सब खामोश हैं यहाँ कोई आवाज नहीं करता
शायरी | ग़ज़ल डॉ. विजय कुमार सुखवानी3 May 2012
सब खामोश हैं यहाँ कोई आवाज नहीं करता
सच कहकर किसीको कोई नाराज नहीं करता
वतन पर मर मिटने का जज़्बा तो दरकिनार
वतन परस्तों पर यहाँ कोई नाज नहीं करता
इस कदर बिका है इंसान दौलत के हाथों कि
किसी मुफ़्लिस का चारागर इलाज नहीं करता
हर हुकूमत की हद ज़िस्म और ज़ेहन तक है
अब किसी के दिल पर कोई राज नहीं करता
हर शख़्स जी रहा है यहाँ अपनी ही खातिर
किसी के लिये कुछ भी कोई आज नहीं करता
अपने हों या पराये सबसे मिलकर देख लिया
अब किसी से मिलने का मिजाज़ नहीं करता
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