अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

तुलनात्मक साहित्य का विश्लेषणात्मक अध्ययन

 

शोध सारांश: तुलनात्मक साहित्य एवं तुलनात्मक अध्ययन पश्चिम से आयातित है। साहित्य के किसी भी विधा या पद्धति के प्रारंभ एवं विकास के अध्ययन से उसके इतिहास का पता चलता है जिससे कल, आज और कल का पता चलता है। तुलनात्मक साहित्य एवं तुलनात्मक अध्ययन क्या है? भारतीय साहित्य के अन्तर्गत तुलनात्मक साहित्य का स्थान कहाँ और क्या है? इसे कैसे निर्धारित किया जा सकता है? भारतीय साहित्य में तुलनात्मक साहित्य की आवश्यकता एवं विशेषता पर प्रस्तुत आलेख के माध्यम से विचार किया गया है। उक्त आलेख के माध्यम से यह बात निकालकर सामने आती है कि तुलनात्मक साहित्य मूल रूप में भारतीय साहित्य की एक धारा है जो रचनाओं के माध्यम से एक संस्कृति की मानव को दूसरी संस्कृति के मानव से इंटरैक्ट करने का कार्य किया है। 

कुंजी शब्द: तुलनात्मक साहित्य, विश्व साहित्य, तुलनात्मक अध्ययन, भारतीय साहित्य। 

प्रस्तावना: तुलनात्मक साहित्य अंग्रेज़ी के ‘कम्पैरेटिव लिटरेचर’ का हिंदी अनुवाद है। इस पद का प्रथम प्रयोग अंग्रेज़ी कवि ‘मैथ्यू आर्नल्ड’ ने सन् 1848 में अपने एक पत्र में सबसे पहले ‘कम्पेरेटिव लिटरेचर’ शब्द के रूप में किया था। भारत में तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन का पहला विभाग ‘यादवपुर विश्वविद्यालय’ में ‘बुद्धदेव बोस’ के प्रयत्नों से स्थापित हुआ था। आज हिन्दी साहित्य में भारतीय साहित्य, तुलनात्मक साहित्य, तुलनात्मक अध्ययन, विश्व साहित्य, सार्वभौम साहित्य आदि शब्द विद्वानों के व्यापक विचार-विमर्श का केन्द्र बन गया है। तुलनात्मक साहित्य साहित्यिक समस्याओं का वह अध्ययन है, जहाँ एक से अधिक साहित्यों का उपयोग किया जाता है। तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन में प्रत्येक अध्याय या पृष्ठ में तुलनात्मक होने की आवश्यकता नहीं पर उसकी दृष्टि, उद्देश्य तथा कार्यान्वयन को तुलनात्मक होना चाहिए। यहाँ एक से अधिक से तात्पर्य एक से अधिक भाषाओं, रचनाकारों, कृतियों, युगों, प्रवृत्तियों से है। भाषा, देश, युग, रचनाकार, कृति, प्रवृत्ति के अनुसार तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन के व्यापक तथा सीमित स्वरूप में अंतर आता है। तुलनात्मक साहित्य में साम्य-वैषम्य का उद्घाटन कर अध्येता को दोनों विषयों की पूर्ण प्रकृति और सीमाओं का पूर्ण ज्ञान हो जाता है। तुलनात्मक अध्ययन की पूर्णता तथा वैज्ञानिकता के लिए कृतियों पर पड़े प्रभावों एवं साम्य-वैषम्य के कारणों का अन्वेषण करना पड़ता है। तुलनात्मक अध्ययन से एक साहित्य का प्रभाव अन्य साहित्यों के दृष्टिकोणों, भावों, विचारों एवं चिंतन-प्रणालियों पर किस प्रकार पड़ता है और ऐसे प्रभावित साहित्य के प्रांत की संस्कृति तथा सभ्यता में किस प्रकार परिवर्तित हुई है, स्पष्ट होता है। तुलनात्मक अध्ययन के अन्तर्गत किसी भी साहित्य वा कृति को श्रेष्ठ या निकृष्ट घोषित करने का यत्न नहीं होता बल्कि उन दोनों का ही कुछ समान तथा असमान आधारों पर अध्ययन करते हुए उनके प्रभाव स्त्रोतों को जानने का प्रयत्न किया जाता है तथा इस कार्य का मुख्य लक्ष्य सम्बन्धित साहित्य के सामाजिक, सांस्कृतिक संदर्भों का पता लगाना होता है। 

परिभाषाएँ: तुलनात्मक साहित्य व अध्ययन को अनके पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों ने परिभाषित करने की कोशिश की है। वह निम्नलिखित है:


हेनरी एच. एच. रेमाक–“तुलनात्मक साहित्य की जो परिभाषा दी है उसमें ये सारी बातें अंतर्भुक्त हैं। उनके अनुसार तुलनात्मक साहित्य एक राष्ट्र के साहित्य की परिधि के परे दूसरे राष्ट्रों के साहित्य के साथ तुलनात्मक अध्ययन है तथा यह अध्ययन कला, इतिहास, समाज विज्ञान, विज्ञान, धर्मशास्त्र आदि ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के आपसी संबंधों का भी अध्ययन है।”1 

डॉ. भ. ह. राजूरकर–“तुलनात्मक साहित्य का स्वरूप तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर ही स्पष्ट होता है। केवल नाम भेद है। तुलनात्मक साहित्य तुलनात्मक अध्ययन का ही दूसरा नाम है। नामकरण में साहित्य है किन्तु व्यवहार में अध्ययन है।”2

प्रो. इन्द्रनाथ चौधुरी–“तुलनात्मक साहित्य एक से अधिक भाषाओं में रचित साहित्य का अध्ययन है और तुलना इस अध्ययन का मुख्य अंग है।”3

शिवकुमार मिश्र–“एक विशिष्ट में तुलनात्मक साहित्य या तुलनात्मक अध्ययन की पद्धति सामने आई। उन्होंने इन दोनों शब्दों को पर्याय मानते हुए कहा है कि चाहे पश्चिम हो चाहे हमारे यहाँ विवाद और मतभेदों के बीच प्रायः सर्वमान्य हो चुका है कि तुलनात्मक साहित्य से अभिप्राय तुलनात्मक अध्ययन से ही है।”

“उलरिच वाइनस्टाइन ने अपनी पुस्तक ‘कंपैरेटिव लिटरेचर एंड लिटरेरी थियोरी’ (1979) में तुलनात्मक साहित्य की विभिन्न परिभाषाओं को दो वर्गों में बाँटा है: (क) पॉल वान टिगहेम (Paul Van Tieghem), ज्याँ-मारि कारे (Jean-marie Carre) तथा मारिओस फ्रांस्वास गुइयार्द (Marius Francois Guyard) जैसे पैरिस तथा जर्मन स्कूल के परंपरावादी विद्वानों की संकुचित संकल्पनाओं से जुड़ी हुई परिभाषाएँ तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन में साहित्यिक इतिहास के तत्त्व को अधिक महत्त्व देती हैं। इन विद्वानों का प्रतिपाद्य है कि तुलनात्मक साहित्य एक इतिहास-सम्मत अनुशासन है जिसको काव्यशास्त्रीय सौंदर्यमूलक अनुशासन के साथ जोड़ा नहीं जा सकता, क्योंकि ठोस यथार्थ, तथ्यात्मक चेतना तथा विभिन्न राष्ट्रों के कृतिकार, कृति, पाठक के निश्चेय संबंधों के साथ इसका संपर्क होता है; (ख) रेने वेलेक, रेमाक, ऑस्टिन वारेन तथा प्रावर जैसे उदारतावादी विद्वानों को अमरीकी स्कूल के अंतर्गत स्थान दिया जाता है जिन्होंने अपनी परिभाषाओं में तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन में काव्यशास्त्रीय सौंदर्यात्मक कलापरक दृष्टि को महत्त्व दिया है। इनके अतिरिक्त तुलनात्मक साहित्य के क्षेत्र में रूसी स्कूल का भी महत्त्व कम नहीं है। इस स्कूल के विद्वानों के लिए तुलनात्मक साहित्य एक सार्विक साहित्यिक संवृत्ति का सार-संग्रह है। यह संवृत्ति (phenomenon) अंशत: विभिन्न देशों के जनसमूह के सामाजिक जीवन के ऐतिहासिक विकास पर आधारित है तथा अंशतः पारस्परिक सांस्कृतिक तथा साहित्यिक आदान-प्रदान पर निर्भरशील है।”5

पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर तुलनात्मक साहित्य के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों को निश्चित किया जा सकता है—

  1. विश्व साहित्य व भारतीय साहित्य के सृजनमूलक कृतित्व से परिचय कराना और उसका रसास्वादन कराना है। 

  2. तुलनात्मक साहित्य या तुलनात्मक अध्ययन विभिन्न भाषाओं के साहित्य को सार्वभौमिक स्तर पर जोड़ने वाला साहित्य व अध्ययन है। 

  3. यह विभिन्न साहित्यों के पारस्परिक मानवीय सम्बन्धों के इतिहास का अध्ययन है तथा इस रूप में वह साहित्येतिहास और उसके विकास की एक शाखा है। 

  4. यह अध्ययन विभिन्न भाषा साहित्यों, संस्कृतियों और उनके सामाजिक घटकों की साहित्यिक तुलना है। 

  5. तुलनात्मक साहित्य और उसका अध्ययन विविध साहित्य की साहित्यिक समस्याओं और उसके निराकरण करने का अध्ययन है। 

  6. यह विभिन्न साहित्यों के ज्ञान व विचारों को तुलनात्मक अध्ययन के माध्यम से आदान-प्रदान करता है। 

  7. मूल्यांकनपरक आलोचना, विश्लेषण तथा निष्कर्ष को निर्धारित करने के लिए तुलनात्मक पद्धति का सहयोग लिया जाता है। 

  8. तुलनात्मक साहित्य या तुलनात्मक अध्ययन विभिन्न साहित्यों के एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन का आधुनिक और वैज्ञानिक अध्ययन है। 

  9. यह अध्ययन पूरे विश्व को अनेकता में एकता के सूत्र में बाँधने वाला अंतः साहित्य व अध्ययन है। 

  10. तुलनात्मकता की सहायता से किया जाने वाला वृहद्‌ साहित्य का अध्ययन है। 

तुलनात्मक साहित्य की विशेषता / महत्त्व: तुलनात्मक साहित्य के द्वारा ऐसी विशेषताएँ उजागर होती हैं, जो सामान्य अध्ययन से सम्भव नहीं है। तुलनात्मक साहित्य या तुलनात्मक अध्ययन पद्धति की विशेषताओं को वर्तमान युग के समस्त देशों ने अपनाने से मना नहीं किया है। तुलनात्मक साहित्य का महत्त्व इस बात को देखते हुए नकारा नहीं जा सकता है कि इसका महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। आज तुलनात्मक साहित्य आधुनिक साहित्य व सभ्यता का प्रमुख विमर्श के रूप में बन कर उभरा है। तुलनात्मक साहित्य की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए कहा जा सकता है कि विभिन्न साहित्यिक अध्ययन में तुलना का प्रयोग मूलतः सादृश्य सम्बन्ध, परम्परा विवेचन तथा प्रभाव सूत्रों की खोज के लिए किया जाता है। इसमें नवीन संदर्भ नवीन रूप में प्रकट होते हैं। तुलनात्मक साहित्य आज की एक प्रमुख साहित्यिक विधा या विमर्श रूप में निखर कर सामने आया है, जिसके माध्यम से दो भाषा संस्कृति की अंतर्निहित विशेषाताओं को एक-दूसरे की सापेक्षता में रखकर विश्लेषित किया जाता है। इस प्रकार इसके माध्यम से साहित्यिक कृतियों को परखने के सूत्र तलाशे जाते हैं और उसका सकारात्मक रिज़ल्ट पाने के प्रयास की ओर अग्रसर रहते हैं। तुलनात्मक साहित्य की विशेषताओं को जानने या समझने के पूर्व हमें यह समझना भी आवश्यक प्रतीत होता है कि तुलनात्मक साहित्य के रचनाकार के लिए नैतिक धर्म क्या है? पूँजीवाद के दबाव में अक़्सर लेखक तुलनात्मक आलोचना की प्रक्रिया में शामिल होने लग जाते हैं, तुलनात्मक साहित्य की गंभीरता को देखते हुए लेखक विशेष या अन्य कई प्रयास किए जा सकते हैं। तुलनात्मक एवं भारतीय साहित्य के लिए रचनाकार के लिए सिर्फ़ दो भाषा मायने नहीं रखती हैं वरन् उन भाषाओं के अर्थ, संस्कार, व्याकरण तथा उसकी संस्कृति को जानना परम आवश्यक है। सभ्यता विस्तार के बाद तुलनात्मक साहित्य की महत्पूर्ण भूमिका भाषा व साहित्य के माध्यम से सांस्कृतिक विस्तार की ओर अग्रसर करना भी किया है। दो देश, दो भाषा, दो परिवेश, दो प्रकार का साहित्य अपने संस्कृति में वैविध्यता लिए हुए भी एक दूसरे की सापेक्षता में ग्रहण कर एक दूसरे को समझने की दृष्टिभंगी का विस्तार भी किया है। तुलनात्मक साहित्य एक विशेष प्रकार की ऊर्जा व लोकरंग से निर्मित हुआ है, जहाँ विभिन्न देशों के साहित्य का परिवेश उस पर विचारात्मक एवं संवेदनात्मक रूपी ऊर्जा डालता है। तुलनात्मक साहित्य का प्राथमिक कार्य साहित्यिक रुचियों-रुझानों में बढ़ोत्तरी कर साहित्यिक विस्तार के परिवेश निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार करना है। तुलनात्मक साहित्य के माध्यम से साहित्यिक प्रतिमानों के विस्तार को गति मिलती है। बच्चन सिंह लिखते हैं, “‘तुलनात्मक साहित्य’ साहित्य को व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझने और विश्लेषित करने का अपेक्षाकृत नया अनुशासन है। इसमें एक साहित्य की तुलना दूसरे साहित्य या साहित्यों से की जाती है। तुलना का क्षेत्र सीमित नहीं है। दो या दो से अधिक देशकाल के साहित्यों के रूप, विधा, मोतिक, सामाजिकता, पारस्परिक प्रभाव आदि को इसमें तुलनात्मक ढंग से विवेचित किया जाता है। इसकी व्यापकता को देखते हुए इसे साहित्यिक आलोचना न कहकर साहित्यिक पांडित्य कहना अधिक औचित्यपूर्ण है।”6 आज हम विश्व साहित्य के नाटक, उपन्यास, सिनेमा, कविता, आलोचना तथा कई विधाओं की विशेषताओं के नये प्रतिमान तुलनात्मक साहित्य के माध्यम से देख चुके हैं। साहित्य अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रसार में एक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है, तो वहीं तुलनात्मक साहित्य उसमें हमारी सहायक के रूप में मुख्य भूमिका अदा करता है। तुलनात्मक साहित्य या तुलनात्मक अध्ययन एक विशिष्ट प्रकार का अध्ययन है जो दो रचनाओं, या दो साहित्यों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध कर उनके नवीन संदर्भों एवं आयामों को उजागर करता है। संसार की अदम्य शक्ति, अतुलनीय सौंदर्य, अद्भुत ऊर्जा, सत्य, मर्यादा, शौर्य आदि का परिचय तुलनात्मक साहित्य से ही सम्भव हो सकता है। तुलनात्मक अध्ययन पद्धति के माध्यम से ही भाषाओं के अलगाव व हीनताबोध को दूर भगाया जा सकता है और एकता की मूल भावना एक सूत्र में बाँध सकता है। तुलनात्मक साहित्य के माध्यम से विश्व बंधुत्व की प्रेरणा और भावना को शक्ति प्रदान करती है। 

निष्कर्ष: निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि तुलनात्मक साहित्य तुलना की दृष्टिकोण से किया जाने वाला एक विशेष अध्ययन है जो अनेक दृष्टियों से मानव-जाति के विकास का साधन है। ज्ञान-विज्ञान की नई दिशाओं का उद्घाटन, राष्ट्रीय एवं भावनात्मक एकता का प्रतिपादन, समाज, साहित्य, दर्शन और संस्कृति की अभिव्यंजना, पूर्वाग्रहों से मुक्ति, विश्व मानव का गौरवगान एवं अनके न्यूनताओं के प्रति सतर्कता तुलनात्मक साहित्य या तुलनात्मक अध्ययन द्वारा ही सम्भव हो पाया है। 

संदर्भ सूची:

  1. चौधुरी, प्रो, इन्द्रनाथ, तुलनात्मक साहित्य भारतीय परिप्रेक्ष्य, वाणी प्रकाशन, प्रथम संस्करण-2006, नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या-17

  2. राजूरकर, डॉ. भ. ह., बोरा डॉ. राजमल, मन (सं.), तुलनात्मक अध्ययन स्वरूप और समस्याएँ, वाणी प्रकाशन, संस्करण-2004, नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या-11

  3. चौधुरी, प्रो, इन्द्रनाथ, तुलनात्मक साहित्य भारतीय परिप्रेक्ष्य, वाणी प्रकाशन, प्रथम संस्करण-2006, नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या-15

  4. परमार, डॉ. ऐन. आर. (सं.), विश्वग्राम और तुलनात्मक साहित्य, नलिनी अरविंद एंड टी. बी. पटेल कॉलेज वल्लभ विद्यानगर, संस्करण–2009, गुजरात, पृष्ठ संख्या-135 

  5. चौधुरी, प्रो, इन्द्रनाथ, तुलनात्मक साहित्य भारतीय परिप्रेक्ष्य, वाणी प्रकाशन, प्रथम संस्करण-2006, नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या-17

  6. सिंह बच्चन, आधुनिक हिन्दी आलोचना के बीज शब्द, वाणी प्रकाशन, संशोधित संस्करण: 2010, नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या-48

मिथुन राम
पूर्व शोधार्थी, कलकत्ता विश्वविद्यालय, 
प्रशासनिक विभाग में कार्यरत, 
बाबा साहब अंबेडकर शिक्षा विश्वविद्यालय, कोलकाता
संपर्क-4/1 माथुर बाबू लेन कोलकाता-700015।, 
मोबाइल नंबर–7003654214, 
ई-मेल– mithunram906@gmail.com 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

शोध निबन्ध

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं