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सुशील शर्मा की पाँच किताबें विमोचित

 

गाडरवारा। विगत रविवार चेतना साहित्यिक संस्था के तत्वाधान में स्थानीय पीजी कॉलेज स्थित आडीटोरियम में स्व. प्रतिभा श्रीवास्तव स्मृति साहित्य सम्मान में विमोचन समारोह नगरपालिका अध्यक्ष शिवांकात मिश्रा, पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक, वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाशचन्द्र डांगरे एवं चेतना के सरंक्षक मिनेन्द्र डागा के आतिथ्य में तथा वरिष्ठ साहित्यकार कुशलेन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता में आयोजित हुआ।

कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा परमाल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। मोहद के युवा साहित्यकार मुकेश माधव ने सस्वर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। मंचासीन अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान संस्था के सदस्यों द्वारा किया गया। अपने स्वागत भाषण में मिनेन्द्र डागा ने कहा कि ओशो की पावन धरा गाडरवारा क्षेत्र में साहित्य सृजन निरंतर हो रहा है, आज के दौर में यह सुखद अहसास कराता है। उन्होंने अपील की कि साहित्यकार गौ माता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए भी रचनाएँ लिखें।

श्रीमती प्रतिभा श्रीवास्तव की स्मृति में ‘प्रतिभा साहित्य सम्मान भोपाल’ की ख्यातिलब्ध युवा महिला साहित्यकार श्रीमती कीर्ति श्रीवास्तव को प्रदान किया गया। मंचासीन अतिथियों ने श्रीमती कीर्ति श्रीवास्तव को स्मृति चिह्न, शाल, श्रीफल, सम्मानपत्र एवं नगद राशि प्रदान की। इस अवसर पर कीर्ति श्रीवास्तव ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

तदोपरांत नगर के साहित्यकार सुशील शर्मा की पाँच कृतियाँ ‘दोहा दिवाकर’ दोहा संग्रह, ‘कमुदनी’ कुडंलियाँ संग्रह, ‘गोविन्द गीत’ दोहामय गीता, ‘नन्ही बूंदें’ क्षणिकाएँ, ‘शक्कर के दाने’ लघुकथा संग्रह का विमोचन करतल ध्वनि के बीच मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। चेतना संस्था द्वारा शाल, श्रीफल एवं सम्मानपत्र के साथ उनका सम्मान किया गया। विमोचति कृतियों की समीक्षा सतीश नाइक ने प्रस्तुत की। अपने लेखकीय उद्बोधन में सुशील शर्मा ने अपनी रचनाधर्मिता के बारे में विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि सृजन समयापेक्ष होना आवश्यक है, साहित्य समाज को जोड़ता है। उन्होंने कहा कि साहित्य जब समाज से जुड़ता है तब ही उसकी सार्थकता दृष्टित होती है। इस अवसर पर अपने उद्बोधन में नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष शिवाकांत मिश्रा ने कहा कि साहित्य राष्ट्र का निर्माण करता है, साहित्य व्यक्ति का विकास करता है। उन्होंने कहा कि हमें गर्व है कि हमारे क्षेत्र में निरंतर साहित्य सृजन हो रहा है। उन्होंने वायदा किया कि वे अपने क्षेत्र में साहित्य के लिए सुझाए गए हर कार्य को पूरा करेंगे। पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक ने आयोजन की प्रशंसा करते हुए कहा कि साहित्य समाज का पथ प्रदर्शक होता है। उन्होंने रामायण का उदाहरण देते हुए कहा कि रामायाण अविश्वास से विश्वास की ओर ले जाती है। माँ सीता के समक्ष जब हनुमान जी ने मुंदरी फेंकी तो सीता जी तुरंत ही जान गई थी कि यह अँगूठी रामजी की ही है, उनके मन में ज़रा सा भी संदेह पैदा नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि साहित्य में यह शक्ति होती है कि वह समाज की सोच का बदल सकता है। नरसिंपुर से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाशचन्द्र डोगरे ने कहा कि साहित्य जितना सहज सरल होगा वह उतनी ही अपनी छाप छोड़ेगा। उन्होंने विमोचित किताबों के कुछ अंश पढ़कर सुनाए, उन्होंने कहा कि यह सुखद है कि इस क्षेत्र में साहित्य की अपनी परंपरा रही है जिसका निर्वहन आज के दौर में भी हो रहा है और नवोदित रचनाकार सामने आ रहे हैं। कार्यक्रम के अध्यक्ष कुशलेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि हमारी संस्कृति का क्षरण हो रहा है, हमारा नैतिक अवमूल्यन हो रहा है ऐसे में साहित्य सृजन का स्वरूप भी बदला जाना आवश्यक है। हम संक्रमणकाल से होकर गुज़र रहे हैं, हमें इसे बचाने के लिए वैचारिक क्रांति की आवश्यकता है जो साहित्य के माध्यम से हो सकती है।

विभिन्न संस्थाओं द्वारा साहित्यकार सुशील शर्मा का सम्मान किया गया। कार्यक्रम मेें ज़िले के साहित्यकार सुनील तन्हा, मुकेश माधव, बृजबिहारी कौरव, पोषराज अकेला, पुष्पेन्द्र सिंह का सम्मान स्मृति चिह्न देकर किया गया। कार्यक्रम का संचालन विजय बेशर्म ने किया और आभार प्रदर्शन नगेन्द्र त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम में ज़िले से आए श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही।

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