहीं थी और कभी पहुँच भी जाती तो वह कभी-कभार वे उसे पीट देते और कभी उनके काम की अधिकता के चलते बात आई-गई हो जाती। निखिल की अड्डेबाज़ी जस की तस चलती रहती। दोनों बड़े भाइयों की आँखों पर भी भ्रातृ प्रेम का चश्मा चढ़ा था। उनका विचार था कि निखिल अभी बच्चा है ज़िम्मेदारियाँ सिर पर पड़ेंगे तो ख़ुद ही सँभल जाएगा।
निखिल और लवली की उम्र में तीन-चार साल का ही अंतर था। जब से लवली इस घर में शादी करके आई थी तभी से निखिल उसके आगे-पीछे घूमता रहता था। धीरे-धीरे उसने अपने हर छोटे-बड़े कार्य के लिए माँ को ना पुकार कर लवली को ही पुकारना आरंभ कर दिया था। बड़े ही नटखट अंदाज़ में वह उसे आवाज़ लगाता। अकेले में वह उसे हमेशा ‘ओ माय डिअर लवली’ ही कहता, और सबके सामने इस वाक्य के पीछे ‘भाभी’ शब्द भी जुड़ जाता। लवली को अपने माता-पिता पर बड़ा क्रोध आता। क्या चुन कर नाम रखा है उन्होंने उसका। निखिल ने इस लवली शब्द को संज्ञा वाचक के स्थान पर गुणवाचक विशेषण ही बना डाला था। उधर उसकी सास अपने पुत्र के भाभी के प्रति प्रेम पर निहाल होती रहती और निखिल को लवली का लक्ष्मण देवर कहते ना थकती। कहते हैं पुरुष के मंतव्यों को भाँपने की एक ख़ास छठी इंद्री होती है स्त्रियों में, पर सासू माँ के पुत्र प्रेम ने शायद स्त्रीत्व के इस नैसर्गिक गुण को ढक लिया था। वह कभी ना भाँप पाई कि निखिल लवली के आकर्षण में बुरी तरह बँध चुका है। निखिल के हौसले धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे थे। वह अब सबके सामने ही लवली के साथ छेड़छाड़ करता और बड़ी ही काँइया दृष्टि से एक ख़ास अदा के साथ उसे देख कर मुस्कुराता। उसने इस विषय में कमल से शिकायत भी की, पर उन्होंने इसे लवली का बेवजह का शक और निखिल का बचपना कह कर टाल दिया। फिर लवली ने सासू माँ से भी शिकायत की, कि निखिल उसे तंग करता है, छेड़ता है, यह सब उसे अच्छा नहीं लगता।
सासू माँ ने हमेशा उसे ही समझाया कि निखिल की तो आदत है छेड़छाड़ और मसखरी करने कि, तू ध्यान मत दिया कर उसकी बातों पर। घर में कोई भी लवली की स्थिति समझ नहीं पा रहा था। लवली खुलकर किसी से कुछ कह भी नहीं सकती थी। निखिल तो घर भर का लाड़ला था। उसे कोई ग़लत नहीं समझेगा। सब उसी को दोष देंगे कि तुम्हारी ही दृष्टि में खोट है। लवली कुछ नहीं कर पा रही थी। अब लवली को निखिल से डर लगने लगा था। वह उसके साथ अकेले में एक क्षण के लिए भी रहना नहीं चाहती थी। वस्तुतः वह तो उसके सामने पड़ने से भी कतराने लगी थी।
एक दिन लवली की तबियत कुछ ठीक नहीं थी। उसी दिन चढ़े हुए थे। आजकल उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता था। वह कामकाज निपटा कर अपने कमरे में आकर लेट गई। पूरे दिनों से गर्भवती उसकी जेठानी भी अपने पुत्र के साथ मायके गई हुई थी। घर के पुरुष सब अपने कामों पर गए हुए थे, और सासू माँ बाहर आँगन में बैठी अपने पड़ोसियों के साथ बतिया रही थी तभी पता नहीं कहाँ से घूमता-घामता निखिल घर में घुसा। माँ को बाहर सहेलियों के साथ मस्त बैठा देखकर वह चुपचाप घर में घुसा। पूरे घर में सन्नाटा पसरा था। उसने लवली के कमरे का दरवाज़ा खोलकर देखा कि वह बिस्तर पर आँखें मूँदे लेटी हुई है। निखिल चोरों की तरह दबे पाँव अंदर घुसा और दरवाज़ा बंद कर दिया। लवली को कुछ पता ना चला। दबे क़दमों से निखिल लवली के बिस्तर के पास आया और उसके ऊपर झुककर उसके होंठ चूम लिये। अपरिचित अवांछित स्पर्श से लवली तड़पकर उठी। ऊंनींदी आँखें खोलकर जब उसने निखिल को अपने ऊपर झुका पाया तो डर के मारे उसकी घिग्घी बँध गई। उसने पूरी ताक़त लगाकर निखिल को धक्का दिया और उठकर बैठ गई। फटी आँखों में आँसुओं की झड़ी लग गई। उसने जैसे ही चीखना चाहा, निखिल ने उसके मुँह पर हाथ रखकर कसकर दबा दिया। अब तक निखिल के सिर पर से भी प्यार का भूत उतर चुका था और उसे एहसास हो गया था कि यह उसने क्या कर दिया है। यदि लवली ने चिल्ला-चिल्ला कर सबको इकट्ठा कर लिया और सब कुछ बता दिया तो अब उसकी ख़ैर नहीं। उसने तुरंत पैंतरा बदला और कटे वृक्ष की भाँति लवली के पैरों पर आ गिरा। वो बिलख-बिलख कर रोने लगा और माफ़ी माँगने लगा, “भाभी मुझसे ग़लती हो गई, मुझे माफ़ कर दो। अब ऐसा कभी कुछ नहीं करूँगा। माफ़ कर दो।”
कहकर वह लवली के पैरों पर अपना सिर रगड़ने लगा। अजगर की चुंगल में फँसी डरी सहमी लवली उसकी गिरफ़्त से अपने पैर छुड़ाने की असफल कोशिश कर रही थी। अचानक बाहर कुछ आवाज़ हुई और दोनों चौंक गए। निखिल तीर की तरह बाहर निकल गया। लवली स्तब्ध, लाचार वहीं की वहीं बैठी रह गई। उसकी देह में ज़रा सी भी शक्ति नहीं बची थी। वह बिल्कुल पीली पड़ गई थी, जैसे किसी ने ख़ून का आख़िरी कतरा तक सोख लिया हो। पता नहीं वह कितनी देर इसी तरह बैठी रही। कुछ सम्भलने के बाद उसका दिमाग़ ठिकाने आया तो उसे एहसास हुआ कि अभी-अभी क्या घटित हुआ था। वह तड़प कर उठी और सासू माँ को चिल्ला कर पुकारने जा ही रही थी कि उसकी अंतरात्मा की आवाज़ ने उसे रोक लिया, ‘यह क्या करने जा रही है लवली, कौन तेरी बात का विश्वास करेगा? मान लो यदि कमल ने विश्वास कर भी लिया तो अंजाम क्या होगा। जिस भाई को वह पुत्रवत स्नेह देते हैं वही उनका सबसे बड़ा दुश्मन हो जाएगा। कितना क्लेश होगा? कोई लवली को दोष देगा तो कोई निखिल को। सासू माँ तो कभी नहीं मानेंगी कि निखिल ने कुछ किया है। उनके लिए तो निखिल अपनी भाभी को माँ के समान स्नेह करता है। उसी की दृष्टि में खोट है जो ऐसे पवित्र रिश्ते में गंदगी देखती है। कमल के साथ लवली का रिश्ता बिन कहे, बिन सुने एक-दूसरे का दर्द समझने का था। जब वह भी लवली के दर्द के इस पहलू को नहीं समझ पाए हैं, तो घर के बाक़ी सदस्यों से तरफ़दारी की अपेक्षा कैसे की जा सकती है!
उस दिन के बाद से लवली जैसे हँसना-बोलना ही भूल गई। दिन-ब-दिन उसकी सेहत गिरने लगी। सब चिंतित थे उसे लेकर। सब पूछते कि क्या हुआ है, क्यों ऐसे बुझी बुझी सी रहती हो? सब इसका कारण उसकी गर्भावस्था को मानने लगे। वह चुपचाप नज़रें झुका कर इधर-उधर हो जाती। फिर डॉक्टरों को भी दिखाया गया, सारे टैस्ट इत्यादि करवाए गए, पर मन के घावों को स्कैन करने वाले टैस्ट भला कौन से अस्पताल में किए जाते हैं। वह तो ना पकड़े जाने थे ना पकड़े गए। सारी रिपोर्ट है ठीक थी। बस लवली ही ठीक नहीं थी। उसके बाद नज़र उतरवाने, झाड़ा इत्यादि करवाने की बारी आई। सासू माँ को पूरा भरोसा था कि लवली को किसी की बुरी नज़र लग गई है। पर वह सब प्रयास भी विफल हो गए। सासू माँ बड़े मान मनुहार करके फल दूध की जूस इत्यादि उसे खिलाती-पिलाती। वह भी संयत होने का प्रयास करती, पर निखिल के सामने पड़ते ही उसके हाथ-पाँव काँपने लगते। यह सच था कि उस घटना के बाद से निखिल ने उसे कभी नहीं छेड़ा था, ना ही कुछ उल्टा-पुल्टा बोलता था। पर कोई व्यक्ति बिना हाथ लगाए, बिना छुए, बिना बोले बस दृष्टि मात्र से भी कपड़ों को तार-तार कर के देह के भीतरतम कोनों में झाँक सकता है, यह बिना उस दृष्टि को देखे समझा ही नहीं जा सकता। वह होंठों के कोरों से ऐसे राज़दारी भरे अंदाज़ में मुस्कुराता और अपनी मिचमिचाती हुई काँइया दृष्टि से लवली को भीतर तक भेदते हुए देखता कि उसकी देह पर सैकड़ों चींटियाँ रेंग जातीं। दिन बीते लवली माँ बनी और फिर अपने नवजात शिशु के पालन पोषण में व्यस्त रहने लगी।
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इसी बीच पंजाबी बाग़ में लवली के ससुर जी ने एक कोठी ख़रीदी। वे चाहते थे कि उनका बड़ा बेटा विमल अपने परिवार सहित वहाँ शिफ़्ट हो जाये। उनका मानना था कि कल को निखिल का भी विवाह होगा, परिवार बढ़ेगा, तो बेहतर है अभी से भविष्य की तैयारी कर ली जाये और बहुओं को बिना मनमुटाव अलग कर दिया जाये ताकि आपसी प्रेम में दरार ना आने पाये। लवली की जेठानी ने अलग होने से साफ़ मना कर दिया। उसे डर था कि कहीं ससुर जी कल को व्यापार से भी विमल को अलग ना कर दें। वो अपने सीधे-सादे पति की क़ाबिलियत को जानती थी। वो जानती थी कि कारोबार को अकेले सँभालना विमल के बस की बात नहीं है।
इधर लवली की मानों बिन माँगे ही मन की मुराद पूरी हो गई थी। उसने आगे बढ़ कर ये मौक़ा लपक लिया और आगे बढ़ कर ख़ुद ही सब के सम्मुख अलग होने का प्रस्ताव रख दिया। लवली की इस बात से कमल ही नहीं उसकी सास भी हैरान थी। पर लवली ने तर्क दिया कि निखल को अलग कर नहीं सकते, विमल भाई साहब जाना नहीं चाहते तो बेहतर है कि वे ही अलग हो कर नये घर में शिफ़्ट हो जायें। निखिल से दूर भागने की चाहत में भारी मन से लवली परिवार ये अलगाव सहने को मन बना चुकी थी।
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लवली को नये घर में आये लगभग तीन साल हो गये थे। इस बीच निखिल का विवाह भी हो गया था। लवली नियमित रूप से ससुराल आती-जाती रहती थी, पर ध्यान रखती कि निखिल से उसका सामना ना हो। उसकी सास, ससुरजी, जेठानी और बच्चे भी यहाँ लवली और कमल से मिलने आते रहते थे। इन लोगों के स्नेह और व्वहार में इस अलगाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। इस बीच निखिल एक प्यारे से बेटे का पिता भी बन गया था। पर उसकी जीवन शैली में कोई परिवर्तन नहीं आया था। अंतर सिर्फ़ इतना पड़ा था कि अब उसकी अड्डेबाज़ी गली के नुक्कड़ पर ना होकर होटलों में होती थी। वहीं उस की बैठकें जमती थीं, और अब तो शराब के दौर भी चलते थे। किसी के भी समझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था।
इन दिनों निखिल की तबीयत अक्सर ख़राब रहने लगी थी और वह अधिकतर घर पर ही होता था, इसलिए लवली के चक्कर भी उधर कम ही लगते थे। निखिल की हालत में लगातार गिरावट आ रही थी। उसे डॉक्टर को दिखाया गया, सारे टैस्ट करवाए गए। पता चला कि उसका लिवर ख़राब हो गया है और ट्रांसप्लांट करवाना पड़ेगा। दुनिया भर की दवाई शुरू हो गई, ना जाने कैसे-कैसे कौन-कौन से टैस्ट करवाए गए। सारा घर सदमे में था और एकजुट होकर अस्पतालों की भाग दौड़ में लगा था। बाहर से कोई डोनर नहीं मिला तो कमल, विमल और लवली के ससुर जी, तीनों ने अपनी रक्त जाँच करवाई। तीनों ही निखिल को अपना लिवर डोनेट करने को तैयार थे। विमल भाई साहब का रक्त निखिल के साथ मैच कर गया। शीघ्र ही ऑपरेशन का दिन तय हो गया और ऑपरेशन से एक दिन पहले दोनों भाई अस्पताल में भर्ती हो गए। पूरा परिवार उन दोनों भाइयों के सफल ऑपरेशन की दुआएँ माँग रहा था।
डॉक्टरों ने विमल भाई साहब को ऑपरेशन से पहले की दवाई देनी शुरू कर दी थी। ड्रिप लगा दी थी। सुबह 6:00 बजे, पहले विमल भाई साहब को ले जाया जाएगा ऑपरेशन थिएटर में, उसके 2 घंटे बाद निखिल को। पहले विमल भाई साहब का ऑपरेशन करके उनके लिवर का एक हिस्सा निकाला जाएगा। उसे स्टेरलाइज़ करके निखिल के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाएगा। पूरी प्रक्रिया में आठ से दस घंटे लगने वाले थे। लवली की सासु माँ अस्पताल के वेटिंग हॉल में बने मंदिर में अखंड ज्योत जलाकर बैठ गई थी। जेठानी भी वही थी। निखिल की पत्नी सुनीला सन्न सी बैठी, भय, चिंता में पीली पड़ी हुई थी। उनके दिल की हालत कौन समझ सकता था उस समय। कौन किसे सांत्वना देता। घर के दो-दो बेटों की ज़िन्दगियाँ दाँव पर लगीं थी। लवली भी निखिल के कमरे के बाहर सुनीला के साथ बैठी हुई थी। थोड़ी ही देर में वार्डबॉय आकर निखिल को ले जाएँगे ऑपरेशन थिएटर में। तभी दो नर्सें में हाथों में दो बड़ी-बड़ी ट्रे पकड़ कर वहाँ आईं और बोली जिस-जिस ने निखिल से मिलना है वह मिल लें आ कर 5 मिनट में। उसके बाद निखिल के शरीर को कीटाणु रहित करने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी, तब उससे कोई नहीं मिल पाएगा। ये सुनते ही सुनीला के शरीर में जैसे विद्युत दौड़ गई और वह तड़प कर उठी और निखिल के कमरे की ओर भागी। लवली ने तुरंत उसे रोका और बड़े प्यार और धैर्य से देवरानी को समझाया कि भीतर जाकर उन्हें निखिल के सामने रोना नहीं है, ना ही यह ज़ाहिर होने देना है कि वह कितने बड़े ख़तरे का सामना करने जा रहा है। लवली बोली, “ख़बरदार जो उसके सामने एक भी आँसू बहाया। मुस्कुरा कर उसे शुभकामनाएँ देना और विश्वास दिलाना कि यह सब उसे ठीक करने के लिए ही तो किया जा रहा है। उसे यही कहना कि देखना जल्दी ही वह सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा।”
सुनीला को देखते ही निखिल ने उससे बाक़ी लोगों के विषय में पूछा।
“सब नीचे मंदिर में बैठे हैं,” सुनीला ने उत्तर दिया।
“और लवली भाभी . . .” निखिल ने डूबते स्वर में पूछा।
“वह बाहर बैठी है,” सुनीला ने उत्तर दिया।
निखिल में पता नहीं कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई कि वह सुनीला से बोला, “सुनीला मैं लवली भाभी से एक बार अकेले में मिलना चाहता हूँ। क्या तुम . . .?”
सुनीला तुरंत बाहर की और भागी और लवली को खींचकर भीतर ले आई फिर हतप्रभ सी क्षणभर को वहाँ खड़ी रही और फिर शीघ्र ही सचेत होकर बाहर निकल गई।
लवली इस स्थिति के लिए तैयार नहीं थी। वह इस नाज़ुक घड़ी में निखिल के सामने नहीं पड़ना चाहती थी। उसका हृदय निखिल के लिए पसीज रहा था, पर पुरानी दुर्भावनाएँ उसकी करुणा और ममता पर भारी पड़ रहीं थी। उसे सामने देख कर निखिल भरयाये गले में बोला, “भाभी . . .”
लवली ने तड़प कर उसकी और देखा फिर प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, “आज ‘ओ माय डिअर लवली’ ना कहोगे?”
उसकी आँखों में से आँसू बह निकले। उसे ख़ुद भी पता नहीं था कि यह आँसू क्रोध के हैं या करुणा के।
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