दुनिया / ज़िंदगी
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु डॉ. सुरेन्द्र वर्मा27 Oct 2018
कितने रंग
ज़िंदगानी के संग
गिन सकोगे
मिली ज़िन्दगी
कब वापस जाए
पता ही नहीं
ज़िंदगी तो है
मौत की धरोहर
लौटानी होगी
माँगी नहीं थी
मिल गयी ज़िंदगी
करें शुक्रिया
प्यार से पली
अनुभवों में ढली
धनी ज़िंदगी
एक अनेक
व्यापक या संकीर्ण
दृष्टि दुनिया
पुराने दिन
कहाँ गई दुनिया
अच्छी दुनिया
दिन बदले
बदली नहीं दुनिया
वहीं की वहीं
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता - हाइकु
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं