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चेन्नई से हिमाद्रि- मेरी शब्द-यात्रा

रचना: चेन्नई से हिमाद्रि तक ‘सड़क से’ 
लेखक: डॉ. पद्मावती
 

मैं न तो देवप्रयाग गया हूँ, न ही कर्णप्रयाग, न ही उखीमठ से तीसरे आयाम की (हेलीकॉप्टर से ) यात्रा की है।

किन्तु जब मैं इसे पढ़ रहा था, तो मैं भी लेखिका के साथ इस आनंदमय यात्रा का सहभागी बना था।

इस संस्मरण की विशेषता यह है कि ये अपने आप में एक कुशल यात्रा वृत्तांत भी है। बल्कि इसे यात्रावृत्तांत ही कहना ज़्यादा प्रासंगिक होगा, क्योंकि इसमें न केवल यात्रा विवरण है, अपितु छोटे-छोटे दृश्यों का ज़िक्र होना ही इसे कुशल बनाता है। इसे पढ़ते हुए मन में दृश्य बनता चला जाता है ऐसा प्रतीत होता है कि यह यात्रा न केवल लेखिका की है बल्कि उतनी ही पाठक की भी। निस्संदेह! लेखिका शब्दों से चित्र बनाने में सक्षम हैं। 

इसकी दूसरी विशेषता यह है कि इसमें न केवल दृश्यों का वर्णन है अपितु भावना का अर्पण भी है, संस्कृति का समावेश भी। साथ ही स्थान के बारे में आवश्यक जानकारी भी।

भावना का अर्पण इसलिए, कि लेखिका उलीच देती हैं स्वयं को, स्वत्व को, अहंकार का चोला उघाड़ कर।

यही समय होता है जब महसूस होती है स्वयं की नगण्यता, और व्यक्ति अर्पित कर देता है स्वयं को उस ब्रह्म में जो सर्वव्यापी है, चिरंतन है। जिसे उपनिषदों ने ‛रसोवैसह’ कहा है।

यही वो पल है जब अनुभूति संभव है ‛तत्वमसि’ की, ‛अहम ब्रह्मास्मि’ की। 

मैं लेखिका की तरह इस यात्रा को लेखिका की तरह साहसिक नहीं कहूँगा। इसका अभिप्राय यह यत्किंचित भी नहीं, कि मैं लेखिका के दृष्टिकोण को असत्य कह रहा हूँ। बल्कि मैं साहसिक इसलिए नहीं कह रहा क्योंकि ‛साहस’ शब्द में कर्त्ता का भाव छुपा है और जहाँ कर्त्ता का भाव है वहाँ उस ‛सच्चिदानंद’ की अनुभूति हो ही नहीं सकती। उसके लिए परमावश्यक है कि स्वयं के कर्त्ता भाव और अहंकार का त्याग किया जाए और लेखिका ने किया भी।

निश्चित ही, यह यात्रावृत्तांत-संस्मरण पठनीय है।

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