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पाखंडी बाबा

एक बाबा सड़क के किनारे बैठे थे, तभी एक परेशान युवक - रमेश सड़क से जा रहा था।

बाबा ने उसे पुकारा, "सुनो बच्चा, तुम कुछ चितिंत दिखाई दे रहे हो?"

रमेश नें आश्चर्य से पूछा, "जी बाबा! क्या आपने मुझसे कहा. . . आपको कैसे पता?"

बाबा ने मुस्कराते हुए अपनी गर्दन को हिलाते हुए आगे को झुक कर कहा, "अरे बच्चा! हम सब जानते हैं, तुम बहुत परेशान हो, तुम्हारा हर बनता काम बिगड़ जाता है, कोई तुम्हें नहीं समझता।" 

रमेश ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "बाबा जी आपने बिल्कुल सही कहा, इसका कोई उपाय बताइये।"

बाबा ने गंभीर होकर कहा, "बेटा तुम घर से भी परेशान हो। तुम्हारे यहाँ आए दिन क्लेश-झगड़ा होता रहता है; इन सबसे तुम बहुत निराश हो।"

रमेश नें गंभीर होकर कहा, "बाबा‌ जी आपने बिल्कुल सही कहा! इसका कुछ उपाय भी बताइये।"

बाबा मुस्कुराते हुए कहा, "उपाय भी है बेटा ! हमको थोड़ी पूजा करनी होगी, तुम्हारे लिए ताकि तुम्हारा हर बिगड़ता काम बन जाए। पर पूजा के लिए थोड़ा ख़र्चा लगेगा।

रमेश ने दुखी मन से कहा, "बाबा इस मुसीबत से बचने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ।" 

बाबा ने गंभीर होते हुए कहा, "तो ठीक है, तुम‌ हमको कल इसी जगह मिलो हम तुम्हें पूजा की सामग्री व ख़र्चा बता देंगे।"

रमेश ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "ठीक है जी बाबा।"

इतना कहकर रमेश वहाँ से घर जाता है। रमेश के जाते ही बाबा अपने शिष्य से हँसते हुए कहते है, "यह लो, एक और बकरा हलाल होने आ गया।"

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