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भारतेत्तर हिंदी साहित्यकारों की रचना प्रक्रिया की पड़ताल करती पुस्तक: ‘विश्व के हिंदी साहित्यकारों से संवाद’

पुस्तक का नाम: विश्व के हिंदी साहित्यकारों से संवाद भाग 1 एवं 2 
संपादक: डॉ. दीपक पाण्डेय एवं डॉ. नूतन पाण्डेय 
प्रकाशक: स्वराज प्रकाशन, 4648 /
1, 21, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली, 110002, फ़ोन-011-23289915 
पृष्ठ संख्या/ मूल्य:    
भाग 1: 402 / रु. 1295
भाग 2: 265 / रु 895
प्रथम संस्करण: 2021 

‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि’ कवि की तर्ज़ पर अब कहा जा सकता है जहाँ न पहुँचे आदित्य वहाँ पहुँचे भारतीय। यह पूर्णतया सत्य है क्योंकि धरती के अंतिम छोर तक विश्व के कोने-कोने में और दुनिया के छोटे–बड़े हर देश में जहाँ तक सूर्य की किरणें जाती हैं वहाँ तक अब भारतीयों की पहुँच हो गई है। सन्‌ 1834 में गिरमिटिया (एग्रीमेंट-एग्रीमेंट—गिरमिटिया) मज़दूरों के रूप में भारतीयों की जो प्रवासन प्रक्रिया प्रारंभ हुई थी वह विभिन्न परिस्थितियों परिवेश और भिन्न स्वरूप में अब भी जारी है। जो गिरमिटिया सत्तू-चिवड़ा, लोटा-डोरी और धोती-गमछे के साथ रामचरितमानस की पोथी, तुलसी का बिरबा और गंगा मईया का जल लेकर फीजी, मॉरीशस, त्रिनिदाद, गुयाना, दक्षिण अफ़्रीका आदि देशों में गए थे। आज उनकी चोथी-पाँचवी पीढ़ी अपने देश में कृषि फ़ार्मों की मालिक तो है ही सत्ता के शीर्ष तक पहुँच चुकी है। अब स्वयं को गिरमिटिया या प्रवासी भारतीय के बजाए भारतवंशी कहलाना पसंद करने वाले इन लोगों का अपने पूर्वजों के देश भारत के प्रति परंपरागत सांस्कृतिक सम्बन्ध अभी तक क़ायम है। 

दूसरी और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बदली भू-राजनीतिक स्थिति, औद्योगिक और संचार क्रान्ति, वैश्वीकरण की प्रक्रिया और बाज़ारबाद की प्रवृति के चलते पूरे विश्व में भारत के प्रशिक्षित कामगारों और आई टी प्रोफेशनल्स के साथ-साथ डॉक्टर, प्रोफ़ेसर, अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक, प्रबंधक आदि पेशेवरों की माँग बढ़ने लगी और देखते ही देखते विश्व में भारतीय पहुँच गए। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इस प्रवासन को और बढ़ावा दिया। वहीं विदेशों में भारतीय पूँजी निवेश और व्यापार से भी इसे गति मिली। कहा जा सकता है कि अपनी प्रतिभा, कार्यक्षमता और प्रबंध कौशल के दम पर आज ‘जीनियस’ भारतीय पूरे विश्व पर अपना प्रभुत्व जमा चुके हैं। अमरीका, कैनेडा और ब्रिटेन जैसे विकसित और बड़े देशों में अब भारतीय निर्णायक भूमिका में हैं। ‘2021 इण्डियास्पोरा गवर्नमेंट लीडर्स’ के अनुसार विश्व के 20 देशों में दो सौ से ज़्यादा भारतवंशी तथा प्रवासी भारतीय महत्त्वपूर्ण उच्च पदों पर क़ाबिज़ हैं। अस्तु भारतीय जहाँ भी जाते हैं वहाँ एक लघु भारत बसा ले लेते हैं। परसाद, बीकानेरी भुजिया, लिज्जत पापड़, एमडीएच मसाले और अमूल व् मदर डेयरी के उत्पाद खाकर और अक्षय-शाहरुख-सलमान-आमिर की फ़िल्में देखकर पली बड़ी भारतीयों की नई पीढ़ी को विदेशों में नए भारत का सांस्कृतिक दूत कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा। 

आत्मानुभूति का शब्द रूप ही साहित्य है। अनुभूति जितनी त्रासद होगी अभिव्यक्ति उतनी ही स्वतः स्फूर्त और मर्मस्पर्शी होगी इसलिए गिरमिटिया मज़दूर रामकथा और आल्हा का मंचन तथा कबीर व तुलसी की रचनाओं का पाठ करते-करते कब साहित्यकार बन गए पता ही नहीं चला। अत: एक ओर कमलाप्रसाद मिश्र, अनुभवानंद आनंद, अमरजीत कौर, जोगिंदर सिंह कँवल, काशीराम, ब्रिज बिलास लाल, रेमंड पिल्लई, सुब्रमनी, विविकानंद शर्मा, ईश्वरीप्रसाद चौधरी (फीजी), प्रो. हरिशंकर आदेश, कमला रामलखन, सुमति करीम, वासुदेव पाण्डेय (त्रिनिडाड); पूजानंद नेमा, ब्रजेन्द्र कुमार भगत ‘मधुकर’, बीरसेन जागासिंग, मुनीश्वरलाल चिंतामणि, अजामिल माताबदल, अभिमन्यु अनत, रामदेव धुरंधर, इन्द्रदेव भोला (मॉरिशस), सुरजन परोही, चित्रा गयादीन, जीत नारायण, प्रेमानंद भोंदू, हरिदेव सहतू, और राम भजन सीताराम, किसुन बिहारी, चंपा विशिष्ट मुनि, तुलसीराम पाण्डेय, मालती रामबली (द अफ़्रीका) जैसे अनेक भारतवंशी साहित्यकार सामने आए। वहीं दूसरी ओर दीप्ति खंडेलवाल, गुलाब खंडेलवाल कृष्ण बलदेव वैद, विजयकुमार मेहता, सुषम बेदी, प्रभा सक्सेना, इला प्रसाद, सुधा ओम ढींगरा (अमेरिका), स्नेह ठाकुर, हंसादीप, धर्मपाल महेंद्र जैन, सुमन घई, श्याम त्रिपाठी, रत्नाकर नराले, शैलजा सक्सेना (कैनेडा), हरिशंकर आदेश (त्रिनिदाद), तेजेंद्र शर्मा, अचला शर्मा, उषा राजे सक्सेना (ब्रिटेन); मोहनकांत गौतम, पुष्पिता अवस्थी (नीदरलैंड), उषा ठाकुर, श्वेता दीप्ति (नेपाल) आदि सहस्त्रों साहित्यकारों ने अपनी हिंदी सृजनशीलता और रचनाधर्मिता के बल पर वैश्विक पहचान क़ायम की है। इन कतिपय चर्चित और सुपरिचित साहित्यकारों के अतिरिक्त शातादिक लेखक कवि हैं जो विश्व के अनेक देशों में अपने–अपने स्तर पर निरंतर रचनारत हैं। हिंदी भाषा के प्रचार और साहित्य के विकास में इनकी भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। विश्व हिंदी सम्मेलनों, अकादमिक संगोष्ठियों, वेब पोर्टलों, पात्र-पत्रिकाओं और फ़ेसबुक, यू-ट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म से इनका पारस्परिक परिचय संपर्क तो होता रहता है किन्तु इनके लेखन का सम्यक मूल्यांकन नहीं हो पाता इसलिए इनकी शिकायत होती है कि प्रवासी हिंदी साहित्यकारों और उनके साहित्य को भारत के साहित्यकारों और उनके साहित्य की भाँति न सम्मान मिलता है न ही महत्त्व। यही कारण है कि 20 वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में प्रवासी-हिंदी साहित्य विमर्श जैसी अवधारणा पैदा हुई। पंडित विवेकानंद शर्मा, पुष्पिता अवस्थी और कमल किशोर गोयनका जैसे लेखकों तथा प्रवासी संसार, ज्ञानोदय, प्रवासी जगत, हिंदी जगत, विश्व हिंदी पत्रिका, समकालीन साहित्य, भाषा, नई धारा, आधारशिला जैसी पत्रिकाओं ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए प्रवासी साहित्य और साहित्यकारों के महत्त्व को रेखांकित किया। अब इस महत कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है पाण्डेय दंपति डॉ. दीपक और डॉ. नूतन पाण्डेय ने। दोनों केंद्रीय हिंदी निदेशालय भारत सरकार नई दिल्ली में कार्यरत हैं। दोनों क्रमशः त्रिनिदाद और मॉरीशस स्थित भारतीय उच्चायोग में राजनयिक रह चुके हैं बहुभाषाविद हैं। प्रवासी साहित्य और साहित्यकारों से निकट से जुड़े हैं और इस विषय पर रचनाएँ लिख चुके हैं। इन दोनों के कोरोनाकाल में आभासी पटल पर विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार से जुड़ी जानकारियाँ साझा कीं और प्रवासी-साहित्य पर बहुत ही सारगर्भित व्याख्यानों से हिंदी जगत को इस दिशा में विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया किया है। प्रवासी साहित्यकारों से साक्षात्कार लेकर इन्होने हिंदी दर्शकों, पाठकों, श्रोताओं, साहित्य प्रेमियों को लेखकों से मुख़ातिब होने का अवसर उपलब्ध कराया है। दोनों अत: उनके द्वारा प्रवासी साहित्य और साहित्यकारों पर किया जाने जाने वाला कोई भी कार्य निश्चय ही महत्त्वपूर्ण माना जाएगा। 

स्वराज प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित ‘विश्व के हिंदी साहित्यकारों से संवाद ’ डॉ. दीपक पाण्डेय और डॉ. नूतन पाण्डेय द्वारा संयुक्त रूप से तैयार पुस्तक है, जो दो भागों में है, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, कैनेडा, फीजी, नॉर्वे, सिंगापुर, रूस, आदि देशों के हिंदी साधकों/प्रेमियों के साथ संवाद किया है। मैंने विस्तार से अनिल प्रभा कुमार, अनुराग शर्मा, दिव्या माथुर, धर्मपाल महेंद्र जैन, बीरसेन जागासिंग, राज हीरामन, रामदेव धुरंधर, तेजेंद्र शर्मा, पद्मेश गुप्त, पुष्पा सक्सेना, रामा तक्षक, राधेश्याम त्रिपाठी, सुधा ओम ढींगरा, रीता कौशल, रेखा राजवंशी, सिरोजिद्दीन, स्नेह ठाकुर, शैलजा सक्सेना, हरिशंकर आदेश, सुरेशचंद्र शुक्ल, रोहित कुमार ’हैप्पी’, राकेश शंकर भारती, तिथि दानी, रिचा जैन, संगीता बंसल, प्रो. सुब्रमनी, शिखा वार्ष्णेय, रत्नाकर नराले, हंसादीप, ममता सिंह, सुनीता नारायण, सहित कुल 36 प्रवासी साहित्यकारों के साक्षात्कार को पढ़ने का अवसर मिला। इसमें प्रवासी, भारतवंशी और विदेशी सभी प्रकार के हिंदी साहित्यकार शामिल हैं। इन दो शब्दों को लिखने के क्रम में प्रस्तुत साक्षात्कारों के माध्यम से जहाँ मेरे परिचित, अपरिचित साहित्कारों को पुन: जान पाया, वहीं प्रवास की पृष्ठभूमि में साहित्य सर्जना की परिस्थितियों और रचनाकारों की रचनाधर्मिता को जानने का अवसर मिला। पाण्डेय दंपति ने परिश्रमपूर्वक साहित्यकारों से उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, प्रवासन के कारणों, साहित्य सृजनभूमि, हिंदी के विकास में उनकी भूमिका तथा उनके देश में हिंदी भाषा और साहित्य की स्थिति आदि विषयों पर विस्तार से जानने का सफल सार्थक प्रयास किया है। इन साक्षात्कारों के माध्यम से प्राप्त जानकारी रोचक ही नहीं ज्ञानवर्धक भी है। अत: इनके आधार पर कुछ निष्कर्ष सहज ही निकाले जा सकते हैं, यथा:

  1. अधिकतर महिला साहित्यकारों ने अपने सपनों, महत्त्वाकांक्षाओं और आत्मीय सम्बन्धों की दुनिया पीछे छोड़कर अपने पति की महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति में सहयोग देने हेतु नींव का पत्थर बनकर सुदूर ठंडे-गरम देशों में जाना स्वीकार किया है। 
  2. हिंदी लेखकों की स्थिति बड़ी दयनीय होती है वे देश में रहें या विदेश में कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। हिंदी का लेखक लिखकर नहीं खा सकता, तमाम लेखक खाकर लिखते हैं। अत: सभी को कोई न कोई सर्विस अवश्य करनी होती है। 
  3. सभी प्रवासी लेखक अनुभव करते हैं कि वे चाहे कहीं भी रहें भारत ही उनका देश है। भारत को भुला पाना उनके लिए सम्भव नहीं क्योंकि भारत उनके हृदय में, स्मृतियों में बसता है। 
  4. प्रवासी किसी भी देश में रहते हों हिंदी भाषा, भारतीय संस्कृति, कला, संगीत, फ़िल्में उनके जीवन का अभिन्न अंग बनी रहती हैं। 
  5. परिस्थितियों और प्रारब्ध ने उन्हें कहीं से कहीं पहुँचा दिया है और वे विश्व नागरिक बन चुके हैं।
  6. अनेक प्रवासी साहित्यकार किसी न किसी पत्रिका से जुड़े हैं। स्नेह ठाकुर (वसुधा); श्याम त्रिपाठी (हिंदी चेतना); सुधा ओम ढींगरा (विभोम स्वर); अनुराग शर्मा (सेतु); तेजेंद्र शर्मा (पुरवाई); सुरेशचन्द्र शुक्ल (स्पाइल दर्पण); रीता कौशल (भारत भारती) और रोहित कुमार (भारत दर्शन) इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। विदेशों से प्रकाशित होने वाली पत्रिकाएँ संपादकों के लिए आत्माभिव्यक्ति का माध्यम तो हैं ही प्रवासी साहित्य और साहित्यकारों से जुड़ने का उचित मंच भी हैं। 

इन साक्षात्कारों से गुजरने के बाद कहा जा सकता है कि साक्षात्कारकर्ता द्वय ने विश्व के हिंदी साहित्यकारों से संवाद कर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के अनेक अनछुए पहलुओं को उजाकर करने के साथ-साथ हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में उनकी भूमिका और योगदान को भी रेखांकित किया है। हिन्दी के तकनीकी पक्ष पर रोहित कुमार, अनुराग शर्मा ने बहुत अच्छी जानकारी दी है, प्रभा सक्सेना और रीता कौशल द्वारा उपलब्ध कराई जानकारी बहुत मूल्यवान है। स्नेह ठाकुर द्वारा दी गई ‘हिन्दू’ की परिभाषा भी बेजोड़-अद्भुत है, तेजेंद्र शर्मा, रोहित कुमार आदि के साक्षात्कार आकर्षक और रोचक हैं। 

निष्कर्ष यह कि ‘विश्व हिंदी साहित्यकार’ पुस्तक साक्षात्कार विधा की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा सकती है। वैश्विक हिंदी साहित्य के संदर्भ में भी यह उपयोगी सिद्ध होगी मुझे इसका पूर्ण विश्वास है। प्रकाशक ने बहुत ही उम्दा साज-सज्जा से पाठकों को पुस्तक सौंपी है वे बधाई के पात्र हैं। बहरहाल डॉ. दीपक और डॉ. नूतन पाण्डेय को इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ। हमें पुस्तक के अन्य खण्डों का बेसब्री से इंतज़ार है। 

                                
डॉ. रामनिवास ‘मानव’
प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, सिंघानिया विश्वविद्यालय, 
पचेरी बड़ी, राजस्थान     
मोबाइल +91 8053545632। 7027777632
Email: manavbharti@gmail.com

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टिप्पणियाँ

धर्मपाल महेंद्र जैन 2022/04/15 06:13 PM

डॉ. दीपक एवं डॉ. नूतन पांडेय द्वारा लिए गए साक्षात्कारों के आधार पर डॉ. मानव ने प्रवासी रचनाकारों की आम प्रवृत्तियों पर रोचक और सही निष्कर्ष निकाले हैं। तीनों अध्येताओं को बधाई।

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