आंचलिकता का निर्वहन करता उपन्यास: डांडी
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा डॉ. विभा कुमरिया शर्मा1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
समीक्षित पुस्तक: डांडी (उपन्यास)
लेखक: डॉ. धर्मपाल साहिल
प्रकाशक: इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड, नोएडा।
मूल्य: ₹ 300/-
कुल पृष्ठ:109
ISBN number: 978-81-19854-15-8
उपलब्धता: Amazon, flipkart
डॉ. धर्मपाल साहिल की क़लम से रचित कंडी आंचलिक परिवेश का प्रतिनिधित्व करता उपन्यास ‘डांडी’ पाठक को कंडी भाषा की जानकारी लेने के लिए प्रेरित करता है। डांडी शब्द की व्याख्या के साथ प्यासा इंद्र कहानी के संवाद और उसके प्रसंग के माध्यम से लेखक राजेंद्र यादव जी की प्रेरणा से प्रभावित होकर इस उपन्यास को लिखने के लिए प्रेरित होता है। राजेन्द्र जी की प्रेरणा से प्रेरित डॉ. धर्मपाल साहिल जी जब कथानक तैयार करते हैं तो वह डांडी उपन्यास के रूप में उभर कर सामने आता है।
डांडी शब्द की व्याख्या करते हुए लेखक बताता है कि डांडी का शाब्दिक अर्थ है पानी पिलाने वाला।
गाँव का एक भोला-भाला, इंसान किशन एक साधारण व्यक्ति है, जो मानसिक रूप से कमज़ोर है। उसे अपने लाभ-हानि, ख़ुशी, और दुख से कोई मतलब नहीं है। वह अपने बड़े भाई और भाभी के साथ रहता है। वह उससे सभी मेहनत के काम करवाते हैं उसके बदले में उसे जो और जैसा खाना देते हैं वही उसकी मज़दूरी होती है या प्रसाद होता है। वह यह भी नहीं जानता कि उसे काम के बदले में क्या मिलना चाहिए?
एक पारिवारिक परिप्रेक्ष्य में रचित कथानक गाँव, समाज, घर व्यवहार, त्योहार, रहन-सहन और वर्चस्व का दबाव बनाए रखने के सभी साधारण व्यवहार जो संयुक्त परिवारों में आसानी से देखे जा सकते हैं, कथानक में बारी-बारी से अपनी भूमिका निभाते हैं। नैतिक व मानवीय मूल्यों का स्वार्थ की भेंट चढ़ना जैसे भावों को मुख्य घटक के रूप में लेखक ने उपन्यास की कथा वस्तु के भाव को आवश्यकतानुसार गूँथा है। अपनी लेखनी की सूझ से डॉ. साहिल ने समाज के प्रतिबिंब को बिना किसी हेरफेर के पाठक के मन तक पहुँचाने का प्रयत्न किया है।
उपन्यास का मुख्य पात्र किशन मानसिक रूप से कमज़ोर है। उसे शोषण, जीवन के उतार-चढ़ाव, लेना-देना, रहन-सहन, खाना-पीना आदि बातों की समझ नहीं है। वह अपने बड़े भाई और भाभी के साथ रहता है उनके बताए हुए काम करता है और कुएँ से पानी लाकर घर की ज़रूरतें पूरी करने में मदद देता है। रात के समय मचान पर जाकर खेतों की रखवाली करता है। भाई और भाभी उसकी इस स्थिति का भरपूर लाभ उठाते हैं। विशेषकर उसकी भाभी।
अचानक गाँव में एक विक्षिप्त औरत के आने से हलचल मच जाती है। घटनाक्रम आगे बढ़ता है। बाद में उसकी सुरक्षा के आधार पर गाँव वाले पंचायत के निर्देश पर किशन के साथ ब्याह देते हैं। भाभी विमलो को उनका ख़ुश रहना पसंद नहीं आता। अचानक एक दिन उस लड़की के गाँव वाले उसे ढूँढ़ते हुए वहाँ आते हैं और पंचों से बात करते हैं। वह लड़की को वापस ले जाना चाहते हैं। विमला धोखे से किशन को पानी लाने के लिए भेज देती है और इसी बीच उसकी राधा को ज़बरदस्ती दूसरे गाँव के लोगों के साथ भेज दिया जाता है। किशन अपनी राधा के लिए बावला हो जाता है। उसे खोजता है, लेकिन इससे ज़्यादा सोच भी नहीं पाता। भगवान के मंदिर में वह राधा-राधा सोचता रहता है, बोलता रहता है। स्कूल में जाकर बच्चों को पानी पिलाना और अध्यापकों को पानी पिलाना उसका रोज़ का काम हो जाता है। थोड़े बहुत जो पैसे मिलते हैं वह उन्हें बैंक में जमा कर देता है। इसी उम्मीद से कि वह जब शादी करेगा तब अपनी पढ़ी-लिखी पत्नी को पैसे दे देगा। उसे बैंक का हिसाब करना आता होगा। राधा को गाँव ले जाने के बाद जब गाँव वालों को पता चलता है कि जिस लड़की को वह जबरन लेकर आए हैं वह तो पाँच माह की गर्भवती है और पाँच माह में गर्भपात नहीं हो सकता। तब उसका बच्चा पैदा होने तक इंतज़ार किया जाता है और जब बच्चा पैदा हो जाता है तो वह एक पंडित और पंडितानी को दे दिया जाता है। पंडित और पंडितानी उसका नाम राधा कृष्ण रखते हैं क्योंकि वह राधा कृष्ण का बच्चा है। जीवन की संध्या तक किशन पानी ढोने का काम और निष्काम सेवा करता रहता है। मंदिर में नए महंत के रूप में राधा कृष्ण की नियुक्ति होती है और अंत में एक दिन राधा कृष्ण मंदिर में ही किशन की मृत्यु हो जाती है उसका निर्दोष निष्कपट जीवन शांत हो जाता है।
लेखक ने एक मंदबुद्धि बालक के साथ होने वाले सभी प्रकार के धोखे इत्यादि को कथानक का आधार बनाया है। यदि भाषा-शैली की बात की जाए तो यह एक विशुद्ध आंचलिक उपन्यास कहा जाएगा, क्योंकि लेखक ने पात्रों के अनुसार भाषा पर विशेष ध्यान दिया है।
कंडी भाषा में बोले गए सभी संवाद पाठक वर्ग को लुभाते हैं और प्रत्येक चरित्र के व्यक्तित्व को पाठकों तक पहुँचाने में लेखक सफल होते हैं।
किशन के द्वारा अपनी ख़ुशी प्रकट करने के लिए बोला गया एक ही वाक्य ‘मौझां ई मौझां’ पाठक को बहुत लुभाता है।
एक अन्य दृश्य देखिए—राधा भोले-भाले किशन को प्यार करने लगी। गुंडों से लड़ते हुए किशन को उसका यह कहना कि “कोई नहीं छुड़ाई सकदा किशन तो मेरा हथ्थ। फ़िक्र नी करनी। जधाड़ी मैं तेरे नाल आं फिरी कुसे दी के मजाल, सानू बक्स करन दी।”
भाभी के मन के कालुष्य को प्रकट करते हुए भाभी से ही लेखक कहलाते हैं—पूछना के प्रधान जी तुषां जो बिठाई ही उण तुषां जो दुआई दगो साड़ी लाड़ी। आखर तां ओह कानूनी तौर ते साडे ही मुंडुए दी लाड़ी ऐन। असां जो बिहाई के लियांदी ही। ठीक ऐ ओस परिवार ने ऊधी सांभ-सँभाल कीती। असां जो शुकराने दे तौर ते ऊदा मूल्ल तारण लई तियार हाँ।
पत्नी के सामने ज़ुबान खोलने से डरने वाला बिसन दास जीवन के अंत को सँवारने के उद्देश्य से प्रायश्चित करना चाहता है और नये महंत के सामने कहता है कि—महाराज मेरे खेत किशन नाल सांझे हन। मैं कई सालां तो उदे हिस्से दा अनाज भी बैचदा बटदा वाँ ना। उनी कदे भी अपना हिस्सा नहीं मंगिया। मैं ऊना हिस्सा अपने कौल नई रखना। समझी नी औंधा की करां। मेरे मन तो बोझ जिहाँ रैंदा है ऐस गल्लां था।
उपन्यास में लेखक की सामर्थ्य, उसका शब्द चयन, शब्दों का उचित प्रयोग पाठक को यह मानने के लिए विवश कर देता है कि विपरीत परिस्थितियों में शालीनता से कहें गए वाक्य भी अश्लील वाक्यों पर भारी पड़ते हैं।
घटनाक्रम के अनुसार पानी माँगने पर किशन का पानी लेने जाना और गाँव के बिगड़ैल मौक़ापरस्तों द्वारा उसे खेतों में जबरन ले जाकर अनाचार की कोशिश करना, के लिए लेखक के शालीन वाक्य प्रभावित करते हैं (वहाँ दरिंदों से घिरी, अपने आप को बचाने की कोशिश करती, बेबस औरत को देखकर किशन को बड़ा अटपटा सा लगा। उसे माजरा तो समझ में नहीं आया लेकिन उसने ऊँचे स्वर में कहा “पानी लई आंदा। पानी पी लै।” लड़कों का ध्यान किसन की ओर गया। जैसे उनकी चोरी पकड़ी गई हो। किशन के सामने उन्हें औरत से जोर-ज़बरदस्ती करने की हिम्मत नहीं हुई। फिर भी रंग में भंग पड़ता देखकर एकदम दबंग ने किशन को धमकाया, चल जा चुपचाप अपने घर हूंण।)
उपन्यास की कथा वस्तु, संवाद योजना, भाषा शैली, देश काल और वातावरण उसे सुदृढ़ और सशक्त रूप में प्रतिस्थापित करता है। शब्दों और वाक्यों में बोझिलता नहीं है बल्कि एक विशेष प्रवाह और तारतम्य बना रहता है। कथानक चित्रात्मकता से अछूता नहीं है। इसी कारण यह उपन्यास पाठक को वर्षों तक याद रहेगा।
लेखक और लेखक की क़लम ने यथार्थ परक भाव और व्यंजना को उपन्यास के किसी भी घटनाक्रम में प्रदूषित होने नहीं दिया बल्कि उसे विशुद्ध सामाजिक और पारिवारिक रूप देकर प्रस्तुत किया है। भविष्य में आनेवाली अन्य रचनाओं के लिए लेखक को मेरी तरफ़ से अनेक शुभकामनाएँ।
डॉ. विभा कुमरिया शर्मा
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टिप्पणियाँ
डॉ. सुधामणि सूद 2024/05/10 10:19 AM
बहुत खूबसूरत रचना ... समीक्षा में संपूर्ण कहानी का बख़ूबी चित्रण किया गया है। सरल भाषा में स्थानीय छुअन ने रचना को चार चांद लगा दिए हैं। सादे व भले लोगों के प्रति आधुनिक समाज का व्यवहार बहुत ही संवेदना सहित पेश किया गया है। रचना लेखक व समीक्षा लेखक दोनों को बहुत बहुत बधाई। डॉ. सुधामणि सूद " चाँद "
नीरू ग्रोवर पर्ल 2024/05/09 12:55 PM
डा धर्मपाल साहिल जी का लिखा उपन्यास 'डान्डी , श्रीमती विभा कुमरिया जी की समीक्षा द्वारा पढ़ा,जी में कुछ खलबली सी मच गई, दिल को छू लिया।एक विक्षिप्त तथा सीधे सादे इन्सान से इस कदर बुरा सलूक, उसके साथ किया शोषण है और समाज को इसके लिए जागरूक करना आवश्यक है,जो डाक्टर साहब ने अपनी सुंदर भाषा में कहा। श्रीमती विभा कुमरिया जी ने बहुत सुंदर समीक्षा द्वारा प्रस्तुत किया।आप दोनों बहुत बधाई के पात्र हैं
प्रोमिला अरोड़ा 2024/05/01 09:15 AM
अति सुन्दर सार्थक भावपूर्ण विवेचन डा विभा कुमारिया शर्मा जी का । डा धर्मपाल साहिल जी द्वारा रचित उपन्यास डांडी कई आयामों को छूता है और सुंदर आंचलिक उपन्यास है ।समीक्षक ने बहुत गहराई से इसका विवेचन किया है और लेखक की भावनाओ को समझा है ।इसके लिए लेखक और समीक्षक दोनो बधाई के पात्र हैं प्रोमिला अरोड़ा
Prem Sagar 2024/04/30 08:43 PM
Wonderful insight. Great going mam
Madhu Shally 2024/04/30 07:10 PM
Superb heart touching.
Aman Armann 2024/04/30 05:01 PM
मैंने पूरी समीक्षा पढ़ी, इस समीक्षा से ऐसा लगता है कि लेखक ने पूरी कहानी अपने सच्चे दिल से लिखी है। वह हमारे समाज की वास्तविकता के बारे में सीधे-सीधे बात करता है। मैं पूरी कहानी जानने के लिए इस पुस्तक को पढ़ने का सुझाव देता हूँ।
उपेन्द्र यादव 2024/04/30 01:01 PM
बहुत अच्छी समीक्षा। डॉ. धर्मपाल साहिल जी का आंचलिक उपन्यास डांडी एक मानीखेज़ रचना है। डॉ. धर्मपाल साहिल और डॉ. विभा कुमरिया शर्मा जी को समवेत बधाई। अनेकानेक शुभकामनाएं।
डॉ ज्योति गोगिया 2024/04/30 11:14 AM
मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों पर एक बहुत सुंदर उपन्यास की रचना किशन के जीवन की विडंबना पाठक को अंदर से तक हिला देती है। पंजाबी भाषा का पुट इसे आन्चलिकता प्रदान करता है
Surjit Nagpal 2024/04/30 10:45 AM
Yeh abstract pad kar bahut acha lga
Baljit saini 2024/04/30 09:36 AM
Bahut wadhia smikhya...
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डॉ रश्मि खुराना 2024/05/10 11:29 PM
बहुत सुन्दर शब्दों में सटीक समीक्षा। डॉ विभा कुमरिया जी को साधुवाद। डॉ धर्मपाल साहिल जी की साहित्यिक यात्रा व प्रगति में मैं बहुत बार मानसिक रूप से उनके साथ रही हूँ। उनके अनुभव और संवेदनशीलता कलमबाद्ध होकर पाठक को गहरे छू जाती है। मेरी शुभकामनायें। डॉ कुमरिया जी भी आजकल सार्थक रूप में बहुत सक्रिय हैं।मेरा बहुत प्यार