राकेश वत्स - संस्मरण
संस्मरण | स्मृति लेख विकेश निझावन24 Jun 2008
"मैं हवा बन सकी हूँ या कि नहीं मैं नहीं जानती लेकिन इतना ज़रूर जानती हूँ कि थकान में अपने संग रहने और अपनी हर उड़ान की पहली पाठक या श्रोता बनने का सौभाग्यशाली अवसर इस हंस ने मुझे हमेशा प्रदान किया"।
श्रीमती नवल वत्स का यह बयान केवल राकेश वत्स के पैंसठ वर्ष पूरे होने पर ही नहीं राकेश जी की अंतिम साँस तक भी वे उन के भीतर बहती शब्द-लहरियों को सुनती चली गई और उन्हें कागज़ पर उतार ‘यादों के राजहंस’ को सजाती रही और वह वक्त भी आ गया जब हंस एक लम्बी उडारी ले कहीं सुदूर सितारों के बीच एक सितारा बन गया और पीछे छोड़ गया केवल यादें... बस्स यादें!
नवल जी कहती गयीं और मैं सुनता रहा। २८ फरवरी २००७ को हुई कार दुर्घटना में राकेश जी ने आखिरी समय तक जो तकलीफ पायी वह सब सुन मैं भीतर तक नम हो आया। जब कभी कुछ पल के लिए दवाईयों के असर से थोड़ा आराम मिलता राकेश बोल कर या फिर इशारे से नवल को पास बुला लेते। यों नवल हर वक्त उनके समक्ष थी और इसी इंतज़ार में रहती कि कब वे उसे कुछ निर्देश दें। अस्पताल में रहते हुए जिन पलों को उन्होंने जिया वे ही ‘यादों के राजहंस’ के लिए बयान करते चले गए। अस्पताल का माहौल अन्य मरीज़ों का दर्द अपनों का सहयोग उनका प्यार परमात्मा से माँगी गई उनके लिए लम्बी उम्र की दुआएँ उन्हें और भी संवेदन शील बनाती चली गयीं।
अचानक जब कुछ बच्चे एक बस दुर्घटना के शिकार हो गए और उन्हें अस्पताल लाया गया तो राकेश जी का डाक्टर को यही इशारा था कि पहले उन बच्चों का उपचार किया जाए।
एक नन्हे बच्चे ने राकेश जी की बाल कहानी ‘साँप का संहार’ पढ़ कर उनके लम्बे जीवन की कामना करते हुए लिखा था कि जिस तरह से चिड़ियों ने अपनी ताकत से सर्प का संहार कर विजय पा ली थी उसी तरह से आप भी अपनी ताकत से इस मौत पर विजय पा लेंगे। वह बालक उदास तो हो आया होगा लेकिन आकाश पर चमकते सितारों को देख उसका बालमन कितनी कल्पनाएँ करता हुआ अपने भावी जीवन में एक सृजनात्मक दिशा पा लेगा।
एक विशिष्ठ कहानीकार उपन्यासकार एवं कवि के रूप में राकेश वत्स प्रतिष्ठित हुए। सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर राकेश की पैनी दृष्टि बनी रही।उनकी कृतियाँ ही उनके चिन्तन का माध्यम थीं। स्कूल के पाठ्य क्रम में शामिल उनकी कहानी ‘छुट्टी का एक दिन’विद्यार्थी काल में पढ़ते हुए मेरे मस्तिष्क में राकेश जी के लिए जो खाका बना मैंने उसे अपने जीवन काल में ही साकार होते देखा। स्कूल के एक समारोह में राकेश वत्स को मुख्य अतिथि की कुर्सी पर बैठे देख मैं उनकी एक झलक पाने के लिए भीड़ के बीच में से उचक-उचक कर देख रहा था, वही व्यक्ति जीवन के कुछ पल मेरे साथ भी बाँटेगा मैं आज भी रोमांचित हो उठता हूँ।
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