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’खूँटी पर आकाश’ का लोकार्पण

बंगलौर, 3 सितंबर, 2019

यहाँ जयनगर स्थित मानंदी संस्कृति सदन में आयोजित भव्य समारोह में प्रसिद्ध कवि एवं लेखक ज्ञानचंद मर्मज्ञ के सद्यःप्रकाशित निबंध संग्रह "खूँटी पर आकाश" का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। अखिल भारतीय साहित्य साधक मंच, बंगलौर के सौजन्य से आयोजित, इस समारोह में हैदराबाद से आये, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व प्रोफ़ेसर एवं प्रख्यात साहित्यकार डॉ. ऋषभदेव शर्मा बतौर मुख्य अतिथि शामिल रहे। बतौर विशिष्ट अतिथि राजस्थान पत्रिका के प्रभारी संपादक राजेंद्र शेखर व्यास, बिशप कॉटन वुमंस क्रिश्चयंस कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार यादव, और हिंदी प्रचार परिषद पत्रिका के संपादक डॉ. मनोहर भारती उपस्थित थे। अध्यक्षता आकाशवाणी बंगलौर के पूर्व निदेशक एवं उर्दू साहित्यकार मिलनसार अहमद ने की।

समारोह के मुख्य अतिथि और लोकार्पणकर्ता ऋषभदेव शर्मा ने अपने लोकार्पण भाषण में आलोच्य पुस्तक के साथ ही लेखक की रचनाधर्मिता की विशेष चर्चा की। उन्होनें कहा कि मर्मज्ञ के साहित्य के मूल त्रिकोण में एक कोण पर "लोक" है, दूसरे कोण पर "समाज और संस्कृति" एवं तीसरे कोण पर "राष्ट्र"। ऋषभ देव शर्मा ने  आगे कहा कि ज्ञानचंद मर्मज्ञ के साहित्य में नारी मन की पीड़ा, समाज की लोक से बढ़ती दूरी, मानवीय मूल्यों का क्षरण, जंगलों के शहर होने एवं शहरों के जंगल होने की व्यथा मुखरित होती है। उन्होंने "खूँटी पर आकाश" में संकलित निबंधों में व्यक्त लेखक की चिंताओं का जिक्र करते हुए कहा कि लेखक विनाश से अधिक विनाशकारी प्रवृत्तियों को लेकर चिंतित है।

अध्यक्षीय टिप्पणी में मिलनसार अहमद ने मर्मज्ञ के साहित्य-सृजन को 'लोक-कल्याण' से प्रेरित बताया। उन्होंने निबंध की बारीक़ियों और समकालीन साहित्य में इसके महत्व को रेखांकित करते हुए 'खूँटी पर आकाश' में संकलित निबंधों की विशेषताओं की चर्चा की और कहा कि इनमें एक नया मेटाफर है, एक नयी फैंटसी है और स्वयं से संवाद है।

पुस्तक की समीक्षा करते हुए केशव कर्ण ने "खूँटी पर आकाश" को गद्यकाव्य की संज्ञा दी और इसे जीवन की क्षणभंगुरता एवं जिजीविषा के बीच सामंजस्य पर केंद्रित बहु-आयामी एवं विविधवर्णी निबंधों का संकलन बताया। राजेंद्र शेखर व्यास ने साहित्य एवं पत्रकारिता के संबंधों को  चिह्नित करते हुए इन दोनों विधाओं में 'टाइम और स्पेस' के महत्व पर बल दिया, तो डॉ. विनय यादव ने मर्मज्ञ के साहित्य की पठनीयता एवं उपादेयता पर चर्चा की। डॉ मनोहर भारती ने लेखक ज्ञानचंद मर्मज्ञ को जन-मन का रचनाकार बताया।लेखक ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने अतिथियों एवं उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए पुस्तक से जुडी अपनी भावनाओं को भी व्यक्त किया। लेखक ने कहा कि इन निबंधों में आकुल मन के प्रश्न हैं, कुछ चिंता है कुछ व्यथा है। 

आरंभ में अतिथियों ने दीप-प्रज्वलन किया। अर्जुनसिंह धर्मधारी ने  सरस्वती-वंदना की। डॉ. उषा रानी राव ने अतिथियो परिचय दिया। मुख्य अतिथि का परिचय डॉ संतोष मिश्रा ने दिया। मंच संचालन मंजु वेंकट ने किया तथा धन्यवाद डॉ. अरविंद गुप्ता ने दिया।

-प्रस्तुति केशव कर्ण, साहित्य साधक मंच, बंगलौर

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