फ़िसादो दर्द और दहशत में जीना
शायरी | ग़ज़ल अब्बास रज़ा अलवी20 Jan 2019
फ़िसादो दर्द और दहशत में जीना
मिला यह आदमी को आदमी से
बुरा कहते हैं हम क्यों क़िस्मतों को
बढ़ी हैं रंजिशें अपनी कमी से
वतन ऐसा जलाया बिजलियों ने
सहम जाते हैं अब हम रोशनी से
जहाँ गुज़रा था एक बचपन सुहाना
वह दर छूटा है कितनी बेदिली से
न जब कोई तुम्हारे पास होगा
बहुत पछताओगे मेरी कमी से
कभी तो यह हक़ीक़त मान लोगे
तुम्हें चाहा है मैंने सादगी से
हुई सब ग़र्क़ वो ख़्वाहिश ‘रज़ा’ की
सुनाएँ किया तुम्हें अपनी ख़ुशी से
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