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अब बस और नहीं

सब लोग कह रहे हैं कि उसका दिमाग़ ख़राब हो गया है। कभी-कभी तो उसे भी लगता है शायद लोग सच ही कह रहे हैं। कुछ भी सोचने लगती है तो उसका अँगूठा उसकी अन्य उँगलियों की गाँठों पर एक, दो, तीन . . . गिनने लगता है। जैसे बचपन में हिसाब के सवालों को करते समय वे अपनी उँगलियों पर गिनती और जमा घटा कर लिया करती थी। पर एक, दो, तीन गिनने के बाद उसके दिमाग़ पर जैसे ताला पड़ जाता है। उसके आगे वो गिन ही नहीं पाती। पर क्यों? उसे अपने आप पर झुँझलाहट होने लगती है, फिर वो वापिस गिनना शुरू कर देती है, फिर यह क्रम कईं बार तो घंटा-घंटा जारी रहता है। उसका अँगूठा इसी तरह उसकी उँगलियों पर नाचता रहता है जब तक वो बुरी तरह से दर्द नहीं करने लगता है।

फिर वे उठ कर बाहर फुलवाड़ी में चली जाती है। गैंदे के एक फूल पर बैठी तितली पर उसकी नज़र पड़ती है। वे उसे घूरने लगती है। उसकी आँखों के सामने तैरती वो तितली अचानक छोटी सी बच्ची बन जाती है। वे उसे धीमेंं-धीमे बिना शोर किये गोद में उठाने के लिये उसकी ओर भागने लगती है। तितली दूसरे फूल पर जा बैठती है। वे फिर उसके पीछे-पीछे भागने लगती है। तितली एक और फूल पर जा बैठती है। उसे लगता है वे छोटी बच्ची उसके साथ पकड़म-पकड़ाई का खेल खेल रही हो। तितली कभी एक फूल तो कभी दूसरे फूल पर और वे उसके पीछे-पीछे भागती हुई। फिर तितली उसकी आँखों से ओझल हो जाती है। बच्ची कहाँ चली गई? वो रोने लगती है। फिर उसे अपने पेट के अन्दर कुछ गीला-गीला सा महसूस होने लगता है। उसे लगता है उसके पेट के अन्दर ख़ून बह रहा है। वो वहीं घास पर लेट जाती है और अपनी आँखें बन्द कर लेती है। 

वे अस्पताल के एक कमरे में एक बिसतर पर पड़ी है। उसकी आँखों के सामने धुँध सी छाई है। उसे कुछ दिखाई नहीं देता पर दबी-दबी सी अवाज़ें सुनाई देने लगती हैं। 

“फिर लड़की? 

“डॉक्टर साहिब, आप इसका गर्भ गिरा दीजिये। आप जितना पैसा चाहें ले सकते हैं,” उसका पति डॉक्टर से कह रहा है। 

“डॉक्टर साहिब! मुझे यह बच्ची चाहिये। मैं यह बच्ची चाहती हूँ,” वे चिल्लाना चाहती है, पर उसकी आवाज़ उसके गले में ही अटक जाती है। 

“इस बार थोड़ा मुश्किल है, पिछली बार आप समय से ले आये थे पर इस बार जान को ख़तरा हो सकता है। कुछ हो गया तो मैं मुसीबत में पड़ सकता हूँ, मुझे जेल तक हो सकती है।” उस प्राइवेट अस्पताल का डॉक्टर उसके पति से कह रहा है। 

उसका पति फिर गिड़गिड़ाने लगता है, “आप चिन्ता ना करें, आप पर कोई आँच नहीं आयेगी। मेरी ऊपर तक पहुँच है। बस इस आख़िरी बार यह काम कर दीजिये। मैं आप को मुँह माँगी रक़म दूँगा।”

इस बार मैं अपने बच्चे को मारने नहीं दूँगी। मुझे बच्ची चाहिये वो फिर ज़ोर से चिल्लाना चाहती है पर उसकी चीखें किसी क़ैदी की तरह जेल की सलाखों से टकरा कर अपना दम तोड़ देतीं हैं। वे उठना चाहती है पर उठ नहीं पाती। फिर सब ओर सन्नाटा छा जाता है। 

उसकी आँखों से सब ओझल हो जाता है। वे अपनी आँखें खोलतीं हैं। 

वे पागलों के एक अस्पताल में भर्ती हैं। क्या वो सचमुच पागल हो गई है। 

पाँच साल पहले जब उसकी शादी पास वाले गाँव के ज़मींदार के बेटे से पक्की हुई थी तो सब उसको कितनी क़िस्मत वाली समझ रहे थे। 

“अरे इसके तो भाग खुल गये समझो। वहाँ तो अपनी बिमला राज करेगी राज!” उसकी दादी ने कहा था। 

उसके पिता के पास बहुत थोड़ी ज़मीन थी जिससे उनका गुज़ारा भर हो जाता था। वे आठवीं क्लास उनके गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। वे पढ़ने में अच्छी थी और आगे पढ़ना चाहती थी। शायद उसके पिता उसे आगे पढ़ने भी देते। पर जब उसके लिये ये रिश्ता आया तो इन्कार करने का सवाल ही नहीं था। 

वैसे भी हमने कौन-सा इससे नौकरी करानी है, जितनी जल्दी टिकाणे लग जाये उतना अच्छा है। उसकी माँ का कहना था। 

सच पूछो तो उसने भी आगे पढ़ने की ज़िद नहीं की थी। उसे मालूम था की उसके लिये ऐसा रिशता मिलना मुश्किल था। उसके पिता के पास ज़्यादा दहेज़ जुटाने के लिये कोई ज़रिया नहीं था। 

हमारे बेटे को बस गोरी-चिट्टी लड़की चाहिये। हमें दहेज़ लेने का कोई लालच न है। लड़के के पिता ने रिश्ते की बात करते हुए कहा था। 

उसके ससुराल वालों ने सचमुच दहेज़ में कुछ नहीं लिया था। बल्कि शादी का पूरा ख़र्चा भी अपने-आप ही उठाया था। तब सब उसके ससुराल वालों की कितनी तारीफ़ कर रहे थे। 

गौने के बाद जब वो अपने ससुराल गई तो उसे लगा वे सचमुच क़िस्मत वाली है। सब उससे बेहद प्यार करते और कमी तो इस घर में वैसे भी किसी चीज़ की नहीं थी। 

उसका पति अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। 

जब वो गर्भवती हुई तो उसकी ससुराल मेंं त्यौहार जैसा माहौल था। उसकी सास की ख़ुशी का ठिकाना ना था। उसका बेहद ख़्याल रखा जाने लगा। पर फिर एक दिन अचानक सब कुछ बदल गया। 

उसकी जाँच कराने पर पता चला कि वे लड़की को जन्म देने वाली है। वे मन ही मन नन्ही बच्ची के सपने देखने लगी। पर उसके ससुर और पति को बेटी नहीं उनकी जायदाद सँभालने वाला बेटा चाहिये था। फिर एक दिन रात के सन्नाटे में उसे एक प्राइवेट अस्पताल में जाँच के बहाने ले जाकर उसका बच्चा गिरा दिया गया। जब उसे बाद में पता चला तो वे बेहद रोई थी। पर वे कुछ नहीं कर सकती थी। उसकी सास ने बिमला को बताया कि उसके साथ भी ऐसा ही किया गया था। 

इस घर में लड़कियों को बर्दाश्त नहीं किया जाता। यही इस परिवार की परम्परा रही है। 

तुम भी ग़रीब घर की हो मेरे माता-पिता भी ग़रीब थे। हमारे पास इन लोगों की मरज़ी के ख़िलाफ़ जाने की ताक़त नहीं। 

फिर दानों सास-बहू मिल कर ख़ूब रोईं। 

वो फिर पेट से हुई तो पता चला कि वे फिर एक लड़की को जन्म देने वाली है। बिमला और उसकी सास के विरोध के बावजूद, इस बार भी वही हुआ जो पहले हुआ था। उसके मन के भीतर और बाहर जैसे सन्नाटा छा गया था। वे वापिस आई तो ज़िन्दा लाश की तरह ही हो गई थी। यदि उसकी सास न होती तो शायद वो मर जाती। पर उसकी सास उसका दुख समझती थी। उसने बिमला की सेहत की पूरी ज़िम्मेदारी अपने हाथ में ले ली थी। ना केवल वे उसके खाने-पीने का पूरा पूरा ख़्याल रखती बल्कि उसे ख़ुश करने की भी हर कोशिश करती। उसकी अनथक मेहनत ने बिमला में जान फूँक दी और धीमे-धीमे उसकी ख़ामोशी टूटने लगी। सब का मानना था कि माँ बनने से ही बिमला पूरी तरह से ठीक हो पायेगी। उसके पति ने उसे भरोसा दिलाया कि वे इस बार पहले जैसा कुछ नहीं करेगा। बिमला फिर से गर्भवती हुई। और उसके साथ ही उसके पति के पुत्र पाने की इच्छा फिर से जाग उठी। पर इस बार बिमला सतर्क हो गई थी। उसने पति के साथ कहीं भी बाहर जाने से इन्कार कर दिया था। इसी तरह वक़्त बीतने लगा और साथ उसके पति की यह जानने की बेचैनी की उसकी पत्नी के गर्भ में लड़की है या लड़का। यह तो तय था कि बिमला किसी प्राइवेट डॉक्टर के पास किसी हालत में नहीं जायेगी और सख़्ती की वजह से आस पास का कोई भी सरकारी डॉक्टर इस तरह की ना तो जाँच ही करेगा ना कुछ बतायेगा ही। 

फिर उसे एक तरकीब सूझी। बिमला को उसकी माँ पर पूरा यक़ीन था। माँ के साथ वे ज़रूर बाहर चलने के लिये तैयार हो जायेगी। उसने पहले माँ से गाँव से कुछ दूर एक मंदिर में जाने की बात की। माँ ने ख़ुद ही बिमला को साथ ले जाने की बात की थी। उसे क्या पता था कि उसका बेटा माँ से भी छल कर रहा है। बिमला के पति ने ड्राईवर को धीमे से कुछ कहा और गाड़ी सीधे उसी प्राइवेट अस्पताल पर जा रुकी। इससे पहले कि बिमला कुछ बोलती उसे स्टेरचर पर ज़बरदस्ती अन्दर ले जाया गया। कुछ ही पलों में उसकी आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया था। उसे सिर्फ़ अपने पति और डॉक्टर की धीमी-धीमी आवाज़ें सुनाई पड़ीं थी। बाद में वो अपना होश खो बैठी थी। 

उसका अँगूठा फिर उसकी उँगलियों की गाँठोंं पर तेज़ी से दौड़ने लगा था। एक, दो, तीन। वे आगे क्यों नहीं गिन पा रही। क्या वह सचमुच पागल ही हो गई है। 

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