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ज़ूम मीटिंग के माध्यम से श्री बी.एम. जैन पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों ने शिक्षक दिवस मनाया

सोलन (हिमाचल प्रदेश) — आज अध्यापक दिवस पर श्री बी.एम. जैन पब्लिक स्कूल, नालागढ़ के विद्यार्थियों द्वारा ज़ूम मीटिंग के माध्यम से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद किया गया। उनके जीवन वृत्तांत पर प्रकाश डालते हुए शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा स्थापित सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की सार्थकता बताते हुए प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष श्री रमेश कुमार जैन जी, प्रिंसिपल प्रीति शर्मा जी तथा शिक्षकों को संदेश दिया कि छात्रों में समाज के प्रति कर्तव्य की भावना को जागृत किया जाए तथा अपनी संस्कृति के प्रति उन को जागरूक किया जाए। विद्यार्थियों के जीवन निर्माण की ज़िम्मेदारी सबकी है। माता-पिता, घर -परिवार और आस-पड़ोस सभी की यह ज़िम्मेदारी है पर सर्वाधिक ज़िम्मेदारी है . . . अध्यापक की। विद्यार्थी का मानस अनुकरण प्रधान होता है वह जैसा आचरण और व्यवहार दूसरों को करते हुए देखते हैं वैसा ही आचरण  करते हैं इसलिए अध्यापक अपनी इस ज़िम्मेदारी के प्रति गंभीर बनते हुए सबसे पहले अपना जीवन निर्माण करें। जिसका स्वयं का जीवन निर्मित नहीं है वह दूसरों का निर्माण कैसे कर सकेगा? निर्मित ही दूसरों का निर्माण कर सकता है।  प्रिंसिपल प्रीति शर्मा जी ने यह संदेश देते हुए अध्यापकों और विद्यार्थियों को यह संदेश दिया, अध्यापक वही है जो विद्या का सही उद्देश्य क्या है; अपने विद्यार्थियों को अवगत कराए। विद्या का सही उद्देश्य है आत्मज्ञान की उपलब्धि। उस विद्या को विद्या नहीं माना जा सकता जो आत्म-संवेदन से परे हो आवश्यकता से परे हो। आज की शिक्षा में यदि अध्यापक विद्यार्थियों को विनम्रता, अनुशासन, सत्य, नीति-निष्ठा प्रमाणिकता जैसी बातें नहीं पढ़ाते तो इसी का दुष्परिणाम है कि विद्यार्थी आगे चलकर उद्दंड बन जाते हैं। झूठ, फ़रेब, चोरी जैसी दुष्ट प्रवृत्तियों में अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं। इसलिए इस बिंदु पर गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है ताकि हमारे अध्यापक, शिक्षा प्रणाली को दोष मुक्त बना सकें। अध्यापकों और विद्यार्थियों में भावनात्मक संबंध होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि अध्यापक की पढ़ाने की शैली जितनी सरल व आत्मीयता लिए होगी विद्यार्थी हृदय में वे उतनी ही सरलता से उतरती जाएगी। ’सिर्फ़ पढ़ना ही नहीं’ यदि कोई अध्यापन अपने कर्तव्य को समझ ले तो वे शिक्षा जैसे पवित्र कार्य के लिए न्याय संगत होगा। उन्होंने अपने संदेश में अध्यापकों को यह राय दी कि वह विद्यार्थियों में साहित्य सर्जन के प्रति रुचि का विकास करे। क्योंकि साहित्य सृजन भावनाओं व संवेदनाओं के ऊपर टिका हुआ है। जहाँ संवेदन आया ही नहीं, वहाँ लेखन नहीं, जहाँ भावनाएँ नहीं, वहाँ लेखन नहीं। इसलिए जो अध्यापक, अध्यापन ही नहीं, लेखन भी करता है, वह सोने पे सुहागे के समान है। कविता, नाटक, कहानी के माध्यम से अगर अध्यापक विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं तो वह उनके हृदय पटल पर एक गहरी छाप छोड़ता है। इसलिए अध्यापकों को चाहिए कि वह विद्यार्थियों के साथ ऐसा भावनात्मक संबंध बनाकर रखें कि उनको रचनात्मक ढंग से शिक्षा देकर उनके जीवन में एक गहरी छाप छोड़ें। शिक्षक चरित्र निर्माण का प्रहरी होता है। 

कार्यक्रम में उपस्थित अन्य अध्यापकगणों कुसुम जी, मनोरमा जी, बलवीर जी, शुभलता जी और उप-अध्यापिका श्रीमती संगीता खुल्लर जी ने विद्यार्थियों को प्रेरणादायक संदेश देते हुए विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया। और संदेश दिया कि अध्यापक समाज  में एक नींव पत्थर का काम करता है। ज़ूम मीटिंग के माध्यम से विद्यार्थियों ने शिक्षकों को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई दी कई बच्चों ने कविताएँ पढ़ीं और शिक्षकों का आभार व्यक्त किया।

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