आन्सर शीट
कथा साहित्य | कहानी सरिता बरारा27 Apr 2012
सुमी को इतना बुरा इससे पहले कभी नहीं लगा था। काश वो कबूतर की तरह आँख बन्द करके अपने मन को समझा सकती की उसे कोई नहीं देख रहा। हालाँकि वे अपनी पीठ दीवार से सटा कर खड़ी है पर उसको लगता है कि सबकी आँखें एक्सरे की मशीन तरह सब कुछ देख सकती हैं। उसकी क्लास टीचर मिस दत्त ने उसकी मैथ्स की आन्सर शीट उसकी पीठ वर चिपका दी है जिसमें उसे दस में से ज़ीरो मिला था।
“पूरे लंच ब्रेक में प्लेग्रराउंड में इसे पीठ पर लगा कर रखना होगा। जब सभी लड़कियाँ तुम पर हँसेंगी तभी तुम्हें अक़्ल आयेगी,” मिस दत्त का आदेश था।
लंच-ब्रेक के लिये जब घंटी बजी तो वे अपनी सीट पर बैठी रही शायद इस उम्मीद में कि मिस दत्त को उस पर रहम आ जायेगा। पर मिस दत्त की नज़र पड़ते ही वो चुपचाप क्लास-रूम से बाहर निकल आई; इससे पहले की वो उसे फुटरूल से मार कर निकालतीं। दोनों बाँहों से पीठ ढाँपे धीमे-धीमे वो सीढ़ियाँ उतरने लगी। आख़िरी सीढ़ी उतरते ही वो एकदम प्लेग्राउंड की दीवार से अपनी पीठ सटा वे ऐसे खड़ी हो गई जैसे कुछ हुआ ही ना हो, जैसे वे मज़े से धूप का मज़ा ले रही हो। उसे देखकर कौन कह सकता था कि शर्म औैर ग़ुस्से से अन्दर ही अन्दर वो सब को कोस रही थी। सुमी को लगा जैसे उसे कोई छूत की बीमारी हो गई हो ओर उसे सबसे अलग-थलग कर दिया गया हो। यदि उसे लड़कियों की हँसने की आवाज़ सुनाई पड़ती तो उसे लगता मानो सब उस पर हँस रहे हों।
सुमी को लगा उसे कोई प्यार नहीं करता; सब ख़राब हैं उस के मम्मी पापा भी जिन्होंने उसे ऐसे स्कूल में भेजा है जहाँ टीचर नहीं राक्षस हों। काश वो उस जिन की तरह ग़ायब हो सकती जिस के बारे में उसने एक कहानी में पढ़ा था। उसने अपनी आँखें ज़मीन में कब से गड़ाये रखी थी इस डर से की कहीं कोई उसे खेलने के लिये ना कहे। पर अब वो थक गई थी। उसने अपना सिर उठाया तो उसकी नज़र स्कूल का साथ एक रिहायशी इमारत पर पड़ी जिसकी एक बालकनी में एक तार पर टँगे एक पिंजरे में तोता बन्द रहता है। अक़्सर सुमी और उसकी सहेलियाँ रेलिंग के साथ खड़ी हो कर मियाँ मिट्ठू! मियाँ मिट्ठू! चिल्लातीं तो तोते की भी मियाँ मिट्ठू! मियाँ मिट्ठू! की रट शुरू हो जाती तब सब कितना हँसते। लेकिन आज तोते से कोई बात नहीं कर रहा था।
सब अपने खेल में मस्त थे। क्या मियाँ मिट्ठू भी उतना ही अकेला महसूस कर रहा है जितना कि वो? यह तो बेचारा हर दम पिंजरे में क़ैद रहता है; उसका दिल भी तो बाक़ी पक्षियों की तरह गगन में आज़ाद उड़ने को करता होगा। सुमी को अब सचमुच तोते पर तरस आ रहा था। कुछ समय के लिये वो अपनी परेशानी भूल गई थी। लेकिन ज़्यादा देर नहीं। कम से कम मियाँ मिट्ठू को इस तरह शर्मिन्दगी नहीं सहनी पड़ती जैसे उसे। उसका मन सबके साथ खेलने को छटपटाने लगा। उसे लगा उसकी हालत तो मियाँ मिट्ठू से भी बुरी है। कम से कम मियाँ मिट्ठू को सब प्यार तो करते हैं। अब वो एक ही तरह से खड़े-खड़े बेहद थक गई थी। उसकी पीठ में दर्द ही रहा था और उसके पैरों के तलवों में सुईयाँ चुभनी शुरू हो गईं थी। उसकी आँखों में आँसू भर आये। तभी लंच ख़त्म होने की घंटी बजी। सुमी जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ चढ़ कर क्लास में पहुँची और सुबक-सुबक कर रोने लगी! मिस दत्त को लगा शायद उससे कुछ ज़्यादती हो गई है उनका मन ग्लानि से भर गया। सुमी सचमुच बहुत सम्वेदनशील है उसे ऐसी सज़ा देकर शायद ठीक नहीं हुआ। मिस दत्त ने उसे बाँहों में भर लिया। और उसकी पीठ से उसके स्वेटर पर लगी आन्सर शीट को निकाला।
वनिता, जो सुमी के साथ वाली सीट पर बैठती थी, से भी नहीं रहा गया।
“मैम! सुमी ने तो आज खाना भी नहीं खाया,” अब पूरी क्लास के मन में सुमी के लिये प्यार और सहानुभूति उमड़ आई। सुमी ने अपने आँसू पोंछे और चुपचाप मिस दत्त की बाँहों से निकल कर अपनी सीट पर जाने लगी। अब उसकी पीठ के पीछे कुछ भी नहीं चिपका था। उसे लगा सब उसे प्यार करते हैं—मिस दत्त भी।
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