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संस्था क्षितिज के द्वारा आयोजित माँ पर लघुकथा गोष्ठी

 

हर माँ का एक धर्म होता है और हर धर्म में माँ एक होती है—सूर्यकांत नागर

नगर की साहित्यिक संस्था क्षितिज के द्वारा आयोजित माँ पर लघुकथा पाठ के आयोजन में अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर ने कहा कि, “स्त्री का हर रूप ममतामयी माँ का होता है। माँ का प्यार निर्ब्याज, निःस्वार्थ और तर्कातीत होता है। माँ बदले में कुछ नहीं चाहती उसका प्यार सच्चा होता है। वेदव्यास ने कहा है कि करुणा, दया, प्रेम, त्याग और सहिष्णुता एक ही स्थान पर देखना है तो माँ के हृदय में झाँको। माँ का आँचल कितना ही मैला हो संतान को उसमें प्यार और अपनत्व की गंध महसूस होती है। दुनिया की हर माँ का एक ही धर्म होता है और दुनिया के प्रत्येक धर्म में एक ही माँ होती है।”

मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ उपन्यासकार अश्विनी कुमार दुबे ने कहा कि, “माँ का स्थान जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। वह जननी है, उससे ही हमारे जीवन का विकास हुआ है। इस प्रकार उसके उपकार कोई नहीं भुला सकता। साहित्य में एवं अन्य कलाओं में माँ की महिमा का विस्तार पूर्वक वर्णन हुआ है। इधर लघुकथाओं में हमारे कथाकारों ने माँ को आदर पूर्वक याद किया है। माँ पर जितना भी लिखा जाए, वह कम है और माँ से संबंधित हर व्यक्ति के अनुभव अलग-अलग हैं, विशेष हैं, जिनकी अभिव्यक्ति उन्होंने आज पढ़ी गई लघुकथाओं में की है। इस प्रकार माँ की महिमा का वर्णन लघुकथाओं में हमें विस्तार से देखने को मिलता है। इन लघुकथाओं में प्रेम और करुणा का स्वर विद्यमान है।”

आयोजन में सर्वश्री: नंदकिशोर बर्वे, आर एस माथुर, किशनलाल शर्मा, बृजेश कानूनगो, ज्योति सिंह, राम मूरत राही, पुरुषोत्तम दुबे, दीपक गिरकर, सतीश राठी, रामचंद्र धर्मदासानी, बालकृष्ण नीमा, ज्योति जैन, अंतरा करवड़े, वसुधा गाडगिल, चेतना भाटी चंद्रा सायता, वर्षा ढोबले, सुषमा शर्मा, विद्यावती पाराशर के द्वारा लघुकथा का पाठ किया गया। 

संस्था अध्यक्ष, सतीश राठी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। आयोजन का संचालन सुधा गाडगिल ने किया तथा आभार संस्था के सचिव, दीपक गिरकर ने माना। 

साहित्यिक संस्था क्षितिज के द्वारा आयोजित माँ पर लघुकथा पाठ

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