अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

गुणों की खान-मोटों के नाम

"जीवन में सकारात्मक सोच का स्थान बहुत अहम है। अगर आप सकारात्मक सोच नहीं रखते तो यकीन जानिये आप जल्द डिप्रेशन का शिकार हो जायेंगे और यह एक प्रकार का धीमा ज़हर है जिससे आप मर भी सकते हैं।" जब एक महाज्ञानी के यह शब्द सुने तो हम एकदम सतर्क हो गये-एकदम सकारात्मक सोचधारक। अब हम अपने मोटापे के प्रति भी अपनी समस्त पूर्व धारणाओं को तिलांजली दे सकारात्मक सोच रखने लगे हैं।

मोटापे की प्रवृत्ति दुबलापे से बिल्कुल भिन्न होती है। दुबला व्यक्ति यदि कोई प्रयास न भी करे तो वो दुबला ही बना रहता है एवं और दुबला नहीं हो जाता। मगर अगर मोटा व्यक्ति कोई प्रयास न करे तो उसका मोटापा दिन दूना रात चौगुना बढ़ता ही जाता है। इस बात को स्वीकार कर लेना चाहिये। इसे स्वीकारने में आपको कोई परेशानी भी नहीं होगी क्योंकि ऐसी बातें स्वीकार कर लेना आपकी फितरत में है जैसे कि आपने भ्रष्टाचार, अराजकता, जातिवाद को कितनी आसानी से स्वीकारा ही हुआ है, तभी तो निष्क्रियता के परिणाम स्वरूप मोटापे के तरह यह दिन रात अपनी बढ़त बनाये हुये है।

मेहनत तो हो नहीं पायेगी, तब दुबले होने से रहे फिर काहे चिन्ता करना। स्वीकार करो इसे खुले मन से, स्वागत करो इसका। नहीं भी करोगे तो भी यह तो बढ़ता ही जाना है। तो फायदे देखकर ही खुश हो लो बाकि कार्य तो यह खुद कर लेगा। मुझे वैसे भी मोटे व्यक्ति पतले दुबले व्यक्तियों से ज्यादा गुणी नजर आते हैं, देखें न कितनी खासियतें होती हैं इनमें। मानों कि गुणों की खान।

जैसा मैने देखा है कि मोटे लोग आम तौर पर हमेशा हँसते मुस्कराते रहते हैं जबकि दुबले पता नहीं क्यूँ गंभीर से दिखते हैं। हो सकता है मोटों का अवचेतन मन अपने आप पर, अपनी हालत देख, हँसी न रोक पाता हो और मुस्कराता हो, मगर जो भी हो हँसते, मुस्काराते ही मिलते हैं मोटे। अर्थात वे हँसमुख होते हैं।

फिर उन्हें देखने वाला भी तो हँस ही देता है। इतने टेंशन की जिन्दगी में कोई किसी के चेहरे पर हँसी बिखेर जाये तो इससे बड़ा साधुवादी कार्य क्या हो सकता है। वैसे किसी दुबले को कह कर देखिये कि भाई, हँसाओ। वो तरह तरह के चुटकुले सुनायेगा, हास्य कविता पढ़ेगा, फूहड़ सी मुख मुद्रा बनायेगा तब भी कोई गारंटी नहीं कि हँसी आ ही जाये, लॉफ्टर चैलेंज देखकर देख लो जबकि किसी मोटे से कह कर देखो। बस जरा सा हिल डुल दे। एक दो नाच के लटके झटके लगा दे, पूरा माहौल हास्यमय हो जायेगा। अर्थात वे मनोरंजक होते हैं।

अच्छा, आप किसी मोटे को मोटा कह कर भाग जाईये। वो सह जायेगा। आपको कुछ नहीं कहेगा। जो भी वजह हो, चाहे उसे पता हो कि वो पीछा नहीं कर पायेगा या थक जायेगा, मगर वो कहेगा कुछ नहीं। अर्थात वे सहनशील होते हैं।

पतलों को मैने देखा है कि चेहरा मोहरा कैसा भी हो जब भी घर से निकलेंगे, पूरा सज धज कर कि शायद सुन्दर दिखने लगें। मोटा व्यक्ति बिना सजेधजे, जिस हाल में है, वैसे ही निकल पड़ता है। वो जानता है कि वो हर हाल में भद्दा ही दिखेगा। वो यथार्थ को समझता है। तो वो स्थितियों से समझौता कर लेता है। अर्थात वे न सिर्फ यथार्थवादी होते हैं बल्कि समझौतावदी भी होते हैं।

मोटे व्यक्ति वैसे भी घूमने फिरने और खेल कूद से पहरेज करते हैं तो अधिकतर बैठे रहते हैं। अब बैठे बैठे क्या करें तो किताब पढ़ते हैं, कम्प्यूटर पर पढ़ते हैं तब ज्ञानार्जन कर ही लेते हैं। अर्थात वे ज्ञानी होते हैं।

जब मोटा व्यक्ति अन्य लोगों के साथ कभी पैदल कहीं निकल जाता है तो जगह जगह रुक कर भिखारियों और दुखियों का हाल पूछता है (भले ही इसकी वजह उसकी थकान हो और इस बहाने बिना शर्म के थोड़ा आराम मिल जाता है- क्योंकि मोटा व्यक्ति थोड़ा शर्मीला होता है) और उन्हें भीख में कुछ पैसे भी देता है। अर्थात वो दानी होता है।

आपको शायद ही पता हो मगर मोटा व्यक्ति पराई स्त्रियों पर खराब नजर नहीं रखता। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि वो यथार्थवादी होता है तो यह भली भाँति जानता है कि चाहे जैसी भी खराब नजर रखे, ुछ फायदा नहीं। कोई स्त्री उसे पूछने वाली नहीं। अतः अपने समझौतावादी स्वभाव के तहत विकल्प के आभाव में, वो हमेशा अच्छी नजर रखता है अर्थात वो चरित्रवान होता है। साथ ही उनकी पत्नी भी इस सत्य से परिचित होती हैं कि उनके पति पर कोई भी डोरे नहीं डालेगा अर्थात वो एक सुरक्षित पति होते हैं।

वैसे कभी कोई दुबला ट्रेन में या बस यात्रा में सीट पर बैठा हो तो उसे कोई भी खिसका कर जगह ले लेता है कि खिसकना जरा भईया मगर मोटों के साथ यह समस्या नहीं होती। वो तो पड़ोसी की भी आधी सीट घेरे होता है अर्थात वो विराजमान होता है।

मोटा व्यक्ति कभी विवादों और लफड़े में नहीं पड़ता। (शायद वो जानता है कि कहीं बात बढ़ गई तो भाग भी न पायेंगे। पिटने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचेगा) अर्थात वो विवादों में तटस्थ और स्वभाव से शांतिप्रिय होता है।

मैने तो यह भी देखा है कि मोटे व्यक्ति के पास पैंट शर्ट तक नये नये खूब ज्यादा होते हैं। अभी अभी सिलवाया और दो बार पहना नहीं कि मोटापा तो मंहगाई की गति से बढ़ता गया और कपड़े आम जनता की जेब की तरह छोटे। अब फैंक तो सकते नहीं कि शायद कल को दुबले हो ही जाये तो पहनेंगे। (अर्थात मोटा व्यक्ति आशावादी होता है) अभी नया ही तो है। तो धर देते हैं। फिर न कभी दुबले हुये, न कभी मंहगाई कम हुई और न कभी उनका इस्तेमाल तो नये नये कपड़े जमा होते रहे। गिनती बढ़ती गई जो कि दुबले के नसीब मे कहाँ। उसकी तो पैन्ट शर्ट फट ही जाये तभी छूटे। अर्थात वे (इस मामले में) समृद्ध होते हैं।

मोटा जब कहीं ज्यादा खाना खाता है तो उसे उसकी सेहतानुरुप माना जाता है और कोई बुरा नहीं मानता बल्कि लोग कहते पाये गये हैं कि भाई साहब, क्या भूखे ही उठने का इरादा है वरना कोई दुबला उतना खाये तो लोग कहने लगते हैं कि न जाने कितने दिन का भूखा है या आगे लगता है खाना नहीं मिलेगा। अर्थात वे सम्मानित होते हैं।

अब चूँकि मोटा व्यक्ति ज्यादा कहीं आता जाता नहीं और अक्सर घर पर ही सोफे में बैठा होता है तो बच्चों पर लगातार नजर बनीं रहती है अर्थात वो एक अच्छा अभिभावक होता है।

कभी स्कूटर या सायकिल से गिर जाओ ो दुबले की तो हड्डी गई ही समझो मगर मोटे की चरबी से होते हुए हड्डी तक झटका पहुँचने के लिये जोर का झटका चाहिये इसलिये अक्सर हड्डी बच जाती है अर्थात वो दुर्घटनाप्रूफ होता है।

अनेकों गुणों की खान का क्या क्या बखान करुँ मगर अगर कोई दुबला मर जाये तो कारण खोजना पड़ता है कि क्यूँ मरा.. शायद शुगर बढ़ गई होगी, हार्ट फेल हो गया होगा मगर मोटा मरे तो बस एक कारण सबके मुँह से कि मोटापा ले डूबा। अर्थात उसका कारण बिल्कुल साफ और पारदर्शी होता है। नो कन्फ्यूजन। बस एक कारण और मात्र एक: मोटापा।

काश, मेरे देश के विकास की गति भी मोटी हो जाये बिना किसी प्रतिरोध के। सब सकारत्मक सोच रखें और फिर देखिये कैसी दिन दूनी रात चौगुनी विकास की दर बढ़ती है। मगर यह भ्रष्टाचार, अराजकता, गुंडागिरी की ट्रेड मिल तो हटाओ!! जरूर मोटी हो जायेगी।

आमीन!!!

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

कविता

दोहे

कविता-मुक्तक

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

स्मृति लेख

आप-बीती

लघुकथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं