हरसिंगार
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु ज्योत्स्ना 'प्रदीप'1 Mar 2016
1.
बड़ा बेज़ार
रो रहा था सुबह
हरसिंगार।
2.
ओ परिजात
क्या घटा कल रात
सुबह झरा।
3.
हर-सिंगार
भोर में पतझर
रात्रि बहार।
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