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चमत्कारी फल

एक राजा था। उसकी दो रानियाँ थीं। बड़ी रानी से एक पुत्र तथा छोटी रानी से चार पुत्र उत्पन हुए थे। छोटी रानी बहुत ही सुन्दर थी। अतः राजा उससे बेहद प्यार करते थे। राजकाज में भी वह राजा की सहायता करती थी। बड़ी रानी और उसका पुत्र सदा से ही उपेक्षा का शिकार होते रहे, लेकिन वे कर भी क्या सकते थे?

समय कभी एक सा नहीं रहता। सौभाग्य के साथ दुर्भाग्य भी जुडा रहता है। इसी दुर्भाग्य के चलते राजा को एक असाध्य बिमारी ने आ घेरा। उस बिमारी के कारण राजा अन्धा हो गया। कई नामी-गिरामी हकीमों और वैद्यों ने राजा का इलाज किया लेकिन वे राजा के अन्धत्व को दूर नहीं कर पाए। राजा इस बात को लेकर चिंतित रहने लगे कि राज्य की बागडोर किस राजकुमार को सौंपी जाए? यदि वह बड़ी रानी के पुत्र का राज्याभिषेक करते हैं तो छोटी रानी ऐसा कभी नहीं होने देगी। छोटी रानी के पुत्रों में से कोई भी इस योग्य नहीं था कि उसे राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया जाए। असमंजस की स्थिति मे घिरे राजा को कोई समुचित समाधान ढूँढे नहीं मिल रहा था।

एक रात राजा ने एक बड़ा ही विचित्र सपना देखा। उसे एक ऐसा वृक्ष दिखाई दिया जिसकी डालियाँ और तना चाँदी का बना हुआ था, पत्ते नीलम के बने हुए थे। उस पर खिले फूलों का रंग चटक सोने की तरह था और शाखों पर लगे फ़लों का रंग कुछ अद्भुत ही आभा लिए हुए चमचमा रहे थे। तभी कहीं से एक सुनहरी चिड़िया उड़ती हुई आयी और एक शाखा पर जा बैठी। थॊड़ी देर बाद उसका नन्हा सा बच्चा भी उड़ता हुआ आया और अपनी माँ के पास बैठ गया। बच्चे शरारती होते ही हैं। अपनी शरारत जारी रखते हुए वह फल को कुतरने लगा और दानों को नीचे गिराने लगा। फल में से जो दाने नीचे गिर रहे थे, वे हीरा-पन्ना की तरह दमक रहे थे। अपने बच्चे को लगभग डाँटते हुए चिड़िया ने उसे ऐसा करने से मना करते हुए कहा- "बेटा, जानते हो, यह एक अद्भुत-चमत्कारी फल है। यदि कोई अंधा व्यक्ति इस फल को खा ले तो उसकी दृष्टि वापस आ सकती है और अगर कोई इन दानों का रस निकालकर पी ले तो वह सदा जवान बना रह सकता है।" चिड़िया अपने बच्चे को और कुछ समझा पाती कि राजा की नींद खुल गई।

पूरी रात वह इस चित्र-विचित्र वृक्ष के बारे में सोचता रहा। उसे अब दिन निकलने का इन्तज़ार था।

सुबह होते ही उसने अपने सभी मंत्रियों-सेनापतियों, दरबारियों सहित परिवार के सभी लोगों को दरबार में लोगों को बुला भेजा और अपने सपने के बारे में जानकारियाँ देते हुए चारों राजकुमारों से कहा- "जो भी उस अद्भुत फल को लेकर आएगा, उसे राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया जाएगा।"

तीनों राजकुमारों ने अपने तेज़ गति से दौड़ने वाले घोड़ों को तैयार किया। कुछ स्वर्ण मुद्राएँ अपने साथ लीं। वे कूच करने ही वाले थे कि बड़ी रानी से उत्पन्न पुत्र भी वहाँ जा पहुँचा और उसने उस फल को खोज निकालने में राजा से अनुमति प्राप्त करनी चाही। छोटी रानी नहीं चाहती थी कि वह उसके बेटॊं के साथ जाए। राजा उसे आज्ञा दे, उसके पहले उसने उसके सामने एक शर्त रख दी कि वह अपने अन्य भाइयों के साथ जा तो सकता है, लेकिन उसे एक राजकुमार की हैसियत से नहीं बल्कि एक सेवक के रूप में जाना होगा।"

बड़े राजकुमार ने अपनी सहमति देते हुए कहा कि वह अपने छोटे भाइयों की उचित देखभाल करेगा। राजा की अनुमति लेकर वह अपने माँ के पास आया। माँ के चरण स्पर्श किया। माँ ने उसे अभियान में सफल होने के लिए आशीर्वाद दिया और उसे रोटियों की एक पोटली देते हुए कहा- "इसमें कुछ चना-चबैना और रोटियाँ हैं, रख लो। रास्ते में भूख लगे, तो खा लेना। अभियान में जाते हुए बेटे को माँ यह कहना नहीं भूली कि दया और धर्म को कभी नहीं भूलना। ज़रूरत पड़े तो दीन-दुखियों की मदद ज़रूर करते रहना।

चारों भाई राजमहल से विदा हुए। चलते-चलते वे एक चौराहे पर आकर रुके। वे समझ नहीं पा रहे थे कि अब किस दिशा में उन्हें आगे बढ़ना चाहिए। तभी बड़े राजकुमार ने अन्य भाइयों को समझाते हुए कहा- "वह अद्भुत वृक्ष न जाने किस दिशा में होगा, हममें से कोई नहीं जानता। और न ही यह जानते हैं कि वह किसके हाथ लगेगा। अतः एक साथ, एक ही दिशा में हमें आगे बढ़ने से कोई फ़ायदा नहीं होगा। कौन किस दिशा में जाना चाहता है, इस बात पर सहमति बनाई जाए और जितनी जल्दी हो सके हमें उस वृक्ष की तलाश में निकल जाना चाहिए।"

एक राजकुमार ने उत्तर की ओर, एक ने पूर्व की ओर एक ने पश्चिम की ओर जाना तय किया, ज़ाहिर है कि बड़े राजकुमार को दक्षिण की ओर जाना पड़ा।

घने जंगलों के बीच बने बीहड़ रास्तों से चलते हुए बड़ा राजकुमार निरन्तर आगे बढ़ता जा रहा था। तभी उसे किसी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। " इस बीहड़ में आख़िर कौन होगा और न जाने वह किस मुसीबत का मारा होगा?.. उसने सोचा। उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई, लेकिन कोई भी दिखाई नहीं दिया। अब वह उस दिशा की ओर बढ़ने लगा, जहाँ से कराहने की आवाज़ आ रही थी।

उसने देखा कि एक बुढ़िया वृक्ष के नीचे पड़ी हुई है। उसके शरीर पर अनेकों घाव बने हुए थे जिनमें से खून रिस-रिस कर बह रहा था। फ़ौरन अपने घोड़े से उतरकर वह उस बुढ़िया के पास गया और पूछा कि वह इस घने जंगल में कैसे आयी और उसका यह हाल किसने किया है? कुछ न कहते हुए बुढ़िया अब भी कराह रही थी। उसने अपनी बाँहों का सहारा देते हुए उठाया। उसके घावों को साफ़ किया। शायद वह बहुत दिनों से भूखी भी थी, यह जानकर उसने उसे भोजन करवाया और पानी पिलाया। खाना खाकर तथा पानी पीकर अब वह कुछ बतला पाने की स्थिति में आ गई थी। वह कुछ बतला पाती इससे पहले वह एक परी के रूप में उसके आगे खड़ी हो गई। अनेकों आशीर्वाद देते उसने बतलाया कि उसे एक दुष्ट राक्षस ने इस घने जंगल में क़ैद करके रखा है। इस कारण वह अपने देश नहीं जा पायी है। आगे बोलते हुए उसने कहा- "मैं तुम्हारी सेवा-सुश्रुषा से मैं बहुत ही प्रसन्न हुई।..अब यह बतलाओ कि तुम किस प्रयोजन से इस जंगल में भटक रहे हो। और मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूँ। राजकुमार ने अपनी सारी व्यथा-कथा उसे सुना दी। सारी बातों को सुनकर परी ने बतलाया कि वह दुष्ट राक्षस उस काले पहाड़ पर (दिशा इंगित करते हुए) रहता है, जहाँ लगभग पहुँच पाना असंभव ही है। मैं तुम्हें तीन चीज़ें देती हूँ। एक उड़ने वाला घोड़ा, एक तलवार और मणि। घोड़े पर सवार होकर तुम उस काले पहाड़ पर पहुँच सकते हो। मणि को मुँह में रखते ही तुम अदृश्य हो जाओगे। तुम्हारे अदृश्य हो जाने पर वह तुम्हें देख नहीं सकेगा। और इस तलवार से तुम उस राक्षस को मार सकोगे। राक्षस के बग़ीचे वे वह पेड़ भी लगा है, जिस पर अद्भुत फल लगते हैं जिसके प्रयोग से अंधों की आँखें ठीक की जा सकती हैं। उसने यह भी बतलाया कि उस राक्षस के मारे जाने के बाद वह भी आज़ाद हो जाएगी। अतः देर न करते हुए उसने राजकुमार को आगे बढ़ने की सलाह दी। राजकुमार ने उसको हार्दिक धन्यवाद देते हुए जाने की इजाज़त माँगी।

उसने तलवार को कमर पट्टे से बाँधा और घोड़े पर सवार हो गया। ऐड़ लगाते ही घोड़ा आसमान में उड़ने लगा था। कुछ देर में वह काले पहाड़ पर जा पहुँचा।

काले पहाड़ पर पहुँचने के साथ ही उसने मणि को अपने मुँह में रखा ताकि दुष्ट राक्षस की नज़रों में न आ सके। अब वह धीरे-धीरे आगे बढ़ता जा रहा था। उसने देखा काले पहाड़ की चोटी पर एक प्राकृतिक कुँआ सा बना हुआ है और उसकी तलहटी में एक भव्य किला बना हुआ है। उसने अनुमान लगा लिया कि राक्षस इसी महल में रहता है।

उसने किले के अन्दर प्रवेश किया। चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा पड़ा था। उसने अनुमान लगाया कि राक्षस इस समय किले में नहीं है। उसने बारीक़ी से किले का मुआयना करना शुरू किया। तभी उसने किसी स्त्री का करुण क्रदन सुना। ख़ामोशी के साथ उस दिशा में आगे बढ़ता गया। उसने देखा एक जेलखाने में एक युवती अपने घुटनों के बीच मुँह छिपाए रो रही है। उसे यह जानने की जिज्ञासा हुई कि आख़िर वह युवती है कौन? उसने अपने मुँह में छिपायी मणि को बाहर निकाला। मणि के बाहर निकलते ही वह अपने मूल स्वरूप में उस युवती के सामने प्रकट हो गया था।

अत्यन्त धीमी आवाज़ में उसने उस युवती को पुकारा। आवाज़ सुनते ही वह और ज़ोरों से रोने लगी। एक अजनबी को सामने देखकर वह यह समझ बैठी थी कि राक्षस अपना स्वरूप बदलकर आ गया है। उसने उसे धैर्य रखने और अपनी बात ध्यान से सुनने को कहा और बतलाया कि वह राक्षस नहीं बल्कि एक राज्य का राजकुमार है और वह इस स्थान पर उस दिव्य फल को प्राप्त करने की गरज से यहाँ तक आया है। उसने अब उस युवती से पूछा कि वह इस निर्जन किले में किस तरह आयी और क्यों कर उसे जेल में डालकर रखा गया है। युवती ने बतलाया कि वह भी एक राज्य की राजकुमारी है। उसकी सुन्दरता देखकर वह दुष्ट राक्षस मुझसे शादी करना चाहता था। जब मैंने इनकार कर दिया तो वह मुझे यहाँ उठा लाया। उसका यह कहना है कि यदि मैं उससे शादी कर लेती हूँ तो वह मुझे इस जेल की कोठरी से आज़ाद कर देगा।

वह आगे कुछ कहती इससे पहले एक तूफ़ान उठ खड़ा हुआ। वह इस बात का संकेत था कि राक्षस इस किले में प्रवेश करने आ रहा है। उसने युवक से प्रार्थना की कि वह कहीं छिप जाए अन्यथा वह राक्षस उसे मार डालेगा। युवती की बातें सुनते ही उसने मणि को अपने मुँह में रख लिया। मणि के मुँह में आते ही वह अदृश्य हो गया था।

तेज़ क़दमों से चलता हुआ वह राक्षस उस युवती के सामने आ खड़ा हुआ और पूछने लगा कि क्या उसने शादी करने का मानस बना लिया है अथवा नहीं। उस युवती के मना करने के साथ ही वह यह कहता हुआ वापिस होने को था कि यदि एक सप्ताह के भीतर वह अपनी मर्जी से शादी के लिए हाँ नहीं कहती तो वह उसे कच्चा चबा डालेगा। इतना कहकर वह किले से बाहर जाने लगा।

राक्षस के चले जाने के बाद उस युवती ने राजकुमार को बतलाया कि इस किले में इमली का एक बड़ा सा पेड़ है। उस पेड़ पर एक पिंजरा टँगा हुआ है। उसमें एक तोता क़ैद है। उस तोते में राक्षस ने अपना प्राण छिपा कर रख दिया है। यदि तुम उसे मार डालोगे तो राक्षस अपने आप मर जाएगा।

किले से बाहर निकलकर उसने उस पेड़ को खोज निकाला। पेड़ पर चढ़कर उसने पिंजरे में क़ैद तोते को अपनी पकड़ में लिया ही था कि भयंकर गर्जना करते हुए राक्षस आ धमका। और राजकुमार से तोते को न मारने की गुहार लगाता रहा। उसकी मान-मनौवल करने लगा, लेकिन उसने उस तोते का टेंटुआ पकड़ कर तलवार से उसके दो टुकड़े कर मार डाला।

उसने राजकुमारी को क़ैद से छुटकारा दिलाया और बाग़ में लगे दिव्य फलों को तोड़ कर अपनी झोली में भर लिया। उसके स्मरण मात्र से उड़ने वाला घोड़ा उसके सामने आ खड़ा हुआ। राजकुमारी को घोड़े पर बिठाते हुए वह भी उस पर सवार हुआ । दोनों के सवार होते ही घोड़ा हवा से बातें करने लगा।

कुछ ही समय में वह अपने राज्य में पहुँच गया था।

उसने दिव्य फलों को अपने पिता को देते हुए कहा- "पिताजी… इस फल को खाइए और अंधत्व से छुटकारा पाइए। फल का सेवन करते ही राजा की आँखों की रोशनी वापस आ गई थी। अब वे सब-कुछ देख सकते थे। अपनी आँखों की ज्योति वापस पाकर राजा ने उसे गले से लगा लिया और ढेरों सारे आशीर्वाद देते हुए घोषणा की वह आज से ही इस राजगद्दी का उत्तराधिकारी होगा।

साथ आयी राजकुमारी का परिचय उसने अपने पिता से करवाया और बतलाया कि किस तरह एक भयंकर राक्षस उसे उठाकर ले गया था।

राजकुमारी की सहमति से उसने अपने बेटे का विवाह कर दिया। इस तरह उस राज्य का खोया हुआ सुख वापस लौट आया था।

जिस तरह उस राज्य की प्रजा सुखपूर्वक रहने लगी थी, उसी प्रकार सब लोग ख़ुशी से रहें।

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