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बैंफ़ नेशनल पार्क, अल्बर्टा, कैनेडा

बैंफ़ नैशनल पार्क, अल्बर्टा, कैनेडा

एथेबास्का ग्लेशियर, अल्बर्टा कैनेडा

स्काईवाक जैसपर नेशनल पार्क, अल्बर्टा कैनेडा

लेक लुईस, बैंफ़ नेशनल पार्क, अल्बर्टा कैनेडा

टोरोंटो, लेक ओंटेरियो वाटर फ़्रंट

नियाग्रा फ़ाल्स बोट राईड

कैनेडा में एक छोटा हिंदुस्तान 

18 जून 2018— हम वैंकूवर में होटल ‘कम्फर्ट इन-सरे’ में खड़े थे। होटल की साज-सज्जा, महिला मैनेजर एवं होटल के कर्मचारियों के बात-व्यवहार देख यह समझते देर न लगी कि होटल हमारे किसी देसी भाई का है। हम कुल दस लोग थे, दिन के दो बज रहे थे, दोपहर के भोजन का समय हो चला था, कुछ काग़ज़ी औपचरिकताएँ पूरी हो जाने के बाद ड्राइवर एंड्रू हमें एक इंडियन रेस्टोरेन्ट ले जाने आया। रेस्टोरेन्ट की दीवारों पर भारत के गाँवों के दृश्यों की पेंटिंग्स लगी हुई थी। कहीं-कहीं भँगड़ा करते हुए महिला और पुरुष की भी पेंटिंग्स लगीं हुईं थीं। हिन्दी गाने बज रहे थे और जो बात मुझे सबसे अच्छी लगी वो यह कि वहाँ बैठे भारतीय अपनी ज़बान हिन्दी और पंजाबी में बातें कर रहे थे। बाहर सड़कों पर भी कुछ भारतीय अपने पारंपरिक लिबास में दिखे। थोड़ी देर के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अपने देश में ही हूँ, कैनेडा में एक छोटा हिंदुस्तान नज़र आया। 

वैंकूवर के बाद हमारा अगला पड़ाव गोल्डेन था, हम सुबह नाश्ते के बाद अपने लक्ष्य की ओर निकल पड़े। बस में बैठते ही हँसी-मज़ाक, चुटकुले, अंताक्षरी, तरह-तरह की गप्पें शुरू हो गईं और सात घंटे की बस यात्रा का हमें कुछ भी पता नहीं चला। बस यात्रा के साथ-साथ साइड सीन का भी हमने भरपूर आनंद लिया, रास्ते में फ़ास्ट फ़ूड रेस्टोरेन्ट ‘टाको-बेल’ में हमने लंच किया और एक घोस्ट टाऊन जिसे मैंने कई अँग्रेज़ी फ़िल्मों में देखा था, देखने का सुअवसर मिला। घोस्ट टाऊन मतलब भूतहा शहर . . . नाम से ही सिहरन हो जाती है। पाँच-छ: किलोमीटर में भूल-भूलैया की तरह फैले इस घोस्ट टाऊन में क़रीब-क़रीब बीस घर थे, जनरल स्टोर्स थे। कहीं-कहीं घरों के बरामदों में नर कंकाल लटके हुए थे, कहीं कहीं काली बिल्ली आने-जाने वालों को अपनी चमकीली आँखों से घूर रही थी। कहीं किसी-किसी कमरे के बाहर दरवाज़े पर बड़े-बड़े ताले लटक रहे थे और अंदर लाल, नीली रोशनी में किसी कमरे से पियानो बजाने की आवाज़ आ रही थी तो किसी कमरे से किसी के गाने की आवाज़ आ रही थी। मतलब लोगों को डराने का भरपूर प्रयास किया गया था; लेकिन हमें सिहरन तक नहीं हुई। वैसे भी जब माथे पर सूर्य की रोशनी चमक रही हो और दस लोगों का साथ हो तो डर किसे लगता है! 

पुराने ज़माने की मोटरकारों, मोटरबाइकों और ट्रकों का एक संग्रहालय भी था, मोटर कार में रुचि रखने वालों ने यहाँ कुछ ज़्यादा समय बिताया। इतने बड़े घोस्ट टाऊन में सिर्फ़ एक व्यक्ति काउंटर पर बैठा मिला जो आने-जाने वालों पर निगाह रख रहा था और घोस्ट टाऊन के बारे में कुछ भी पूछने पर उसकी जानकारी भी दे रहा था। वैसे छोटे शहर जहाँ किसी समय ज़िन्दगी बसा करती थी, प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, भूकंप, सूखा अथवा युद्ध की वजह से लोगों को अपनी घर-गृहस्थी छोड़कर उस जगह से पलायन करना पड़ा। ऐसे छोटे शहरों को घोस्ट टाऊन का नाम देकर सरकार ने टूरिस्ट आकर्षण केंद्र बनाया है। विदेशों में घोस्ट टाऊन ज़्यादा देखने को मिलते हैं, अँग्रेज़ी फ़िल्मों में भी घोस्ट टाऊन देखे जाते हैं। 

गोल्डेन में सुबह जब आँखेँ खुलीं तो खिड़की से झाँकती हुई सूर्य की किरणें मुझे जगा रही थीं। मैंने खिड़की से पर्दा हटाया तो कुछ पल के लिए उस मन भावन दृश्य को मूक बन देखती रह गई। बर्फ़ से ढकी पर्वत शृंखलाओं को सूर्य की सुनहली किरणें स्पर्श कर रही थीं। पर्वत शृंखलाएँ ख़ुशी से चमक उठी थीं। यह नज़ारा देख ऐसा लग रहा था मानो सुंदरता का हरेक रंग क़ुदरत ने यहाँ बिखेर दिया हो। 

वैंकूवर से गोल्डेन जाते समय एक घटना हो गई, हमारा बस ड्राइवर एंड्रू एक कनेडियन नौजवान था जो केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था और पार्ट टाइम ड्राइवर का भी काम करता था। हम भारतीय विदेश जाकर अपने-आप को लाख बदलने की कोशिश कर लें लेकिन अपने पूर्वजों से जो संस्कार हमने पाए हैं हमारा पीछा नहीं छोड़ते। हमारे ग्रुप में कुछ बुज़ुर्ग दंपती भी थे। ड्राइवर एंड्रू को शीघ्र ही उन्होंने अपना बेटा बना लिया। उसे अपने साथ लंच कराया और सबसे बड़ी बात कि हम सब उसे अपने ग्रुप का सदस्य मान बैठे। एंड्रू भी जब हम सबसे मिला तो बड़ा ही ख़ुश होकर मिला, बातें की, हमें ख़ुशी हुई कि ड्राइवर हमारी तरह का है। लेकिन दूसरे ही दिन उसके व्यवहार में काफ़ी रूखापन आ गया जिसे हम सबने महसूस किया। हम समझ नहीं पा रहे थे कि आख़िरकार रात भर में ऐसी कौन सी बात हो गई कि एंड्रू का व्यवहार इतना बदल गया। हुआ ये कि एंड्रू को उसके एक दिन के वेतन का 10% हमें उसे टिप देनी थी जो कि हमारे दिमाग़ से उतर गया। जब यह बात हमें समझ आई तो हमने अपनी भूल स्वीकार की और उसे दो दिन की टिप्स तुरंत दे दीं। लेकिन इस बात को लेकर उसका व्यवहार इतना रूखा हो गया कि बीच बियाबान में वह बस रोक कहने लगा कि आप सब को मैं यहीं छोड़ चला जाऊँगा तब आपकी अक़्ल ठिकाने आएगी। ख़ैर ट्रैवल एजेंट से बात कर मामले को सलटाया गया और ड्राइवर बदला गया। एक बार फिर पैसों पर टिकी पश्चिमी सभ्यता का एहसास बड़े नज़दीक से हुआ। 

गोल्डेन के बाद इनवरमियर होते हुए हम बैम्फ़ पहुँचे। रास्ते में एथेबास्का ग्लैशियर, जैसपर स्काइ वॉक और लेक लुईस की ख़ूबसूरती का भी आनंद लेने का मौक़ा मिला। बैम्फ़ पहुँचते-पहुँचते शाम के सात बज चुके थे लेकिन अभी सूर्य अस्त नहीं हुआ था, अच्छी-ख़ासी धूप खिली हुई थी जैसे हमारे यहाँ गर्मियों में शाम के चार बजे के समय हुआ करती है। गर्मियों में यहाँ नौ बजे के बाद सूर्य अस्त होता है। हरे-भरे, ऊँचे ऊँचे पर्वतों से घिरे बैम्फ़ की नैसर्गिक ख़ूबसूरती बहुत आकर्षित करती है, बैम्फ़ के ख़ूबसूरत नज़ारे देख ज़बान से बस एक ही आवाज़ निकलती है—“दिल कहे रुक जा रे रुक जा यहीं पर कहीं, जो बात इस जगह है वो कहीं भी नहीं“।

एथेबास्का ग्लेशियर देखना और ग्लेशियर पर चलना अत्यंत रोमांचक अनुभव रहा। बर्फ़ पर हमारे क़दम फिसल जाते थे। उसपर जहाँ आपका एक क़दम बर्फ़ पर है तो दूसरा क़दम बर्फ़ से ढकी नीचे खाई में भी हो सकता है। हम कुछ देर तक एक दूसरे का हाथ थामे ग्लेशियर पर चलने के आनंद का अनुभव करते रहे। यहाँ मैं यह अवश्य कहूँगी कि ऐसा करते मुझे एक अलग तरह का आनंद आ रहा था जिसमें डर भी था और रोमांच भी। बर्फ़ पर चलने वाली एक विशेष बस से हमें ग्लेशियर तक ले जाया गया था। यह ग्लेशियर सिर्फ़ गर्मियों में ही देखा जा सकता है। 

जैसपर नेशनल पार्क, बैम्फ़ स्थित जैसपर स्काइवॉक पर चलना एक अनोखा जीवन भर संजोए रखने वाला अनुभव रहा। शीशे का बना यह पुल यात्रियों को बेहद आकर्षित करता है। हम काँच निर्मित इस पुल पर चल रहे थे, नीचे चट्टानों की भयानक खाई थी। नीचे देख धड़कनें तेज़ हो जाती थीं; फिर भी उस रोमांच में मज़ा आ रहा था। टेक्नोलोजी युग पर हमें पूरा भरोसा था; हम यह भली-भाँति जानते थे कि हम पूरी तरह सुरक्षित हैं। 

बैम्फ़ के बाद अब हमें टोरोंटो रोटरी कन्वेन्शन में शामिल होने जाना था। कैलगेरी से फ़्लाइट लेकर हम टोरोंटो पहुँचे। टोरोंटो भी कैनेडा के और शहरों की तरह काफ़ी ख़ूबसूरत एवं हरा-भरा शहर है। यह कैनेडा का सबसे ज़्यादा आबादी वाला शहर है जहाँ विभिन्न देशों ख़ासकर ऐशियन आकर बस गए हैं। कैनेडा एक ऐसा देश है जहाँ ऐशियन और कनेडियन का अनुपात 1:1 है। हमारे देसी लोग भी यहाँ आकर अपनी अच्छी ख़ासी पहचान बना चुके हैं। हम ग्रोसरी स्टोर में योगर्ट वाले सेक्शन में दही ढूँढ़ रहे थे। अचानक मेरी नज़र ‘DAHI’ लिखे डिब्बे पर टिक गई जोकि योगर्ट वाले सेक्शन में ही रखा हुआ था। मैंने उसे उठाकर देखा और दही ख़रीद लिया। मुझे इस बात की ख़ुशी हुई कि हमारे भाइयों ने वहाँ जाकर ‘दही’ शब्द को लोकप्रिय बना दिया है। यही नहीं स्टोर में बनी-बनाई बिरयानी, पराठा, चिकेन करी भी बिक रहे थे। 

कैनेडा (टोरोंटो) और अमेरिका (न्यूयॉर्क) की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर नियाग्रा नदी है और नियाग्रा नदी पर नियाग्रा फ़ॉल स्थित है जिसे अमेरिका और कैनेडा दोनों ही ओर से देखा जा सकता है। नियाग्रा जल-प्रपात अपनी ख़ूबसूरती और हाइड्रो-इलेक्ट्रिसिटी के लिए विश्व प्रसिद्ध है। स्टीमर बोट से नियाग्रा फ़ॉल की ख़ूबसूरती देखना और उसके पानी से भींग जाना बहुत अच्छा लगा। 

कैनेडा प्रवास के दौरान मैंने यह महसूस किया कि यहाँ बसने वाले भारतीय दो तरह के हैं—एक वो जो तन-मन से अपने आप को कनेडियन मान चुके हैं। उनका पहनावा, खान-पान, बोल-चाल सबकुछ एक कनेडियन की तरह हो गया है। जब वे किसी भारतीय से मिलते हैं तो भारत की बुराई करते नहीं थकते, जैसे भारत की गंदगी, अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार, गंदी राजनीति इत्यादि। यहाँ तक कि अपने आप को भारतीय कहने से भी कतराते हैं और बड़े गर्व से कहते हैं कि अब मैं भारतीय नहीं बल्कि कनेडियन हूँ; ऐसे भारतीय को मैं देशद्रोही मानती हूँ। दूसरे वो जो किसी कारणवश सात समुंदर पार यहाँ आकर बस तो गए हैं लेकिन उनका हृदय अब भी भारत के लिए ही धड़कता है। न उनकी ज़बान बदली है, न खान-पान और न ही पहनावा; बल्कि भारतीय संस्कृति को उन्होंने वहाँ भी ज़िन्दा रखा है। भारत को एक पहचान दी है, उन्हें भारत छोड़ने का मलाल रहता है—ऐसे भारतीय को मैं हृदय से नमन करती हूँ। अब मैं काका कालेलकर के शब्दों से इस यात्रा को विराम देती हूँ कि यात्रानंद ही जीवनानंद है। 

Canada Geeta Dubey

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