आजकल
शायरी | ग़ज़ल वेणी शंकर पटेल 'ब्रज'18 Jan 2018
महलों के अंदर क़ैद हैं कैसे सबेरे आजकल
छाये हुए हैं मुल्क में ग़म के अँधेरे आजकल
अब सफ़र आसां नहीं है लूट लेंगे आबरू
राह में मिल जायेंगे ऐसे लुटेरे आजकल
आस्तीनों में जिनकी पल रहे विषधर जहाँ
डर रहे हैं रहनुमाओं से सपेरे आजकल
जब उन्हें मालूम हुआ मैं लिख रहा हूँ फ़ैसले
वो लिफ़ाफ़े भेजते हैं घर पे मेरे आजकल
रोशनी ग़ायब हुई सीना फुलाये है अँधेरा
जुगनुओं के लग रहे गलियों में फेरे आजकल
फ़ाइलों में क़ैद हैं "ब्रज" देखिये सब योजनायें
दफ़तरों में घूसखोरों के हैं डेरे आजकल
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