राज़ की यह बात
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत अच्युतम केशवम10 Mar 2017
मत किसी को भी बताना,
राज़ की यह बात
वाटिका में क्या खिला पाटल.
हाय कैसी हो रहीं पागल
नित-नवेली रँग-बिरंगी,
तितलियों की जात
मत किसी को भी बताना,
राज़ की यह बात
हाथ मेहँदी पग महावर के,
नदी पहुँची द्वार सागर के
अठखेलियाँ चलती रहीं,
आज सारी रात
मत किसी को भी बताना,
राज़ की यह बात
स्वप्न आया थी सुबह सोती,
सम्पुटित है सीप में मोती,
प्रिय तभी से हो रही हूँ,
मैं प्रफुल्लित गात.
मत किसी को भी बताना,
राज़ की यह बात
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