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फूलों का गुलदस्ता

आज मिसेज शर्मा का जन्मदिवस है। 70 वसंत देख चुकी मिसेज शर्मा ने नौकर और कामवाली बाई के सहारे अपने 2 बी.एच.के. फ़्लैट में एक छोटी सी पार्टी रखी है। अपने और मिस्टर शर्मा के कुछ ख़ास मित्रों को खाने पर बुलाया है। मिस्टर शर्मा दोस्तों का दिल खोलकर स्वागत कर रहे हैं, बात बात पर ठहाके लगा रहे हैं। मिसेज शर्मा भी ख़ुश हैं लेकिन बीच-बीच में वह दूसरे कमरे में एकांत में चली जाती हैं, कुछ देर के बाद वापस मित्रों के बीच चली आतीं हैं। उन्हेंं देख ऐसा लग रहा है मानो किसी गहरी सोच ने उन्हें घेर रखा है। वह बार-बार अपनी उम्र जोड़ रही हैं। आज ज़िन्दगी उनसे उनकी उम्र का हिसाब माँग रही है। आज ज़िन्दगी उनसे बार-बार पूछ रही है कि इन सत्तर सालों में आपने किया क्या? आपने जीवन में क्या पाया और क्या खोया? मिसेज शर्मा के हृदय में एक टीस सी उठ रही है—सारी उम्र मैंने घर ही तो सँभाला, बच्चे और पति के प्रति पूरी लगन से ज़िम्मेवारी निभाई, पड़ोसी, रिश्तेदार, मित्रों से भी नाता निभाया, यही तो किया मैंने . . . लेकिन मिला क्या? कुछ भी नहीं, बच्चे तक तो अपने नहीं हुए। मैंने तो सब कुछ खो दिया पाया कुछ भी नहीं—नीरा कैनेडा में और राजीव अमेरिका जाकर बस गए। शुरू में दो-चार साल घर आते रहे लेकिन जब वहाँ उनके पैर अच्छी तरह जम गए तो वे हमें ही वहाँ बुलाने लगे। हम भी जाते थे लेकिन वहाँ हमारे दिन नहीं कटते। वहाँ सभी इतने व्यस्त रहते कि बात करने के लिए वीकेंड का इंतज़ार करना होता। वो भी क्या वीकेंड . . . वीकेंड में तो उन्हेंं दुनिया भर के घरेलू काम निपटाने होते। हाँ वीकेंड में हमारा डिनर बाहर होता; तो डिनर टेबल पर हमारे बीच कुछ न कुछ बातें हो जाया करतीं। अब तो वीडियो कॉल के सहारे बातें होती हैं। लेकिन ऐसा लगता है मानो हमारे बीच कुछ दूरी सी आ गई है; अब वो खुलापन नहीं रहा, हम अब बातचीत में औपचारिक हो गए हैं। आज यदि मैं न रहूँ तो पति के अलावा परिवार का कोई भी सदस्य मुझे ‘मिस’ नहीं करेगा। अवश्य मेरी परवरिश में खोट रही होगी, इन्हीं ख़्यालों में खोई मिसेज शर्मा कभी मित्रों के बीच जाकर बैठती तो कभी अपने कमरे में एकांत में आ बैठतीं और गहरी सोच में डूब जाती। फिर वह मित्रों के बीच से उठकर अपने कमरे में आ बैठी हैं। कमरे के दरवाज़े पर कोई दस्तक देता है, वह आवाज़ देती हैं, “अंदर आ जाओ . . . ” 

हाथों में रंग-बिरंगे फूलों का गुलदस्ता लिए जींस और टॉप पहने एक युवती खड़ी कमरे में प्रवेश करती है और मिसेज शर्मा को फूलों का गुलदस्ता देते हुए कहती है, “हैप्पी बर्थडे आंटी!”

“थैंक यूँ बेटा, लेकिन मैंने तुम्हें पहचाना नहीं।”

“मैं अनुराधा . . . “

“अनुराधा? . . . कौन अनुराधा? मुझे कुछ ठीक से याद नहीं आ रहा . . . “

“आंटी, मैं शीला बाई की बेटी अनुराधा . . . कुछ याद आया?” 

“ओ हो अनुराधा . . . तू इतनी बड़ी हो गई! बड़ी होकर तो तू और भी स्मार्ट हो गई। 

“शीला कैसी है?” 

“माँ ठीक है आंटी, अब ज़रा उठने-बैठने में तकलीफ़ रहती है इसलिए कहीं आती-जाती नहीं; घर पर ही पड़ी रहती हैं। आज आपका बर्थडे है, 16 मई मुझे यह तारीख़ अच्छी तरह याद है। आंटी, आप अपना बर्थडे बड़े शौक़ से मनाया करती थीं, आज के दिन हम सपरिवार आमंत्रित रहते थे। आंटी आज मैं आपका आशीर्वाद लेने भी आई हूँ, मेरी पोस्टिंग डिप्टी कमिश्नर के पद पर अपने ही शहर में हुई है।” 

“वाह! ये तो बहुत अच्छी ख़ुशख़बरी लेकर आई हो बेटा तुम!”

“नीरा दी, भैया कैसे हैं, कहाँ हैं?” 

“दोनों अपनी अपनी जगह ठीक हैं, ख़ुश हैं। दोनों विदेश में ही सैटल हो गए हैं, बस हम दोनों अकेले यहाँ रह गए हैं अनु।”

“अरे आंटी अब आप अकेले नहीं हो, मैं हूँ न आप लोगों के साथ . . . आपकी अपनी अनुराधा! इसलिए तो मैं वापस अपने ही शहर लौटी हूँ।”

मिसेज शर्मा ने अनुराधा को बाँहों में भर लिया, अनुराधा की बातों ने उन्हेंं तृप्त कर दिया। मिसेज शर्मा बीते दिनों को याद करने लगीं कि जब अकस्मात शीला बाई का पति एक्सीडेंट में चल बसा, उस समय अनुराधा मात्र 11 वर्ष की थी। मिसेज शर्मा ने शीला से कहा था कि तुम घबराओ नहीं मैं अनुराधा की सारी ज़िम्मेवारी लेती हूँ। मिस्टर शर्मा बैंक में ऑफ़िसर की पोस्ट पर कार्यरत थे। बँधी-बँधाई आय थी, मिसेज शर्मा घरेलू ख़र्च से पैसे बचाकर अनुराधा की स्कूल की फ़ीस भर दिया करतीं, किताब, कॉपी, यूनिफ़ॉर्म सारे ख़र्च उठातीं। फिर जब अनुराधा ने 98% पाकर प्लस टू पास किया तो मिसेज शर्मा अपने पति से कहकर अनुराधा की आगे की पढ़ाई के लिए अपने नाम पर लोन लिया और अनुराधा को पढ़ने के लिए दिल्ली भेज दिया। आज जब डिप्टी कमिश्नर बनकर अनुराधा वापस अपने शहर लौटी है तो सबसे ज़्यादा कोई ख़ुश है तो वह है अनुराधा की शर्मा आंटी। आज मिसेज शर्मा का रोम-रोम आह्लादित है, उनके अन्तर्मन से आवाज़ आ रही है–मैंने एक सार्थक जीवन जिया, मेरा जीना सार्थक हुआ। वह कमरे से आहिस्ता-आहिस्ता निकलीं, मित्रों के बीच गई म्यूज़िक का वॉल्यूम तेज़ किया और लगी थिरकने। 

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