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अंबर की नीलिमा

 

दूर-दूर जहाँ तक दृष्टि जा सकती थी, बर्फ़ की श्वेत चादर बिछी हुई थी। हिमाच्छादित देवदार के वृक्ष शान्ति-दूतों की तरह निस्तब्ध खड़े थे। मेघदूतों की सेना को चीर सूर्य की चंद किरणें जब हिम से ढके पर्वत शिखरों से टकरातीं तो वे मंदिर के स्वर्ण कलशों की भाँति जगमगा उठते थे। मंद-मंद बह रहे पवन के झोंके जब एक मादक स्पर्श दे समीप से गुज़रते तो अंतर्मन में एक सिहरन सी दौड़ जाती थी। 

पूरे वातावरण में एक सुकून भरी शान्ति छाई हुई थी। कुफरी की हसीन वादियों में एक दुर्गम घाटी के समीप खड़ी नीलिमा प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को अपलक निहारे जा रही थी। अपने स्नो-गॉगल्स को उसने हाथ में ले रखा था, इससे आसमान से गिर रहे बर्फ़ के फाहे सीधे उसके रक्तिम रुख़सारों का स्पर्श कर रहे थे। इससे उसकी मादकता में कुछ और श्रीवृद्धि हो रही थी। 

“बेइंतहा हसीन हैं ये नज़ारे!” तभी एक मदहोश आवाज़ आई। 

“बेइंतहा हसीन!” नीलिमा के होंठ अनायास ही बुदबुदा उठे। 

“लेकिन तुमसे ज़्यादा हसीन नहीं!” इस बार आवाज़ में शरारत की खनक थी। 

नीलिमा चौंक पड़ी। उसने पीछे पलट कर देखा। सामने उसके ही तरह स्कीइंग सूट पहने एक व्यक्ति खड़ा था। उसने सिर पर हेलमेट और चेहरे पर बड़ा सा स्नो-गॉगल्स लगा रखा था। इससे उसे पहचानना मुश्किल था लेकिन गॉगल्स के भीतर से झाँक रही आँखों में उमड़ रहे शरारत के चिह्नों को पहचानना मुश्किल न था। 

“ओह शटअप!” अप्रत्याशित छींटाकशी से नीलिमा ग़ुस्से से चीख उठी। 

“ग़ुस्से में तुम्हारे चेहरे का रूप ताज़े गुलाब सा निखर आया है। इस ग़ुस्से को कभी अपने से दूर मत करना।” उस व्यक्ति ने कहा और स्की-पोल को बर्फ़ पर टकराते हुए तेज़ी से भाग लिया। स्कीइंग-बूट्स के सहारे वह बर्फ़ पर तेज़ी से फिसलता चला जा रहा था। 

नीलिमा की आँखें क्रोध से चमक उठीं। उसने अपने स्की-पोल को सँभाला और स्कीइंग करते हुए तेज़ी से उस व्यक्ति के पीछे लपकी। जल्दबाज़ी में उसका स्नो-गॉगल्स और हेलमेट वहीं गिर गया, इसकी उसने परवाह भी नहीं की। वह कुफरी-स्कीइंग स्पोर्ट्स की दो बार चैंपियन रह चुकी थी। उसी मैदान पर इस तरह की छींटाकशी उसकी बरदाश्त से बाहर थी। स्की-पोल को बर्फ़ पर तेज़ी से घुमाते हुए वह तीव्र गति से आगे बढ़ रही थी। उसे विश्वास था कि वह जल्द ही उस गुस्ताख़ को पकड़ लेगी। 

किन्तु नीलिमा का अंदाज़ा ग़लत निकला। उसने बहुत कोशिश की लेकिन वह उस मनचले के क़रीब नहीं पहुँच सकी। किन्तु वह हार नहीं मानना चाहती थी इसलिए पूरी शक्ति से आगे बढ़ रही थी। एक मोड़ पर छोटा सा पत्थर बर्फ़ से बाहर निकला हुआ था, नीलिमा उसे देख नहीं पाई। स्कीइंग-बूट्स के पत्थर से टकराते ही उसका पूरा शरीर हवा में उछल गया। 

नीलिमा के मुँह से तेज़ चीख निकल गई। इससे पहले कि वह लहराती हुई किसी गहरी खाई में जा गिरती, उसी मोड़ से तेज़ी से स्कीइंग करते हुए आ रहे एक व्यक्ति ने उसे अपनी बाँहों में सँभाल लिया। किन्तु वह ख़ुद अपने आप को सँभाल न सका और नीलिमा को बाँहों में लिए हुए बर्फ़ पर लुढ़कने लगा। नीलिमा उसकी बाँहों में बुरी तरह कसमसा रही थी। 

“अपने आप को सँभालना सीखो क्योंकि हर जगह तुम्हें सँभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूँगा,” उस व्यक्ति के होंठों से फुसफुसाहट भरी आवाज़ निकली। 

“कौन हो तुम?” नीलिमा चिहुँक उठी। 

उस व्यक्ति ने उत्तर देने के बजाय बर्फ़ की एक चट्टान पर पैर अड़ाते हुए अपने को सँभाला। इससे पहले कि बौखलाई नीलिमा खड़ी हो पाती, वह व्यक्ति स्की-पोल को बर्फ़ पर तेज़ी से घुमाते हुए वहाँ से चला गया। हतप्रभ नीलिमा उसे दूर जाते देखती रही। 

कौन था वह? देवदूत-सा प्रकट हुआ और अचानक ही चला गया। अपने प्राण-रक्षक का आभार भी नहीं प्रकट कर पाई थी नीलिमा। इस बात का मलाल था उसे। वह उसका चेहरा तो नहीं देख पाई पर न जाने क्यों उसकी आवाज़ कुछ पहचानी-सी लगी। कुछ ऐसी आवाज़ जो पहले भी उसके कानों में गूँज चुकी थी किन्तु नीलिमा किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पा रही थी। अतः कुछ देर वहीं खड़ी रहने के बाद बुझे मन से वापस लौट पड़ी। उसके अंतर्मन में उस अनजान व्यक्ति के कहे शब्द ‘अपने आप को सँभालना सीखो क्योंकि हर जगह तुम्हें सँभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूँगा’ अभी भी गूँज रहे थे। वे शब्द किसी मोह-पाश की भाँति उसे अपने में समेटते चले जा रहे थे। एक अजीब सा नशा उसके मनो-मस्तिष्क पर हावी होता चला जा रहा था। 

आज सुबह ही नीलिमा स्कीइंग-चैंपियनशिप में भाग लेने शिमला आई थी। ऑर्गेनाइज़िंग कमेटी की सेक्रेटरी मिसेज रीतिका सिन्हा ने उसका स्वागत करते हुए कहा, “वेलकम मिस नीलिमा, मुझे विश्वास है कि इस बार का मुक़ाबला पिछली बार से कहीं ज़्यादा रोमांचक होगा। मैं दुआ करूँगी कि आप जीत की हैट्रिक पूरी करें।”

“थैंक्स,” नीलिमा ने सिर को हल्का सा झुका कर आभार प्रकट किया फिर बोली, “हैट्रिक पूरी होने में कोई शक है आपको?”

“शक हो या न हो पर दुआ ज़रूर करूँगी,” रीतिका सिन्हा मुसकुराईं। 

“इस मेहरबानी की कोई ख़ास वजह?” नीलिमा खिलखिलाते हुए हँस पड़ी। उसके गालों में पड़े गड्ढों से उसकी ख़ूबसूरती कुछ और बढ़ गई थी। 

“दो वजहें हैं। पहली वजह तो है मेरा स्वार्थ। अगर आप फिर जीतीं तो वुमेन एंपावरमेंट का हमारा झंडा कुछ और बुलंद होगा। दूसरी वजह यह है कि हैट्रिक बनते ही आप इंटरनेशनल फ़िगर बन जाएँगी क्योंकि आपको यह जीत इंटरनेशनल स्टार ए.आर. पलिया को हरा कर हासिल होगी।” रीतिका सिन्हा ने रहस्य से पर्दा उठाया। 

“क्या ए.आर. पलिया इस चैंपियनशिप में भाग ले रहे हैं?” नीलिमा लगभग उछल सी पड़ी। 

“जी हाँ,” रीतिका सिन्हा ने सिर हिलाया फिर रिसेप्शन की ओर बढ़ती हुई बोली, “वे अपने किसी काम से परसों ही यूरोप से कोलकाता आए थे। हमारे प्रेसिडेंट को पता चला तो उन्होंने उनसे ‘कुफरी स्कीइंग चैंपियनशिप’ में भाग लेने का अनुरोध किया। पहले तो वे समय की कमी का हवाला दे रहे थे लेकिन प्रेसिडेंट साहब ने जब उनसे कहा वे इंडिया के यूथ-आइकॉन बन गए हैं। उनके चैंपियनशिप में भाग लेने से हिमाचल में टूरिज़्म के साथ-साथ स्पोर्ट्स को भी बढ़ावा मिलेगा तो वे मान गए और कल शाम ही शिमला पहुँचे हैं। उनका ऑटोग्राफ़ लेने के लिए माल रोड पर जाम लग गया था।”

“वे कहाँ रुके हैं?” नीलिमा ने उत्साह भरे स्वर में पूछा। 

“रुके तो इसी होटल में हैं लेकिन इस समय प्रैक्टिस के लिए कुफरी गए हुए हैं।”

“तो मैं भी कुफरी निकल रही हूँ। चैंपियनशिप से पहले उनसे एक बार ज़रूर मिलना चाहूँगी,” नीलिमा ने कहा और तेज़ी से अपने कमरे की ओर चली गई। 

थोड़ी ही देर में वह तरो-ताज़ा होकर बाहर निकली। रीतिका सिन्हा ने उसके लिए कार का इंतज़ाम कर दिया था। उत्साह से भरी नीलिमा कुफरी की ओर चल दी। स्कीइंग की दुनिया में ए.आर. पलिया का नाम अचानक ही धूमकेतु की तरह उभरा था जब पिछले सप्ताह उन्होंने स्विट्ज़रलैंड में आयोजित यूरोपियन स्कीइंग चैंपियनशिप में जीत हासिल की थी। नीलिमा ने यह ख़बर सुनी थी किन्तु व्यस्तता के कारण वह उनके बारे में ज़्यादा जानकारी हासिल नहीं कर सकी थी। बस इतना पता लगा था कि वह एक ऐन.आर.आई. हैं। 

शिमला से कुफरी की दूरी 20 कि.मी. है। वह एक घंटे में कुफरी पहुँच गई। स्कीइंग ग्राउंड पहुँचने पर पता लगा कि पलिया साहब प्रैक्टिस के लिए लास्ट-कैंप तक गए हुए हैं। नीलिमा भी पूरी तैयारी के साथ आई थी। स्कीइंग-सूट पहन वह भी प्रैक्टिस के लिए चल पड़ी। थोड़ी ही देर में वह उस दुर्गम घाटी के क़रीब पहुँच गई जिसके चारों ओर अतुलनीय सौंदर्य बिखरा हुआ था। नीलिमा जब भी कुफरी आती थोड़ी देर उस घाटी के पास ज़रूर रुकती। उसे वहाँ पर एक अजीब से सुकून का एहसास होता था। 

आज भी नीलिमा के क़दम स्वयमेव वहाँ रुक गए थे। वह प्रकृति से एकाकार हो ही रही थी कि उस गुस्ताख़ ने उसकी एकाग्रता भंग कर दी थी। उसका पीछा करते हुए वह उस पत्थर से जा टकराई थी जहाँ उसकी जान जाते-जाते बची थी। इससे नीलिमा का उत्साह भंग हो गया था और वह वापस लौट पड़ी। 

वह बेस कैंप तक पहुँची ही थी कि एक कार्यकर्ता ने आगे बढ़ते हुए कहा, “मैडम, बधाई हो। अब आपकी जीत पक्की हो गई है।”

“कैसे?” नीलिमा ने बुझे स्वर में कहा। 

“थोड़ी देर पहले ए.आर. पलिया साहब ने चैंपियनशिप से अपना नाम वापस ले लिया है।”

“क्यों?” नीलिमा उछल सी पड़ी। 

“कारण तो नहीं बताया लेकिन उनके बाद आपको चुनौती देने वाला कोई नहीं बचा,” उत्साहित कार्यकर्ता ने कहा। 

“पलिया साहब कहाँ हैं?” नीलिमा ने हड़बड़ाते हुए पूछा। 

“वे तो शिमला लौट गए,” कार्यकर्ता ने बताया। 

नीलिमा का संदेह अब कुछ और गहरा हो गया था। कार में बैठ कर वह भी शिमला लौट पड़ी। होटल के पोर्च में कार रुकते ही वह लगभग दौड़ते हुए रिसेप्शन पर पहुँची और हाँफते हुए बोली, “पलिया साहब किस रूम में ठहरे हैं?”

“वे तो चेक आउट कर गए,” रिसेप्शनिस्ट ने बतलाया। 

“चेक आउट कर गए?” नीलिमा का मुँह आश्चर्य से फैल गया। 

“जी, थोड़ी देर पहले ही एयरपोर्ट के लिए निकले हैं,” रिसेप्शनिस्ट ने कहा। 

“प्लीज़, आप ज़रा अपना लैपटॉप दे दीजिए,” नीलिमा ने विनती की। 

“सॉरी मैम, इस लैपटॉप में होटल की डिटेल्स सेव्ड हैं। इसे हम किसी कस्टमर को नहीं दे सकते,” रिसेप्शनिस्ट ने इनकार कर दिया। 

“प्लीज़, बस दो मिनट के लिए दे दीजिए। यह किसी की ज़िंदगी का सवाल है,” कहते-कहते नीलिमा की आवाज़ भर्रा उठी। 

रिसेप्शनिस्ट ने नीलिमा के चेहरे की ओर देखा। उस पर कुछ ऐसे भाव छाए हुए थे कि वह न नहीं कर सकी। उसने लैपटॉप चुपचाप नीलिमा की ओर बढ़ा दिया। 

नीलिमा ने जल्दी से गूगल पर जाकर ए.आर. पलिया टाइप किया। कई फ़ाइलें सामने आ गईं। नीलिमा ने विकिपीडिया को क्लिक कर दिया। अगले ही पल विकिपीडिया पर ए.आर. पलिया की फोटो के साथ-साथ उनका पूरा विवरण दिखने लगा। 

पूरा नाम: अंबर राज ‘पलिया’

जन्म स्थान: पलिया, ज़िला-लखीमपुर-खीरी, उत्तर प्रदेश

शिक्षा: युवराज दत्त महाविद्यालय, लखीमपुर

“वही है!” नीलिमा की आँखों से आँसू टपक पड़े और पूरा विवरण पढ़े बिना वह आँधी-तूफ़ान की तरह कार की ओर दौड़ पड़ी। 

रीतिका सिन्हा उसी समय होटल में प्रवेश कर रही थीं। नीलिमा को इस तरह भागते देख उन्होंने उसे आवाज़ भी दी लेकिन नीलिमा ने जैसे सुना ही नहीं। हड़बड़ाती हुई वे रिसेप्शनिस्ट के पास पहुँचते हुए बोलीं, “क्या हुआ? वह इस तरह भागते हुए होटल से क्यों चली गईं?”

“पता नहीं मैम, उन्होंने आकर पलिया साहब के बारे में पूछा। मैंने बताया कि वह चेक-आउट कर गए हैं तो उन्होंने मेरा लैपटॉप माँग कर कुछ देखा फिर ‘वही है’ कह कर भागते हुए चली गईं,” हतप्रभ रिसेप्शनिस्ट ने बताया। नीलिमा के इस तरह भागने से वह भी घबरा-सी गई थी। 

थोड़ी ही देर पहले कुफरी के लास्ट-कैंप से ख़बर आई थी कि पलिया साहब ने वहाँ पहुँच कर प्रतियोगियों की लिस्ट देखी फिर अचानक ही अपना नाम वापस लेने की घोषणा कर वापस चले आए। उनके बिना कारण चैंपियनशिप से नाम वापस लेने की ख़बर सुन रीतिका सिन्हा पहले से ही परेशान थीं और उनसे मिलने ही होटल आई थीं। यहाँ नीलिमा को इस तरह भागते देख उनका दिमाग़ चकरा गया था। उन्होंने जल्दी से लैपटॉप अपनी ओर मोड़ कर देखा। उस पर ए.आर. पलिया का विकिपीडिया खुला हुआ था। वह काफ़ी देर तक उसे देखती रहीं और जब कुछ समझ में नहीं आया तो सिर पकड़ कर रिसेप्शन के पास रखे सोफ़े पर बैठ गईं। 

उधर नीलिमा की कार तेज़ी से एयरपोर्ट की ओर जा रही थी किन्तु उसके अंतर्मन में अतीत के दृश्य उससे भी तेज़ी से चल रहे थे। क्लास वन से लेकर इंटर तक वह हर परीक्षा में प्रथम स्थान पाती रही थी। यह सिलसिला टूटा था बी.एससी. फ़र्स्ट ईयर के हाफ़-ईयरली एग्ज़ाम में। क्वार्टरली एग्ज़ाम में वह हमेशा की तरह प्रथम आई थी किन्तु हाफ़-ईयरली में उस शहर में नए-नए आए अंबर ने उसे दूसरे स्थान पर धकेल दिया था। बुरी तरह चिढ़ गई थी वह अपनी इस पराजय से और हमेशा अंबर को अपमानित करने का अवसर ढूँढ़ती रहती। किन्तु अंबर उसकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानता था और हमेशा मुसकुराता रहता। 

फ़ाइनल एग्ज़ाम से पहले उनकी क्लास का टूर हरिद्वार और ऋषिकेश गया हुआ था। पहला दिन हरिद्वार में हँसी-ख़ुशी बीता। दूसरे दिन छात्रों ने ऋषिकेश में वॉटर-राफ़्टिंग का प्रोग्राम बनाया। नीलिमा को तेज़ पानी से डर लगता था इसलिए वह और कुछ अन्य लड़कियाँ राफ़्टिंग पर नहीं गईं। वे लोग कल-कल बहती गंगा के किनारे पथरीली चट्टानों पर घूमते हुए नदी के तेज़ बहाव का आनंद ले रही थीं। अचानक एक चट्टान पर नीलिमा का पैर फिसल गया। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता वह छपाक से गंगा की विकराल लहरों में जा गिरी। 

पहाड़ों से अवतरित गंगा ऋषिकेश में पूरी प्रचंडता के साथ बहती है। नीलिमा को तैरना नहीं आता था। मौत उसकी आँखों के आगे नाच उठी। सभी मदद के लिए चीख़ रहे थे किन्तु गंगा के प्रचंड वेग के आगे बेबस थे। तभी राफ़्टिंग करती अंबर की बोट उधर आ गई। अंबर ने तुरंत छलाँग लगा दी। लहरों की विकरालता से युद्ध करता वह बहुत मुश्किलों से नीलिमा तक पहुँच पाया। हालाँकि वह लाइफ़-जैकेट पहने हुए थे फिर भी नीलिमा को किनारे लाते वह स्वयं डूबते-डूबते बचा था। 

“अपने आप को सँभालना सीखो क्योंकि हर जगह तुम्हें सँभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूँगा,” बेहोश होने से पहले नीलिमा के कानों में अंबर के स्वर गूँजे। 

टूर को अधूरा छोड़ उसी दिन पूरा दल लखीमपुर वापस लौट आया। इस दुर्घटना से सभी का मन खिन्न हो गया था किन्तु इसी दुर्घटना ने नीलिमा और अंबर की दोस्ती की एक नई दास्तान भी लिख दी थी। दोनों को अब एक-दूसरे को देखे बिना चैन नहीं मिलता था। 

फ़ाइनल एग्ज़ाम में एक बार फिर अंबर प्रथम आया था। नीलिमा ने दिल खोल कर उसे बधाई दी थी और फिर सेकंड ईयर की तैयारी में जुट गई। वह दिन-रात मेहनत करती किन्तु हर एग्ज़ाम में दूसरे नंबर पर ही रह जाती। प्रथम स्थान तो जैसे अंबर के लिए सुरक्षित हो गया था। 

थर्ड ईयर में एनुअल फ़ंक्शन होने वाले थे। पूरे कॉलेज में ज़बरदस्त तैयारी चल रही थी। नीलिमा ऑडिटोरियम में प्रतिदिन बैले की कड़ी प्रैक्टिस करती थी। 

‘छयैसे . . .पदीपूरे . . .” कोरियोग्राफ़र के निर्देशों पर नीलिमा एक दिन ऑडिटोरियम में थिरक रही थी। सभी साँस रोके उसके बैले को देख रहे थे। नीलिमा का पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो गया था किन्तु उसके क़दम रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वह पूर्ण तल्लीनता के साथ प्रैक्टिस में जुटी हुई थी। 

‘पिरव्ड्स. . .’ कोरियोग्राफ़र की आवाज़ गूँजते ही नीलिमा ने एक पैर पर खड़े होकर विद्युत गति से चक्कर लगाया ही था कि उसका पैर फिसल गया। इससे पहले कि वह लहराती हुई फ़र्श पर गिरती, पास ही अपने प्ले की प्रैक्टिस कर रहे अंबर ने दौड़ कर उसे अपनी बाँहों में सँभाल लिया था। 

नीलिमा के कानों में एक बार फिर मदहोश कर देने वाले शब्द गूँजे, “अपने आप को सँभालना सीखो क्योंकि हर जगह तुम्हें सँभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूँगा।”

“नीलिमा को सँभलने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उसे मालूम है कि अंबर हर पल उसके साथ ही रहता है,” नीलिमा खिलखिला कर हँस दी थी। अपनी बाँहों में उसे सँभाले अंबर उसे एकटक देखता रह गया था। 

देखते ही देखते थर्ड ईयर के एग्ज़ाम क़रीब आ गए। नीलिमा और अंबर जी तोड़ मेहनत कर रहे थे। आख़िरी पेपर फिजिक्स का था। उससे पहले दो दिन का गैप था। नीलिमा के फिजिक्स के नोट्स कहीं गुम हो गए थे। उसे परेशान देख अंबर ने कहा कि वह अपने नोट्स की फोटो कॉपी करवा कर उसे दे देगा। 

वह एक ख़ूबसूरत शाम थी जब अंबर नोट्स की फोटो कॉपी देने नीलिमा के घर पहुँचा। पहली बार घर आए अंबर का नीलिमा ने दिल खोल कर स्वागत किया। 

उसे अपने कमरे में बैठाने के बाद नीलिमा ने मम्मी के पास जाकर कहा, “मम्मा, जल्दी से चाय और कुछ स्नैक्स बना दो।”

“कौन है ये?” लड़के को आया देख पुराने ख़्यालों वाली मम्मी ने आशंकित स्वर में पूछा। 

“अंबर, मेरा क्लासफ़ेलो,” नीलिमा ने बताया। 

“तो यही है वो नासपीटा जिसने तुम्हारी ज़िंदगी हराम कर रखी है!” मम्मी तो अंबर का नाम सुनते ही उखड़ गईं। 

“यह क्या कह रही हैं आप? वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त है!” नीलिमा का स्वर आश्चर्य से भर उठा। 

“बचपन से तू हमेशा फ़र्स्ट आती रही है। मगर इस दुष्ट ने तुझे दूसरे स्थान पर धकेल दिया है। पढ़ाई करते-करते मेरी फूल जैसी बेटी की आँखें सूज गईं मगर इससे जीत न सकी। यह तेरा दोस्त नहीं दुश्मन है, दुश्मन!” मम्मी काट खाने वाले अंदाज़ में हाथ नचाते हुए बोलीं। 

“मम्मी, यह क्या उल्टा-पुल्टा बोल रही हो। वह सुन लेगा तो मुश्किल हो जाएगी!” नीलिमा ने मम्मी के मुँह पर हाथ रख दिया। वह बहुत मुश्किलों से उन्हें कुछ बनाने के लिए राज़ी कर सकी थी। 

मम्मी को किचन में भेज नीलिमा जब अपने कमरे में पहुँची तो अंबर वहाँ न था। शायद उसने मम्मी की बातें सुन ली थीं तभी बिना कुछ कहे चला गया था। नीलिमा फूट-फूट कर रो पड़ी किन्तु जो हो गया था उसे वापस नहीं लौटाया जा सकता था। 

दो दिन बाद नीलिमा झिझकते हुए फिजिक्स का पेपर देने पहुँची। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि अंबर का सामना कैसे करेगी। किन्तु अंबर तो एग्ज़ाम देने ही नहीं आया। पता नहीं उसे क्या हो गया था। पेपर देकर नीलिमा सीधे उसके कमरे पर पहुँची तो पता लगा कि वह अपने घर पलिया चला गया है। 

अंबर के इस तरह अचानक एग्ज़ाम छोड़ कर चले जाने से नीलिमा का मन घबरा रहा था। मन में अनेकों झंझावात लिए वह घर लौट आई। अंबर के दिए गए नोट्स उसकी मेज़ पर ही रखे थे। उस दिन उसके इस तरह अपमानित होकर चले जाने के बाद नीलिमा ने उनको उठा कर भी नहीं देखा था। मम्मी के प्रति आक्रोश प्रकट करने का उसे यही तरीक़ा समझ में आया था।

अंबर के नोट्स को देखते ही उसने उन्हें काँपते हाथों से उठा लिया। किंतु पहला पन्ना खोलते ही उसकी चेतना जड़ हो गई। ख़ूबसूरत अक्षरों में लिखे इकलौते वाक्य ने उसके अस्तित्व को ही हिला दिया था।

“फ़ाइनल एग्ज़ाम में प्रथम स्थान पाने की अग्रिम शुभ-कामनाएँ!” अंबर के हाथों से लिखे अक्षर किसी नश्तर की भाँति नीलिमा की अंतरात्मा को बींधे डाल रहे थे। इसका मतलब अंबर जान-बूझ कर फिजिक्स का पेपर देने नहीं आया था। नीलिमा का प्रथम स्थान सुरक्षित करने के लिए उसने अपना करियर ही बर्बाद कर डाला था। नीलिमा को अपने वजूद से ही घृणा होने लगी। क्रोध से फुँफकारती हुई वह बाहर आई और मम्मी को क्या-क्या नहीं कह डाला था उसे ख़ुद याद नहीं।

पूरी बात जान मम्मी भी सन्न रह गईं। उनकी बातों से आहत हो अंबर ऐसा क़दम उठा लेगा, इस बात की उन्हें कल्पना भी नहीं थी। उनकी आँखों से भी गंगा-जमुना बह निकली।

अगले ही दिन मम्मी, नीलिमा को लेकर पलिया पहुँची तो वहाँ दूसरा आघात उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। अंबर के माता-पिता की काफ़ी पहले मृत्यु हो गई। तीन दिन पहले अचानक वह अपनी ज़मीन-जायदाद कौड़ियों के मोल बेच विदेश चला गया था। किंतु वह किस देश में गया था, किसी को पता नहीं था। नीलिमा ने उसे ढूँढने की हर संभव कोशिश की लेकिन असफल रही।

धीरे-धीरे बारह वर्ष बीत गए। नीलिमा अब एक मल्टीनेशनल बैंक में अधिकारी थी। स्नो-स्कीइंग उसका बचपन का शौक़ था। हर साल वह स्कीइंग करने कुफरी ज़रूर आती। पिछले दो वर्षों से वह यहाँ की चैंपियन थी। नीलिमा को याद आ रहा था कि एक दिन अंबर ने बताया था कि उसके पूर्वज पंजाब से पलिया आए थे। पंजाब में अपने नाम के आगे अपने गाँव का नाम जोड़ने का रिवाज़ है। इसीलिए उसने नाम अंबर राज के आगे ‘पलिया’ जोड़ कर उसे ए.आर. पलिया कर लिया था। इस नाम को सुन कर नीलिमा को आभास भी नहीं हुआ था कि वह अंबर है, किंतु कुफरी में उस अनजान मददगार के मुँह से निकले शब्दों ‘अपने आप को सँभालना सीखो क्योंकि हर जगह तुम्हें सँभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूँगा’ ने उसकी यादों को ताज़ा कर दिया था।

उसका नाम प्रतियोगियों की लिस्ट में देख कर अंबर ने एक बार फिर उसका प्रथम स्थान सुरक्षित करने के लिए इतना बड़ा बलिदान कर दिया था। निश्चित रूप से अंबर ने उसे पहचान भी लिया था किंतु एक बार फिर उसकी प्राणों की रक्षा कर वह बिना कुछ कहे जिस तरह चला गया था, उससे स्पष्ट था कि वह अभी तक आहत है। नीलिमा का कलेजा बैठा जा रहा था। वह बार-बार ड्राइवर से तेज़ चलने के लिए कह रही थी। अंबर को पाकर वह दोबारा उसे खोना नहीं चाहती थी।

नीलिमा जिस समय एयरपोर्ट पहुँची, अंबर चेक-इन के लिए आगे बढ़ रहा था। उसे देखते ही वह पुकार उठी, “अंबर, रुक जाओ!”

अंबर ने पलट कर पीछे देखा। पल भर ठिठकने के बाद वह पुनः तेज़ क़दमों से गेट की ओर बढ़ने लगा।

“अंबर, प्लीज़ रुक जाओ। अंबर के बिना नीलिमा का कोई अस्तित्व नहीं है!” नीलिमा पूरी शक्ति से अंबर की ओर दौड़ पड़ी। उसकी पुकार में तीनों लोक की करुणा समाई हुई थी।

अंबर के बढ़ते हुए क़दम ठिठक गए। उसने एक बार फिर पीछे पलट कर देखा। उसकी आँखों में भी ज़माने भर का तूफ़ान समाया हुआ था।

“मम्मी की ग़लती के लिए मुझे इतनी बड़ी सज़ा मत दो। मम्मी भी जीवन के अंतिम पलों तक अपने आप को माफ़ नहीं कर पाई थीं। अगर आज वे होतीं तो वे तुमसे हाथ जोड़ कर माफ़ी माँग लेतीं,” नीलिमा ने क़रीब पहुँच फ़फ़कते हुए अपने दोनों हाथ जोड़ दिए। 

“क्या आंटी इस दुनिया में नहीं हैं?” अंबर के होंठ हिले। 

“हाँ, वे तुमसे माफ़ी माँगने तुम्हारे घर पलिया तक गईं थीं मगर तुम वहाँ से जा चुके थे,” इतना कह नीलिमा पल भर के लिए रुकी फिर बोली, “मम्मी, को जब पता चला कि मैं ख़ुद तुम्हें फ़र्स्ट आते देखना चाहती थीं तो वे बहुत रोई थीं . . .”

“क्या कहा? तुम ख़ुद मुझे फ़र्स्ट आते देखना चाहती थी?” अंबर तड़प उठा। उसकी आँखों में थर्ड ईयर की क्लास का वह दृश्य कौंध उठा जब हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट मिसेज डिसूजा ने नीलिमा को डाँटते हुए कहा था कि वह टाइम मैनेजमेंट सीखे ताकि एग्ज़ाम में साढ़े चार के बजाय पूरे पाँच प्रश्नों का उत्तर लिख सके। 

नीलिमा ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह अपने होंठों को दाँतों तले दाब सिसकी भरती रही। 

भयानक तूफ़ान के बाद जैसे कुहासा हट गया हो। अंबर, नीलिमा के कंधों को पकड़ उसे झिंझोड़ते हुए चीख़ पड़ा, “इसका मतलब तुम जान बूझ कर साढ़े चार प्रश्न ही हल करती थी ताकि मैं प्रथम आ सकूँ!”

नीलिमा ने इस बार भी कोई उत्तर नहीं दिया। उसने अपनी आँखें झुका लीं किन्तु अंबर ने उसके चेहरे को अपने हाथों में भर लिया और उसकी आँखों में झाँकते हुए भर्राए स्वर में बोला, “इतना बड़ा बलिदान और हमें ख़बर तक नहीं होने दी?”

“बलिदान तो तुमने भी किया था और हमें बताया तक नहीं। यह भी नहीं सोचा कि अंबर के बिना नीलिमा कितनी अधूरी है!” नीलिमा की आँखों से अश्रुधार बह निकली। 

“नीलिमा, अगर हो सके तो अंबर को उस गुनाह के लिए माफ़ कर दो जो उसने तुमसे दूर जाकर किया है,” अंबर का स्वर काँप उठा। 

नीलिमा किसी लता की भाँति अंबर के चौड़े सीने से लिपट गई। उसके आँसू अंबर को भिगोते जा रहे थे। भावनाओं का ज्वार जब कुछ कम हुआ तो नीलिमा ने सिसकी भरते हुए कहा, “अंबर, हम दोनों ने एक-दूजे के लिए त्याग किया था फिर भी हमें इतनी बड़ी सज़ा क्यों मिली?”

“प्यार पूर्ण समर्पण चाहता है। हमने एक-दूसरे से कुछ छुपाया था शायद इसी की सज़ा हमें मिली है,” अंबर ने नीलिमा के चेहरे पर घिर आई लटों को हटा उसका माथा चूम लिया। 

बारह वर्षों की दूरी मिट चुकी थी। नीलिमा ने अंबर का हाथ थाम लिया और उसे चूमते हुए बोली, “वादा करो कि कल होने वाली चैंपियनशिप में तुम जीतने की पूरी कोशिश करोगे।”

“तुम्हें भी वादा करना होगा कि तुम हारोगी नहीं,” अंबर ने एक बार फिर नीलिमा के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर कर उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा। 

“वादा रहा!” नीलिमा पूरी ताक़त से अंबर से लिपट गई। 

एक-दूजे को जीत का तोहफ़ा देने के लिए दो प्रेमी वापस लौट पड़े। अंबर में मुसकुराता हुआ सूर्य दोनों के मिलन का साक्षी था। 

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