काग़ज़ के फूल
शायरी | ग़ज़ल दीपक नरेश13 Mar 2009
मेरे हर ख़त को तुम दिल से लगाकर रखना
मेरे हिस्से की जो यादें हैं बचाकर रखना
लम्हा लम्हा जो कभी साथ बिताया हमने
मीठे अहसास को पहलू में छिपाकर रखना
जी तेरा चाहे तो रो लेना घड़ी भर के लिए
अपनी चाहत को ज़माने से छुपाकर रखना
कल को मुमकिन है मुझे भूल जाओ तुम
किसी कोने में मेरी तस्वीर छुपाकर रखना
बात अहसास की होती है यूँ ही अक्सर
कभी ख़्यालों में गुमसुम सी इबारत लिखना
कौन इस दौर में चाहत की क़द्र करता है
तुमको चाहूँगा हर जनम ये वादा रखना
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