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नया सवेरा

सुनील बीती रात से करवट पर करवट ले रहा था, उसे किसी भी तरह सुबह होने का इंतज़ार था, आँखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी। उसे उम्मीद थी कि कल का सूरज उसके जीवन में नया सवेरा लायेगा क्यूँकि कल सुबह उसका आईआईटी का परिणाम आने वाला था किन्तु क़िस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

सुबह होने पर सुनील का मुँह लटक गया था। परिणाम आया और वह क्वालीफ़ाई नहीं कर सका था। बड़े भाई ने उसकी मनोदशा देख कर प्यार से कहा, "तुम परीक्षा में असफल हो गए,  इस बात पर इतना अधिक दुख क्यों?"

"भैया,  मैंने  दिन-रात मेहनत की और आपका कितना पैसा ख़र्च हो गया और ये परिणाम आया?  मैं बहुत शर्मिंदा हूँ भैया," सुबकते हुए सुनील ने कहा। "बचपन में पापा के गुज़रने के बाद आज तक आपने मुझे पापा की कमी महसूस नहीं होने दी और मैंने आज आपको यह परिणाम दिया। मेरा जीवन अब अंधकार से भर गया है, मैं कुछ नहीं कर सकता। मैं किसी काम का नहीं।"

"लेकिन मुझे बिलकुल भी दुख नहीं है। बल्कि मैं  तो ख़ुश हूँ," भैया ने अपने चेहरे पर मुस्कराहट लाते हुए कहा। सुनील को बहुत आश्चर्य हो रहा था। "तुम्हें मालूम है सुनील, आज देश में बेरोज़गार इंजीनियरों की संख्या लाखों में है। मुझे भी अंदर ही अंदर चिंता सताये जा रही थी कि तुम भी उस सूची में शामिल न हो जाओ। मेरी वह चिंता अब ख़त्म हो गई;  इस परीक्षा से तुम्हारा दाख़िला बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज में होता। सोचो, कितना ख़र्च कर तुम बेरोज़गार इंजीनियर बनते तो मुझे कितना दुःख होता। दाख़िले के बाद मेरी दिन-रात मेहनत का पैसा लगता और फिर तुम बेरोज़गार होकर नौकरी के लिए यहाँ से वहाँ भटकते रहते।"

भैया, सुनील को बहुत ही प्रेम, स्नेह एवं गंभीरता से समझा रहे थे और सुनील के सामने से जैसे एक-एक कर किताब के सारे पन्ने पलट रहे थे। "अच्छा हुआ जो तुम्हारा उस परीक्षा में दाख़िला नहीं हुआ। तुम्हारे पास अब मौक़ा है कि तुम अपना बिज़नेस करो एवं एक बड़े और अच्छे बिज़नेसमैन बनो।  आज सभी नौजवान बिज़नेस करके ही आगे बढ़ रहे  हैं; अपना एवं औरों का भविष्य सुरक्षित करो। एक नया सवेरा तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है। संघर्ष करो और जीत अपनी मुट्ठी में कर लो।"

सुनील को अंधकार में नया सवेरा खिलता दिखा और वह पहले से ज़्यादा मज़बूत लगा।

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