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हर काम अच्छे के लिए होता है

महाराजा शमशेर बहादुर को शिकार खेलने का बहुत शौक था। शिकार में सदा उनके साथ उनका वज़ीर गजराज सिंह होता था और वो शिकार खेलने में राजा का मार्गदर्शन करता था। एक बार बन्दूक चलाते हुए राजा का घोड़ा बिदक गया, राजा नीचे गिर गए और उनकी छोटी उँगली कट गयी। गजराज सिंह ये सब देख रहा था। राजा के पास आकर बोला, “महाराज जो कुछ भी होता है अच्छेके लिये होता है।” महाराजा को ये बात अच्छी नहीं लगी। राजधानी में लौट कर सब से पहले राजा ने क्रोध में आकर गजराज सिंह को हवालात में बन्द कर दिया।

दिन बीतते चले गये। राजा को शिकार का शौक आया मगर इस बार वो अकेले ही गये। गजराज सिंह तो बेचारा हवालात में चक्की पीस रहा था। शिकार की खोज में राजा को ध्यान नहीं रहा, वो भटक गये और अपनी सीमा पार करके अकेले ही भीलों के देश में जा पहुँचे। इन भीलों पर राजा ने बहुत अत्याचार किये थे। आज उन्हें अपना बदला लेने का अच्छा मौका मिला था।

उन्होंने राजा को पकड़ के एक पेड़ से बांध दिया और बलि की तैयारी करने लगे। राजा बेबस था। कुछ कर भी नहीं सकता था। पूजा के बाद भील पुजारी ने भील सरदार को आदेश दिया कि राजा का सिर काट कर देवता के चरणों में चढ़ा दिया जाए। जैसे ही भीलों के सरदार ने राजा का सिर काटने को अपनी तलवार उठाई उसकी निगाह राजा की कटी उँगली पर पड़ गई। उसने अपना हाथ रोक कर पुजारी से कहा,“पण्डित जी, क्योंकि इस राजा का शरीर खण्डित है, इस कारण इस की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती।” 

पण्डित जी ने जब ये सब देखा तो कहने लगे - “सरदार ठीक कहता है। चूंकि ये राजा बलि के योग्य नहीं है, इस को छोड़ दिया जाए।” ऐसा कह कर भीलों ने राजा को छोड़ दिया और वह अपनी राजधानी को लौट आया। वापस आकर राजा ने सब से पहले गजराज सिंह को कारागार से बुलाया, उस से क्षमा मांगी और पूरे सम्मान के साथ अपने पास बिठाकर कहा, “गजराज सिंह तुम ने ठीक कहा था, हर काम अच्छे के लिये होता है।”

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