मोबाइल
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता जैनन प्रसाद15 Mar 2021 (अंक: 177, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
सृजनहार से बोला
जन्म लेने वाला बच्चा।
हे परमपिता।
हे सृष्टिकरता।
चाहे मुझे दे
कैसे भी माता-पिता।
पर वरदान ऐसा दो
खाने को कच्चा भी हो
पर मोबाइल अच्छा हो।
मोबाइल पर
दृढ़ भक्ति देख
भगवान ने भी प्रमोद किया।
मोबाइल के सारे गुण
उनकी खोपड़ी में
डाउनलोड किया।
मोबाइल के वरदान से
पुलकित हो बच्चा
जब धरती पर आता है।
मोबाइल की रिंगटोन की ही तरह
रोता है चिल्लाता है।
उठा लो
तो चुप हो जाता है।
चाहे मोबाइल हो य बच्चा
यहीं से बढ़ती है अपेक्षा।
बचपन से ही चाहे
डालो कितना भी गुण-स्वभाव।
हाथ में मोबाइल दे दो
तो बदल जाता है हाव भाव।
नया मॉडल और नया मेहमान
जब भी आता है।
ख़ुशी का माहौल
एक ही जैसा समाता है।
दिन-ब-दिन आजकल जैसे
दूध का दाम चढ़ रहा है।
बच्चे की तरह मोबाइल का
स्क्रीन साइज़ भी आजकल
बढ़ रहा है।
मोबाइल पर टाइम देखना
हमारी असलियत बन रही है।
टूथब्रश की तरह आज मोबाइल
हमारी आदत बन रही है।
पति-पत्नी संग में हो न हो
पर मोबाइल होता है साथ में।
यह हमारे हाथ में है
या हम हैं उनके हाथ में।
मेल मिलाप और नज़दीकियों की
मानो सजा रहे हैं सेज।
एक ही घर में एक दूजे को
फ्रेंड रिक्वेस्ट रहे हैं भेज ।
भविष्य में
करवा चौथ और मौन व्रत से
कठिन एक और व्रत आएगा ।
दिनभर मोबाइल न प्रयोग करने का
उपवास दिया जाएगा।
इश्क़ के जुमले बदल जाएँगे
बदल जाएँगे नियम काम के।
ग़ालिब की तरह हम भी कहेंगे
कि मोबाइल ने निकम्मा बना दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के।
हमारे पूर्वजों ने जो संघर्ष किया
उस समय मोबाइल नहीं
सच्चाई थी संस्कृति थी सादगी थी।
स्मार्ट फोन न
पर ज़िंदगी थी।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं