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मेरी दुबई यात्रा - 2 : क्रूज़ का सफ़र 

वैसे तो दुबई में बहुत से एडवेंचर का लुत्फ़ लिया। लेकिन बुर्ज ख़लीफ़ा के बाद जो दूसरा सबसे यादगार था वह था एक क्रूज़ में सफ़र करना। यह मेरी ज़िन्दगी का पहला इत्तेफ़ाक़ था पानी के जहाज़ में बैठने का। सुबह जैसे ही आँख खुली दिल में एक ख़ुशी थी कि आज शाम पानी के जहाज़ में होंगे। इस सफ़र के ;लिए भी हमने वही वक़्त चुना दिन और रात के मिलने का वक़्त। जिससे कि समंदर को दिन और रात दोनों तरह से देख सकें। क्रूज़ में दाखिल होते ही सीधे जा पहुँचे क्रूज़ की छत पर। जहाँ से अतंत समंदर को देख सकें।

यह पहला मौक़ा था इतने सारे जहाज़ों को एक साथ देखने का। कोई इधर से जा रहा था तो कोई उधर से आ रहा था। कुछ ही देर में सूरज के छिपने का वक़्त हो चला। उसकी बची हुई लाल किरणें नीले पानी को छूकर अपने घर जाने वाली थीं।

 पानी हिलने की वजह से किरणें भी हिल रहीं थीं। ऐसा लग रहा था जैसे ऊपर से कोई सूरज को हिला रहा हो। कुछ ही वक़्त में हमारा शिप भी अपने सफ़र पर रवाना हो गया। बेहद ख़ुशी का मौक़ा था। हवाई जहाज़ से ज़्यादा अच्छा पानी के जहाज़ में लग रहा था। सूरज पूरी तरह से छिप चुका था। समन्दर के किनारे पर खड़ी हर इमारत पर रौशनी रक़्स (नाच) करने लगी थी। अब भी किनारे पर बसा शहर नज़र आ रहा था। शहर को देखने पर लग रहा था जैसी कोई इमारतों की कहकशाँ (आकाशगंगा) हो।

इन नज़ारों को हमेशा अपने पास रखने के लिए मैंने भी वीडियो और फोटो क्लिक करना शुरू कर दिए और तब तक करता रहा जब तक रात के खाने का वक़्त नहीं हो गया। खाना खाकर बेली डांस (एक ख़ास तरह का अरबी नृत्य ) और टेनोरा शो (फ़ायर डांस) का प्रोग्राम था। टेनोरा शो का मज़ा भी बिल्कुल अलग ही था। वैसे तो दुबई में बहुत सी चीज़ों का लुत्फ़ उठाया, लेकिन बाक़ी कहानियाँ फिर कभी। 
 

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नोट- सुधि पाठक इस यात्रा संस्मरण को पढ़ते…

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