सुनहरी किरण का घर
कथा साहित्य | लघुकथा हेमांद्री व्यास6 Nov 2017
एक बहुत बड़े घास के मैदान के पीछे और छोटे-बड़े कुछ पहाड़ों के आगे बड़े-बड़े और हवादार पर कम कमरों वाला एक घर था। हर शाम को जब पहाड़ों के पीछे सूरज ढलता था तब उसकी सुनहरी किरण से पूरे आसमान में अनोखी रोशनी होती। ठंडी हवा में सुनहरे आसमान के तले पंछियों के शोर में अक्सर उस घर की छत पर दो बड़ी-बड़ी आँखें कुछ छोटे-छोटे सपने लेकर कोई कहानी बनातीं, उसके सपनों की कहानियाँ अलग होतीं पर हर कहानी में एक घर ज़रूर होता - "सुनहरी किरण का घर"। जब-जब एक नया सूरज उगता या शाम होती तब-तब सूरज की किरणें उस पुराने घर से कुछ दूर घास के मैदान के आगे एक काँच के घर पर पड़तीं तो वो घर भी सूरज की किरणों के जैसा ही सुनहरा सा लगता और ये घर ही था उन बड़ी-बड़ी आँखों के सपनों का घर, उसका सुनहरा घर। पहाड़ों के आगे बने उस पुराने घर में सब कुछ था, जीते-जागते खिलौने, गुड़िया, दोस्त और किसी कहानी के किरदार जैसे समझदार और प्यारे से जानवर, पर फिर भी वो बड़ी-बड़ी आँखें उस अनजान सुनहरे घर के सपने के बारे में सोचतीं और जिस जगह को कभी देखा तक नहीं, वहाँ जाने की कहानियाँ बुनतीं, और एक दिन मानो कोई कहानी हक़ीक़त हो गयी। वो बड़ी-बड़ी आँखें देख रहीं थी कि कुछ अनजान से लोग उसके पुराने बड़े से घर में आ-जा रहे थे और उसके घर से उसका हर सामान कहीं और ले जा रहे थे। जिस पुराने घर की छाँव में बरसों नींद ली, जिसकी छत पर बैठ के हज़ारों सपने बुने, जिसकी दीवार पर अनगिनत कहानियाँ और चित्र उकेरे, आज वो ही घर उसके लिए पराया बन रहा था। सपनों की जगह कुछ ही पल मे आँसुओं ने ले ली, पर तभी उन आँखों ने देखा कुछ लोग बात कर रहे हैं, पुराने पहाड़ी के घर की, और उस जगह की जहाँ अब वो उस सुनहरे घर में रहने जा रहे हैं। सुनहरा घर, मतलब कि सपनों का घर, ऐसा घर जहाँ बहुत सारे कमरे, ख़ुद का बग़ीचा, बग़ीचे में झूला, फूलों वाली क्यारियाँ और उन क्यारियों के पास कुछ पंछियों के घर और सुनहरी किरणों सी चमकती दीवारें, एक कहानी जो मानो सच हो रही है। सब कुछ छूटने के बाद भी सपनों का एक हिस्सा सच बन रहा है, और बस इसी उम्मीद ने बरसों पुराने पहाड़ी वाले घर को छोड़ने के दर्द को कम कर दिया। इसी बात की तसल्ली के साथ उन आँखों ने अपने पुराने आशियाने को, अपने दोस्तों को और उस घास के मैदान को अलविदा कह दिया। पर शायद ये आँखें हक़ीक़त और सपनों के अन्तर से अनजानी थीं। नये दिन में जब उन आँखों ने नये घर को देखा तो वो इस अन्तर को समझ ही न सकीं, एक पल के लिए ये समझ ही न आया उन आँखों को कि सपना वो था जिसे उसने छोड़ा है, या वो है जिसमें वो आई है। उस नए सुनहरे घर में फूल तो बहुत थे, पर काग़ज़ के उन फूलों पर कोई तितली नहीं थी, पंछी थे पर पत्थर के, सुनहरी दिखने वाली दीवार थी, पर वो रोशनी की चमक नहीं बल्कि एक ही रंग था, न तो वो दोस्त थे न ही कहानियों वाले कोई जानवर, छत तो थी पर उस छत से उन आँखों को कोई ढलता सूरज, पुराना घर या बचपन का साथी वो पहाड़ नहीं दिखा, दिखा तो बस उस पहाड़ के सबसे ऊपरी हिस्से का एक छोर। एक अनदेखी कहानी को जीने की ख़्वाहिश में उन आँखों ने अपना सबसे क़ीमती वो सपना आज खो दिया था। जिसे न केवल उन आँखों ने देखा या बुना था बल्कि एक लम्बे अरसे तक जिया भी था। तस्वीर बनाते-बनाते वो आँखें ख़ुद उस तस्वीर का हिस्सा बन गयीं जहाँ पर हज़ार की भीड़ में भी ख़ामोशी फैली हुई थी। |
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