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अंडमान—देश का गौरव 

जमशेदपुर से पाँच घंटे की रेल यात्रा कर हम दिन के बारह बजते-बजते कोलकाता पहुँच गए। दिन भर कोलकाते की मॉल्स में घूमते-घूमते और यहाँ की भीड़-भाड़, टैक्सी, बसों की चिल-पों से मन बेचैन हो चला था। अगली सुबह अंडमान के लिए कोलकाता से सुबह नौ बजे की हमारी फ़्लाइट थी, लिहाज़ा हम सुबह के आठ बजते-बजते ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ एयर पोर्ट कोलकाता पहुँच गए। कोलकाता से पोर्ट ब्लेयर (अंडमान की राजधानी) की उड़ान सिर्फ़ दो घंटे की है। विमान के उड़ान भरने के बाद सीट के आगे वाली झोली में रखे फ़ैशन पत्रिका, स्काई शॉप देखने के बाद हमने कुछ जलपान के साथ कॉफ़ी पी। कुछ ही देर में पायलट ने हमें बताया कि अब कुछ ही मिनटों में हमारा विमान ‘वीर सावरकर एअरपोर्ट’ पोर्ट ब्लेयर उतरने वाला है। मैंने खिड़की से नीचे देखा तो ऐसा लग रहा था मानो चारोंं ओर गहरे नीले रंग के पानी के बीच कोई हरे रंग का बाग़ीचा हो, नज़ारा काफ़ी ख़ूबसूरत था, पोर्ट ब्लेयर उतरकर हम सीधे अपने होटल गए। चारों ओर हरियाली और शांत वातावरण अत्यंत लुभा रहे थे, नारियल पानी पी कर हम एकदम तरोताज़ा हो गए, कोलकाता की सारी थकान छूमंतर हो गई। 

अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह हिमालय पर्वत शृंखला का हिस्सा है जो उत्तरी पूर्व से दक्षिणी पूर्व बंगाल की खाड़ी, बर्मा से सुमात्रा (इंडोनेशिया) तक फैले हैं। अंडमान-निकोबार में छोटे–बड़े कुल मिलाकर 572 द्वीप हैं इसलिए इसे अंडमान-निकोबार द्वीप समूह भी कहा जाता है। पोर्ट ब्लेयर अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह की राजधानी है जो बंगाल की खाड़ी में स्थित है। यहाँ के सभी द्वीप वन-संपदा से भरपूर अपने आप में प्राकृतिक हरियाली और पेड़-पौधों से भरे हैं। 572 द्वीपों में से सिर्फ़ 37 द्वीपों पर ही आबादी है जिसमें दो द्वीपों पर अभी भी जन-जातियाँ रहतीं हैं, ये जन-जातियाँ पाषाण युगीन मानव हैं। अंडमान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि मालद्वीप से जुड़ी है। यहाँ से ग़ुलामों का व्यापार होता था। जन-जातियों के बारे में कहा जाता है कि पोर्तुगीज़, चीनी और अरब जहाज़ी व्यापारी ने अफ्रीकन दासों को जहाज़ दुर्घटनाग्रस्त होने पर उन्हें यहाँ छोड़ दिया। ये जन-जातियाँ वन के फूल-फल के अलावा जंगली सूअर और हिरण पका कर खाते हैं। ये पत्थर रगड़कर आग निकालते हैं और नग्न रहते हैं। जब भारत ग़ुलाम था बहुत समय तक ईस्ट-इंडिया कम्पनी ने इन द्वीपों की तरफ़ अपना ध्यान नहीं दिया लेकिन कुछ समय पश्चात यहाँ के द्वीपों के बारे में कम्पनी ने दिलचस्पी लेनी शुरू की। भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस ने इन द्वीपों के सर्वे करने का आदेश दिया और अंडमान में भारतीय क़ैदियों की पहली बस्ती 1789 में चाथम द्वीप पर बसायी गई। अंडमान द्वीप ‘काला पानी’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके दो कारण हैं। पहला यह कि अंडमान समुद्र के नीले गहरे पानी से इसका नाम काला पानी पड़ा। दूसरा यह कि अँग्रेज़ों द्वारा जिन क्रांतिकारियों को सज़ा सुनाई जाती थी, उन्हें इन द्वीपों पर भेज दिया जाता था। इस सज़ा को काला पानी के नाम से संबोधित किया जाने लगा। उन दिनों क़ैदियों को खुला छोड़ दिया जाता था। चारों ओर समुद्र और घने जंगल होने के कारण क़ैदियों के भाग जाने का कोई डर नहीं था। 

पहले दिन हमने सेल्युलर जेल देखा। सेल्युलर जेल अंडमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में स्थित है। इस जेल का निर्माण 1896 से 1906 के बीच हुआ था। जेल की एक कोठरी 13.5 फ़ीट लंबी और 7 फ़ीट चौड़ी है। इन कोठरियों में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी पूरी जवानी बिता दी। जेल की एक-एक ईंट में शहीदों के खून-पसीने का इतिहास छुपा है। वीर सावरकर और उनके बड़े भाई विनायक दामोदर सावरकर इसी जेल में एक साल तक एक-दूसरे को देख भी नहीं पाए थे। जेल के आँगन में खड़ा पीपल का पेड़ जिसने शहीदों पर हुए अत्याचारों को देखा है आज ‘लेज़र शो’ के ज़रिए उन्हें बयाँ करता है। क़ैदियों को नारियल के छिलके को कूट-कूटकर स्वच्छ करना होता था, एक निश्चित मात्रा में बैल की तरह कोल्हू चलाकर नारियल के तेल निकालना होता था। मात्रा कम होने पर उनके हाथ बाँधकर कोड़े बरसाए जाते थे। कितने क़ैदी बेहोश हो जाते और कितने की मौत इस दौरान हो गई। खाने में दूषित, विषैला खाना मिलता था, दिन-भर में बस एक ही ग्लास पानी दिया जाता था। रात के वक़्त शौच या पेशाब आने पर बाहर जाने की इजाज़त नहीं थी, उसे कंट्रोल करना होता था या कोठरी में ही करना होता था। बीमार पड़ने पर जेलर डेविड बैरी के सामने पेश किया जाता था। वह यदि उचित समझता तो अस्पताल भेजा जाता वरना ईश्वर के सहारे छोड़ दिया जाता। जिसने सेल्युलर जेल आकार अपनी श्रद्धांजलि इन शहीदों को दे दी मानो उसने एक तीर्थ कर लिया। सेल्युलर जेल के उन सभी शहीदों को शत-शत नमन। फरवरी 1979 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इस जेल को “राष्ट्रीय स्मारक” के रूप में राष्ट्र को समर्पित किया। 

सेल्युलर जेल देखने के बाद पोर्ट ब्लेयर से बीस मिनट की बोट यात्रा कर हम ‘रास आइलैंड’ गए। इस द्वीप को अँग्रेज़ों ने पोर्ट ब्लेयर की राजधानी बनाया था। यहाँ सरकारी कार्यालय और मुख्य आयुक्त का कार्यालय, स्वीमिग पूल, बेकरी घर, जेलर का मकान था। अब सब ढह गए हैं और वहाँ बड़े-बड़े पेड़ उग आए हैं। 

हैवलाक आइलैंड— दूसरे दिन हम पोर्ट ब्लेयर से चार घंटे की समुद्री यात्रा कर हैवलाक आइलैंड गए। वैसे तो पूरा अंडमान ही ख़ूबसूरत है लेकिन इस दो घंटे की यात्रा के दौरान ऐसा लगा मानो प्रकृति ने अपनी सारी ख़ूबसूरती यहीं लुटा दी हो। समुद्र के गहरे नीले पानी के किनारे-किनारे विशाल घने जंगल बेहद ख़ूबसूरत लग रहे थे। हैवलाक आइलैंड से ‘स्पीड बोट’ द्वारा हम ‘एलिफैंट बीच’ गए। आधे घंटे की यह स्पीड बोट की यात्रा अपने आप में एक एडवेंचर था। जल-क्रीड़ा में दिलचस्पी रखने वालों को यह ‘बीच’ काफ़ी आकर्षित करेगा। यहाँ आप ‘स्नोर्कलिंग’, ‘स्कूबा डाइविंग’, सन बाथ, सेलिंग, पैरासेलिंग जैसे रोमांचक खेलों का आनंद ले सकते हैं। हैवलाक आइलैंड में ही ‘राधानगर बीच’ है। यह बीच अपने आप में बहुत ख़ूबसूरत है। और यहाँ से सूर्यास्त का नज़ारा मनमोहक लगता है। 

तीसरे दिन हम वापस फिर चार घंटे की समुद्री यात्रा कर हैवलाक आइलैंड से पोर्ट ब्लेयर लौट आये। चौथे दिन पोर्ट ब्लयेर से बीस मिनट की बोट यात्रा कर ‘नॉर्थ बे आइलैंड’ गए। यह आइलैंड भी दूसरे आइलैंड की तरह काफ़ी ख़ूबसूरत है, इस आइलैंड में भी तमाम प्रकार की जल-क्रीड़ाएँ जैसे स्कूबा डाइविंग, स्नोर्कलिंग, सी-वाकिंग इत्यादि होती हैं। यहाँ की लहरों में ज़्यादा उफान नहीं रहता, हमने सी-वाकिंग की, यह काफ़ी रोमांचक था। ‘सी वाकिंग’ मतलब हमने समुद्र की सतह पर वाक किया। हमें 32 किलो का हेलमेट पहनाकर नीचे सीढ़ियों के सहारे 22 फ़ीट गहरे समुद्र में एक ट्रेंड व्यक्ति के साथ उतार दिया गया। आधे घंटे समुद्र की सतह पर वाक करने के बाद उसी सीढ़ियों पर चढ़कर हम वापस फिर ‘बीच’ पर आ गए। वाक़ई वह आधे घंटे का समय बेहद रोमांचक था जो जीवन भर याद रहेगा। रंग-बिरंगी मछलियाँ हमें छूते हुए निकल गईं, हमने समुद्र के तह से कुछ कोरल मुट्ठी में ले लिए, वह कोरल आज हमारी ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ा रहे हैं। इसके बाद हमने ‘वाइपर आइलैंड’ देखा, इस आइलैंड में फाँसी घर स्थित है, स्वतंत्रता सेनानी शेर अली को यहीं फाँसी दी गई थी। 

पोर्ट ब्लेयर में हमने अपने परिजनों के लिए कुछ गिफ़्ट ख़रीदे। कोलकाता की तरह यहाँ शॉपिंग मॉल्स तो नहीं है लेकिन फिर भी अच्छा बाज़ार है। ‘सागरिका बाज़ार’ से हमने नारियल के बने गणेश भगवान की मूर्ति, नारियल के बंदर और कुछ सीप के सामान लिए। यहाँ के लोग शांत एवं ईमानदार हैं। मुख्य रूप से यहाँ की भाषा हिन्दी है। वैसे तो यहाँ सभी क्षेत्र के लोग मिलेंगे लेकिन ज़्यादातर बंगाली और तमिल हैं कारण यह है कि अंडमान कोलकाता और चेन्नई दोनों ही जगहों से नज़दीक पड़ता है। दो घंटे की हवाई यात्रा और तीन दिन की समुद्री यात्रा से कोलकाता या चेन्नई से अंडमान आया जा सकता है। यहाँ के बंगाली कहते हैं कि 1972 में जब बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ था तो उस समय बहुत से शरणार्थी भारत आ गए थे जिन्हें भारत सरकार ने यहाँ अंडमान में शरण दी थी। यहाँ का मुख्य भोजन मछली और भात है। 

चार दिन (21 अक्टूबर से 24 अक्टूबर 2013) अंडमान और निकोबार देखने के बाद पाँचवें दिन यहाँ से विदा लेने का समय आ गया, पोर्ट ब्लेयर से कोलकाता की हमारी उड़ान दिन के ग्यारह बजे थी। इस यात्रा के दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा, जाना। जाना इंसानी स्वाभाव को कि वह कितना क्रूर हो सकता है, कितना अत्याचारी हो सकता है और यह भी जाना कि झूठ के सामने झुकने से अच्छा है देश के लिए शहीद हो जाना। एकबार मुड़कर मैंने अंडमान को देखा और उसे अलविदा कह दिया। ढेर सारी यादों को साथ ले मैं विमान में बैठ गई और छोड़ आई अंडमान के सफ़ेद, सुनहले रेत पर अपने पैरों के निशान। 

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