बारिश की रिमझिम सी मेरी आवाज़ सुन
अनूदित साहित्य | अनूदित कविता श्रीमती प्रवीण शर्मा30 Oct 2014
(ऑक्टेवियो पाज़ की कविता "ऐज़ वन लिसन्ज़ टु द रेन" से प्रेरित)
बारिश की रिमझिम सी मेरी आवाज़ सुन,
नन्हीं फुहारों सी जीवन की पदचाप सुन।
चिकनी सफेद सीढ़ियों पर बहते ये सात रंग,
ज़रा सा कदम उठाओ चंचल जलधार में
पानी ही बयार है बयार में है पल यहाँ
अभी सूरज डूबा नहीं साँझ भी ढली नहीं।
कोहरे के आँचल से वक़्त के ये राग रंग
सुनो मुझे तुम प्रिय बारिश की आवाज़ में।
आँखे टिकी हैं क्यूँ मन के झरोखे पे
एक बार झाँक लो शब्दों के क्षितिज पार।
बारिश की लहरों में शब्दों नन्हे कदम
मचलते हैं पानी में तैरते बयार में।
हम जो हैं, सो हैं, बसे साँसों की तार में,
पल ढले दिन में तो दिन ढले साल में।
जुगनुओं से कौंधे पल पत्तों में घास में
फिर किश्ती से तैरते लम्हों की धार में।
माटी की ख़ुशबू सा फैलता एहसास तेरा
आग पानी में सिमटता ज़िंदगी का सार है।
बारिश के चाँद को ढूँढता संसार है ।
जो मिल न सका ज़िन्दगी में,
उसी का इंतज़ार है !
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