अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

लघुकथा सर्वाधिक आकर्षित करने वाली विधा है—डॉ. विकास दवे 

नगर की साहित्यिक संस्था क्षितिज के द्वारा आयोजित किए गए सप्तम अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2024 में अध्यक्ष पद से बोलते हुए साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि, “लघुकथा का शिल्प अद्भुत होता है और यह सर्वाधिक आकर्षित करने वाली विधा है। आज के समय में इस विधा में बहुत सारे लेखक सामने आए हैं जो बहुत अच्छा लेखन कर रहे हैं।” सारस्वत अतिथि कथाबिम्ब के संपादक प्रबोध कुमार गोविल ने कहा, “लघुकथा दीवार में खिड़की की तरह होती है विस्तार को देखने के लिए खिड़की खोल देना पर्याप्त होता है यही लघुकथा का शिल्प होता है।” दिल्ली से पधारे वरिष्ठ कथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा कि, “लघुकथा का शिल्प विधान कहानी के शिल्प विधान से अलग होता है। लघुकथा का प्रबल पक्ष उसकी संप्रेषण शक्ति है। लघुकथा में मौन मुखर हो जाता है।” अग्निधर्मा की संपादक और प्रखर पत्रकार डॉ शोभा जैन ने कहा कि, “लेखक जिस भाषा का इस्तेमाल करता है उससे साहित्य का मापदंड ही नहीं बल्कि समय से जुड़ी सभ्यता का बोध भी निर्धारण होता है। भाषा रचना के एक पात्र की ज़ुबान के साथ पाठक के लिए एक विचार भी होती है। 

शिल्प की कोई निजी प्रामाणिक परिभाषा नहीं होती है। एक स्वंत्रता इकाई होते हुए भी वास्तव में बहुत सी अन्य ईकाइयों पर निर्भर रहता है। शिल्प इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस चीज़ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। 

जैसे ताजमहल का अपना शिल्प है क़ुतुबमीनार का अपना तो संसद भवन का अपना।” 

उन्होंने कहा कि, “लघुकथा में जो नहीं कहा जाता वह महत्त्वपूर्ण होता है। लघुकथाकार को इसे ही समझना होगा। रचना और घटना में अंतर है। घटना का विवरण पत्रकारिता होती है। रचना एक वैचारिक उद्वेलन है। संवाद हो, परस्परिक अर्थवत्तापूर्ण अनुबंधन होना ज़रूरी है।” 

प्रथम सत्र के प्रारंभ में अतिथियों के द्वारा सरस्वती का पूजन किया गया एवं सुषमा शर्मा ‘श्रुति’ के द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। इस सत्र में सूर्यकांत नागर को लघुकथा का शिखर सम्मान, सिरसा से पधारी डॉ. शील कौशिक को समालोचना सम्मान, रश्मि स्थापक को नवलेखन सम्मान एवं अंतरा करवड़े को समग्र सम्मान प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त देशभर से पधारे हुए 43 अन्य साहित्यकारों को पद्म विभूषण सम्मान, पद्म भूषण सम्मान, लघुकथा रत्न सम्मान एवं कृति सम्मान से सम्मानित किया गया। संस्था द्वारा आयोजित वैश्विक लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं का भी सम्मान किया गया। क्षितिज संस्था के द्वारा प्रकाशित की गई लघुकथा पत्रिका एवं अन्य कई पुस्तकों का इस आयोजन में लोकार्पण किया गया। इस वार्षिक पत्रिका का संपादन सतीश राठी एवं दीपक गिरकर के द्वारा किया गया है। 

संस्था अध्यक्ष सतीश राठी के द्वारा अतिथियों का परिचय और स्वागत भाषण दिया गया। 

दूसरे सत्र में लघुकथाओं में मनोविज्ञान विषय पर बोलते हुए अदिति सिंह भदोरिया ने कहा कि, “लघुकथा में जहाँ पर संवेदना और अंतर्द्वंद्व होते हैं वहाँ पर मनोविज्ञान शुरू हो जाता है। आज के समय में पुराने विषयों से हटकर नए विषय और नए शिल्प की नए मनोविज्ञान के साथ आवश्यकता है।” देश की जानी-मानी साहित्यकार ज्योति जैन ने कहा कि, हिंदी भाषा का साहित्य बहुत समृद्ध है जिसे निरंतर पढ़ा जाना चाहिए। उन्होंने बाल मनोविज्ञान के साथ स्त्री और पुरुष के मनोविज्ञान पर भी अपने विचार प्रस्तुत किए। लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की निदेशक कांता राय ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि, “अब लघुकथा के सृजन से धुँध हट रही है और लघुकथा का आकाश स्वच्छ हो रहा है। प्राचीन काल से परिमार्जित होकर ही नूतन लघुकथाओं को लिखने की प्रेरणा मिल रही है और मनुष्य के मनोविज्ञान की समझ आ रही है।” इस सत्र का संचालन प्रीति दुबे के द्वारा किया गया। 

आयोजन के तीसरे सत्र में लघुकथा की आकारगत विशेषता और मारक शक्ति विषय पर प्रख्यात समालोचक डॉ. पुरुषोत्तम दुबे ने कहा कि लघुकथा के आकार का कोई पैमाना नहीं होता। विषय अपना आकार स्वयं चयन कर लेता है। उन्होंने विभिन्न उदाहरणों से लघुकथा के आकार और मारक शक्ति पर विषय को समझाने का काम किया। भोपाल से आई डॉ. वर्षा ढोबले ने भी इस विषय पर अपने विचार अभिव्यक्त किए। इस सत्र का संचालन सुषमा व्यास राजनिधि के द्वारा किया गया। 

आयोजन के चतुर्थ सत्र में प्रसिद्ध नाट्य कर्मी नंदकिशोर बर्वे के द्वारा पाँच लघुकथाओं का भावपूर्ण वाचन किया गया। इस सत्र में लगभग 25 लघुकथाकारों के द्वारा लघुकथा पाठ किया गया। प्रख्यात साहित्यकार अश्विनी कुमार दुबे के द्वारा एवं कथाकार बलराम अग्रवाल के द्वारा इन समस्त लघुकथाओं पर प्रभावी विवेचना प्रस्तुत की गई। संस्था के कोषाध्यक्ष सुरेश रायकवार के द्वारा आभार व्यक्त किया गया। 

आयोजन में मुंबई, दिल्ली, जयपुर, भोपाल, पंजाब, हरियाणा, बिहार, देवास, उज्जैन, बीकानेर, इन्दौर और अन्य कई शहरों से लघुकथाकारों ने अपनी सहभागिता प्रदान की। 

दीपक गिरकर
सचिव: क्षितिज संस्था, इंदौर
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड, 
इंदौर-452016
मोबाइल: 9425067036
मेलआईडी:deepakgirkar2016@gmail.com

हाल ही में

अन्य समाचार