हाथ मिलाएँ
अनूदित साहित्य | अनूदित कविता डॉ. रजनीकान्त शाह1 May 2020 (अंक: 155, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
कवि: निरंजन भगत
अनुवादक: डॉ. रजनीकान्त एस.शाह
लाइए आपका हाथ मिलाएँ
(कहता हूँ हाथ फैलाये!)
कहिए क्या हासिल करना होगा मुझे?
आपके हाथ में तो काफ़ी सारा-
धन होगा, सत्ता होगी, कीर्ति होगी....
क्या क्या नहीं होता आपके हाथ में?
मेरे किसी काम का नहीं,
ख़ाली आपका हाथ....
ख़ाली आपका हाथ?
ना, ना हमारे ख़ाली हाथों में भी कितना है!
हमारे इस हाथ में उष्मा और स्पंदन-
अरे, उसके द्वारा आइए,
परस्पर के भाव मिलाएँ,
और अकुशलता वश अच्छे-बुरे कितने ही काम करते
हमारे इन हाथों को अनुकूल करें!
अपरिचित हो? भले ही!
फिर भी देखिये, यह हाथ फैलाकर कहता हूँ-
लाइए आपका हाथ, मिलाते हैं!
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