वैश्विक हिंदी परिवार की समृद्ध संगोष्ठी: ‘विदेश में हिंदी नाटक’
विश्व समाचार 3 Jun 2024
ग्रेटर नोएडा, 3 जून 2024: वैश्विक हिंदी परिवार के तत्त्वावधान में दिनांक: 2 जून 2024 को जापान के ओसाका विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर और हिंदी साहित्यकार प्रो. तोमियो मिजोकामी की अध्यक्षता में ‘विदेश में हिंदी नाटक’ विषय पर एक महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के आयोजन में विश्व हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वातायन-यूके और भारतीय भाषा मंच का सम्मिलित सहयोग भी प्राप्त था। उल्लेख्य है कि वैश्विक हिंदी परिवार की ऐसी संगोष्ठियों में विश्व के कोई पचास देशों के साहित्यकार, चिंतक और बुद्धिजीवी भी शिरकत करते रहे हैं; इस कारण इन संगोष्ठियों के विशेष महत्त्व को साहित्यिक गलियारों में प्रमुखता से रेखांकित किया जाता है।
इस संगोष्ठी के आरंभ में, हिंदी साहित्यकार और कुशल मंच संचालक, अलका सिन्हा ने कहा कि आज इस मंच पर विदेशों में लिखे जाने वाले हिंदी नाटकों की दशा और दिशा तथा हिंदी रंगमंच के सामने आने वाली चुनौतियों तथा परिवर्तनों पर चर्चा होगी। उन्होंने शुरूआत में ही कहा कि इस संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रो. तोमियो मीजोकामी विदेशों में हिंदी शैक्षणिक नाटकों का मंचन करने वाले पहले नाटककार रहे हैं। सुश्री अलका सिन्हा ने संगोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री चितरंजन त्रिपाठी एवं चर्चा में शिरक़त करने वाले वक्ताओं नामत: डॉ. शैलजा सक्सेना, श्री अगस्त्य कोहली, श्री कृष्ण टंडन और राजेंद्रप्रसाद सदासिंह के बारे में भी संक्षिप्त परिचय दिया। सुश्री अलका ने कहा कि इन सभी विशिष्ट वक्ताओं का विदेशों में मंचित किए जा रहे हिंदी नाटकों से गहरा जुड़ाव रहा है।
मंच का संचालन कर रहे ब्रिटेन के नाटककार प्रतिबिंब शर्मा ने कहा कि हज़ारों वर्षों पूर्व भरत मुनि ने ‘नाट्य शास्त्र’ की रचना करके हमारा मार्गदर्शन किया है। कैनेडा की कथाकार, डॉ. शैलजा सक्सेना ने कैनेडा की ज़मीन को उर्वर बना रही हिंदी साहित्य सभा और हिंदी राइटर्स गिल्ड की भूमिकाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रारंभ में कैनेडा में प्रवासियों के जीवन में आने वाली समस्याओं और संघर्षों को वर्णित करने वाले छोटे-छोटे नाटक लिखे-मंचित किए गए। उन्होंने भारतीय डायस्पोरा को हिंदी की परंपरा और इसके साहित्य से संबद्ध करने के लिए नाटकों के लेखन-मंचन पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने बताया कि विदेश में नाट्य लेखन में अभी सक्रियता नहीं आई है। ब्रिटेन में हिंदी नाटकों के लेखन-मंचन में चुनौतियों की चर्चा करते हुए श्री कृष्ण टंडन ने कहा कि वह ब्रिटेन और दिल्ली में वह कोई तीस वर्षों से नाटकों से जुड़े रहे हैं। हम ब्रिटेन में संसाधनों, धन और ख़ासतौर से प्रस्तुतकर्ताओं तथा कलाकारों की कमी से जूझ रहे हैं। उन्होंने ब्रिटेन आकर स्वयं नाटक लिखना आरंभ किया जिनके मंचन के लिए उन्हें संस्थाओं से अनुदान लेना पड़ता था। कठोर परिश्रम करते हुए वर्ष में दो-तीन नाटकों का ही मंचन हो पाता था। उन्होंने स्वयं द्वारा मंचित कुछ नाटकों की क्लीपिंग का भी प्रदर्शन किया। अमेरिका के नाटककार श्री अगस्त्य कोहली ने कहा कि उनकी रंगमंच से संबंधित यात्रा दिल्ली के स्कूलों में पढ़ाई के समय से ही हो गई थी। अमरीका आने के पश्चात काफ़ी समय तक वह नाटकों की दुनिया से दूर रहे। फिर, अपने एक मित्र की सलाह पर उन्होंने इसमें दिलचस्पी लेनी शुरू की तथा कुछ नाट्य कंपनियों के साथ काम किया। उन्होंने अमरीका में कुछ नाट्य कंपनियों का उल्लेख किया तथा ‘प्रतिध्वनि’ नामक संस्था द्वारा दी जा रही सहायताओं का भी उल्लेख किया जिनसे वह लाभांवित रहे। मॉरिशस के नाटककार राजेंद्रप्रसाद सदासिंह ने बताया कि मॉरिशस में आज़ादी के पहले और उसके बाद आए गिरमिटिया समुदाय ने मिल-बैठ कर नाट्य परंपरा का सूत्रपात किया। यूपी और बिहार से आए बंधुआ मज़दूरों ने मनोरंजन के उद्देश्य से नौटंकी और नाटकों के मंचन की नींव डाली। उन्होंने सैंकड़ों दर्शकों के बीच ‘सत्य हरिशचंद्र’, “लंकादहन’ और ‘भरत मिलाप’ के कथानकों पर नाटक मंचित किए। कालांतर में, सिनेमा के आगमन से नाटकों के मंचन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक, श्री चितरंजन त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में बताया कि उनका रंग-मडल मूलतः हिंदी नाटकों का ही मंचन करता है। विश्व रंगमंच और नाट्य सिद्धांतों को जानने के लिए अंग्रेज़ी सहित्य अत्यंत उपादेय साबित होता है। नए नाटक कम लिखे-मंचित किए जाने के कारण हिंदी नाटकों की दशा और दिशा प्रभावित हुई है। किन्तु, इस दिशा में उनके साथियों और मित्रों का सहयोग निरंतर मिलता रहा है। उन्होंने बताया कि लोगबाग नाटक, संस्कृति और कला के बारे में बातें तो ख़ूब करते हैं; परन्तु, वे नाट्य मंचन देखने के बजाय सिनेमा देखना अधिक पसंद करते हैं। इसलिए अधिकतर उन्हें दर्शकों को फोन करके नाटक देखने के लिए बुलाना पड़ता है।
संगोष्ठी को अपना सान्निध्य देने वाले, वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष, श्री अनिल जोशी ने कहा कि प्रवासी नाटकों को उनका परिवार बड़े उत्साह के साथ सहयोग प्रदान करेगा। उन्होंने बताया कि ब्रिटेन की नाट्य परंपरा दुनिया की सबसे समृद्ध परंपरा है। वहाँ के कलाकारों को नाट्य मंचन करके उतनी अच्छी आय हो जाती है जितनी कि फ़िल्मी कलाकारों को होती है। उन्होंने बताया कि विदेशों में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय तथा भारतीय सांस्कृतिक सहयोग परिषद के सहयोग से नाट्य मंचन को प्रोत्साहित किया जा सकता है। जापान के साहित्यकार प्रो, तोमियो मीजोकामी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि नाट्य मंचन शिक्षण का एक प्रमुख साधन है और इसके माध्यम से भाषा को भी बेहतर ढंग से सीखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध नाट्य विशेषज्ञ श्री अंकुर जी के माध्यम से वह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से गहराई से जुड़े थे। तदनंतर, उन्होंने कुछ नाट्य मंचन की क्लीपिंग का भी प्रदर्शन किया।
इस प्रकार यह संगोष्ठी अत्यंत रोचक तथा श्रोता-दर्शकों के लिए ज्ञानवर्धक रही। कार्यक्रम का समापन श्री पीयूष श्रीवास्तव के विस्तृत, आत्मीय धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ।
(प्रेस रिपोर्ट—डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
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