समीर लाल के १७ दोहे
काव्य साहित्य | दोहे समीर लाल 'समीर'31 May 2008
दान धरम के नाम पर, लाखों दिये लुटवाये
क्षमादान वो दान है, जो महादान कहलाये।
गल्ती से भी सीख लो, आखिर हो इन्सान
जो गल्ती को मान लें, उनका हो सम्मान।
कौन मिला है आपसे और कितना लेंगे जान
जो कुछ भी हो लिख रहे, उसी से है पहचान
सब साथी हैं आपके, कोई न तुमसे दूर
अपनापन दिखालाईये, प्यार मिले भरपूर।
जरा सा झुक कर देखिये, सुंदर सब संसार
तन करके जो चल रहे, मिलती ठोकर चार।
मौन कभी रख लिजिये, थोड़ा कम अभिमान
जितना ज्यादा सुन सको, उतना आता ज्ञान।
बुरा कभी मत सोचिये, न करिये ऐसा काम
दिल दुखता हो गैर का, किसी का हो अपमान।
साधु संत औ’ महात्मा, सब गाते हैं दिन रात
सुक्ति समीरानन्द की , जय हो उनकी नाथ।
जो स्वामी जी कह रहे, नहीं आज की बात
जीवन का यह सार है, हरदम रखना साथ।
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