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जनतंत्र उर्फ़ जानवर तंत्र

‘मलाईदार विभाग के लिये बंदर-बांट जारी’ अख़बार में ख़बर पढ़ते ही बंदर की खोपड़ी घूम गयी। उसने फ़ौरन शेर के दरबार पहुँच गुहार लगायी, "महराज, क़सम ऊपर वाले की जो किसी बंदर ने कभी मलाई खाई हो लेकिन जब भी सरकार बनने वाली होती है ये इन्सान हमें बदनाम करने लगते हैं। अरे, मलाई तो बिल्ली खाती है। अगर कहना है तो बिल्ली-बाँट कहें।"

"लेकिन उसमें भी बदनामी तो हम जानवरों की ही होगी," शेर का बिना शेव किया चेहरा कुछ और ग़मगीन हो गया। इससे पहले कि वे कोई फ़ैसला कर पाते घोड़ा हिनहिनाने लगा, "महराज, बंदर की बदनामी तो तब होती है जब सरकार बनने वाली होती है लेकिन हम घोड़ों को तब बदनाम किया जाता है जब सरकार गिरने वाली होती है।"

"वह कैसे?" शेर को उल्टवासी समझ में नहीं आयी तो घोड़े ने समझाया, "अक्खा दुनिया जानती है कि घोड़ा स्वामिभक्त जानवर है लेकिन ये इन्सान जब अपना ईमान ख़रीदते-बेचते हैं तो उसे हॉर्स-ट्रेडिंग कहते हैं। ये तो सरासर हम घोड़ों का करेक्टर एसिसनेशन है।"

"भौं..भौं..भौं..," तभी कुत्ता दौड़ता हुआ आया और हाँफते हुये बोला, "हमारी लायल्टी का रिकार्ड तो स्पॉटलेस है लेकिन ये इन्सान हमेशा एक-दूसरे को हमारा नाम लेकर गरियाता है और जो उसकी सरकार बनाने में हेल्प न करे उसे कुत्ते की मौत मारने की धमकी देता है। क्या हमारी मौत इतनी डिसग्रेसफुल होती है?"

शेर कुछ कहने जा रहा था कि तभी उल्लू जम्हाई भरते हुये बोल पड़ा, "महराज, सबसे ज़्यादा ज़ुल्म तो हम ग़रीबों पर है। सरकार बनाने के लिये कोई उल्लू सीधा करता है तो कोई उल्लू बनाता है। हम उल्लू, उल्लू न हुये उल्लू की चर्खी हो गये। जैसा चाहा वैसा घुमा दिया।"

"हुँ, इसका मतलब मामला बहुत सीरियस है। हमें फ़ौरन कुछ करना होगा," ग़ुस्से से काँपते हुये शेर खड़ा हो गया। तभी गधा हाथ जोड़ गिड़गिड़ाने लगा, "दुहाई है महराज, दुहाई। हम गदहों की विनती है कि आप इस मामले में अपनी टाँग न अड़ायें।"

"क्यों?" शेर ने भृकुटि तानी तो गधा उछलते हुये बोला, "महराज, इस घपड़चौथ के चलते अक्सर हमारी बिरादरी के लोग पॉवर में आ जाते हैं। इत्ती मौज रहती है कि क्या बतायें! जिसे देखो वह हमें बाप बनाने के लिये तैयार रहता है। यक़ीन मानिये सारी योजनायें हम ही बनाते हैं और फिर बंदर-बाँट कर मलाई खुद ही खा जाते हैं। सब कुछ अजगर की तरह डकार कर हम गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं इसीलिये यह घोड़ा जो पूरा उल्लू है , जान ही नहीं पाता है कि असली बागडोर किसके हाथ में है।"    

"इसका मतलब डेमोक्रेसी में असली राजा अपने ही बंदे हैं," शेर का रोम-रोम पुलकित हो उठा।

"लेकिन महराज, इसमें हमारा रोल क्या है?" गधे के भाषण में अपना ज़िक्र न होने से विचलित कुत्ते ने पूछा।

"तुम्हारा रोल क्या और मोल क्या? तुम्हारी दुम तो 12 साल बाद भी टेढ़ी रहती है इसलिये तू न घर का है और न घाट का।" शेर ने कुत्ते को डपटा फिर बोला, "मैं घोषणा करता हूँ कि आज से लोकतंत्र का दूसरा नाम जानवर-तंत्र उर्फ जनतंत्र होगा।"

    ‘जंगलराज - ज़िंदाबाद’ उपस्थित जन-समुदाय (जानवर - समुदाय) ने नारा लगा कर हर्ष-ध्वनि की। तब से इतिहास हर बार अपने को दोहराता रहता है और किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं है।

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टिप्पणियाँ

shashi goyal 2019/09/15 03:00 PM

badhiya vyang bal katha ke roop main

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