अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ का विमोचन संपन्न 

 

उद्वेलन एवं संवेदनाओं की कविताएँ: प्रो. बी.एल. आच्छा

सरल शब्दों में गहन विषयों को व्यक्त करना आसान नहीं: गोविंदराजन

चेन्नई, 11 जनवरी, 2025

“डॉ. रज़िया बेगम की कविताएँ सरल एवं सहज शब्दों के माध्यम से भावनाओं एवं सामाजिक विद्रूपताओं को व्यक्त करने वाली कविताएँ हैं। सरल शब्दों में गहन विषयों को व्यक्त करना आसान नहीं। इन कविताओं में प्रेम, वेदना, छटपटाहट, रिश्तों की तड़प, मातृत्व की झलक, संवादशून्यता आदि निहित हैं। कुल मिलाकर ये कविताएँ अपने आप को बचाने की कोशिश में लहूलुहान हो रही पीढ़ी को आगाह करने वाली कविताएँ हैं।” 

एग्मोर स्थित बैंक ऑफ़ बड़ौदा के क्षेत्रीय कार्यालय में विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित डॉ. रज़िया बेगम की पुस्तक ‘ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ’ के लोकार्पण समारोह के अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार व अनुवादक श्री गोविंदराजन (चेन्नई) ने अपने अध्यक्षीय टिप्पणी में उक्त उद्गार व्यक्त किए। 

बतौर मुख्य वक्ता प्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं कवि प्रो. बी.एल. आच्छा (चेन्नई) ने कहा कि ग्रहण काल वस्तुतः एक रूपक है जिसके माध्यम से कवयित्री ने अपने भीतर की संवेदना को व्यक्त किया है। उन्होंने अपने वक्तव्य में इन कविताओं को “उद्वेलन की कविताएँ” कहा, क्योंकि इनमें कहीं भी ठहराव नहीं है। उन्होंने इस बात पर बाल दिया कि व्यापक धरातल पर इन कविताओं में अत्यंत सूक्ष्म संवेदनाओं को महसूस किया जा सकता है, जो संसार से उपजी हैं। 

तमिलनाडु हिंदी अकादमी, चेन्नई की अध्यक्ष डॉ. ए. भवानी ने कहा कि रज़िया जी आशावादी कवयित्री हैं जो अंधकार को मिटाने की गुहार लगाती है। उन्होंने यह रेखांकित किया कि रज़िया जी की कविताओं में सुख-दुख का संगम है। ये कविताएँ जहाँ समस्या की ओर इशारा करती हैं, वहीं उनका निदान भी सामने रखती हैं। उन्होंने रज़िया जी की पहली सृजनात्मक काव्य-कृति को उनके “अवचेतन मन की अभिव्यक्ति” कहा। 

डी जी वैष्णव कॉलेज, चेन्नई के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार सिंह ने कहा कि इन कविताओं में प्रेम के अनेक आयाम निहित हैं। उन्होंने कहा कि सरल रूप से भावों को अभिव्यक्त करना कष्टसाध्य है, फिर भी रज़िया जी ने अपने प्रथम प्रयास में ही सफलता अर्जित की है। उन्होंने यह भी कहा कि कवयित्री कभी हार नहीं मानती और वह दूसरों को भी आगाह करती है तथा चेताती है कि वे भी इस राह पर आगे बढ़ें। 

मुंबई से पधारीं डॉ. सविता तायडे ने यह संकेत किया कि इस संग्रह में निहित कविताएँ अंतःसंबंधों को बचाने की कोशिश करती स्त्री-मन को पाठक के सामने प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने इन कविताओं को राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, वैश्विक, सांस्कृतिक आयामों पर वर्गीकृत किया। 

श्री शंकरलाल सुंदरबाई शाशुन जैन कॉलेज, चेन्नई की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सरोज सिंह ने कहा कि रज़िया जी की कविताएँ मानव अस्तित्व को उकेरती हैं, दमनकारी नीति का विरोध करती हैं, संघर्षों के बीच सांस्कृतिक धरोहर को अक्षुण्ण रखती हैं। उन्होंने इन कविताओं को “संदेशात्मक कविताएँ” कहा। 

उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास की एसोसिएट प्रोफेसर एवं ‘स्रवंति’ की सह संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने ‘मैं तो मिट्टी का कण हूँ’, ‘हैवलॉक’, ‘कालापानी’, ‘पधारो हमारो अंडमान’ शीर्षक कविताओं के हवाले कहा कि अंडमान में जन्मी, अपनी जड़ों से दूर चेन्नई में निवास रह रहीं कवयित्री रज़िया बेगम अंडमान की स्मृतियों में गोता लगाते हुई दिखाई देती हैं। उन्होंने एक कविता के हवाले सब का ध्यान इस ओर खींचा कि कवयित्री की प्रयोगशीलता 9 पंक्तियों में समाहित 15 शब्दों की गहन अभिव्यक्ति से मुखरित होता है। आगे उन्होंने स्पष्ट किया कि इन कविताओं में आत्मीयता और प्रेम के विविध पाठों के अतिरिक्त आक्रोश का पाठ, स्त्री-पाठ, बेबसी का पाठ, संघर्ष का पाठ आदि को एक पाठक अपनी दृष्टि से रच सकता है। उन्होंने कवयित्री को साधुवाद दिया। 

राजस्थान पत्रिका, चेन्नई के प्रभारी संपादक डॉ. विजय राघवन ने कहा कि नई दिल्ली के सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक में कुल 75 छोटी-बड़ी कविताएँ हैं जो मर्यादाओं को लाँघने वाली युवा पीढ़ी पर प्रहार करती हैं। इन कविताओं को उन्होंने कवयित्री के “अनुभव जगत से उपजी सृजन के बीज” कहा। 

इस कार्यक्रम का सफल काव्यमय संचालन अग्रसेन कॉलेज, चेन्नई के हिंदी विभागाध्यक्ष गीतकार डॉ. सतीश कुमार श्रीवास्तव ने किया। उन्होंने अपने आपको इन कविताओं के साथ जोड़ते हुए अपने ‘स्व’ अनुभूति को व्यक्त किया। 

बैंक ऑफ़ बड़ौदा की मुख्य प्रबंधक (राजभाषा) सुश्री कृष्णप्रिया और वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा) सुश्री रीता गोविंदन ने अतिथियों का शब्द सुमनों के साथ स्वागत किया तथा कवयित्री डॉ. रज़िया बेगम ने अपनी अनुभूतियों को साझा करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया। 

प्रस्तुति: डॉ. गुर्रकोंडा नीरजा 
सह संपादक ‘स्रवंति’ 
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान 
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास 
टी. नगर, चेन्नई–600017 
ईमेल: neerajagkonda@gmail.com

ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ का विमोचन

हाल ही में

अन्य समाचार