सुन तो सही जहां में है तेरा फ़साना क्या
शायरी | ग़ज़ल हैदर अली ‘आतिश‘28 May 2007
सुन तो सही जहां में है तेरा फ़साना क्या
कहती है तुझसे ख़ल्क-ए-ख़ुदा ग़ैबाना क्या
ख़ल्क-ए-ख़ुदा=भगवान की सृष्टि; ग़ैबाना=अदृश्य, छिपा हुआ, परोक्ष
ज़ीना सबा का ढूँढती है अपनी मुश्त-ए-ख़ाक
बाम-ए-बलन्द यार का है आस्ताना क्या
ज़ीना= सीढ़ी; सबा=कोमल हवा; मुश्त-ए-ख़ाक=मुट्ठी भर राख
बाम-ए-बलन्द=ऊँची अटारी; आस्ताना=देहरी
आती है किस तरह से मेरी कब्ज़-ए-रूह को
देखूँ तो मौत ढूँढ रही है बहाना क्या
कब्ज़-ए-रूह=आत्मा का नियन्त्रण
बेताब है कमाल हमारा दिल-ए-अज़ीम
महमां सराये-ए-जिस्म का होगा रवाना क्या
अज़ीम=महान
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