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भारतीय शरीर पर विदेशी दर्द ‘प्रवासी कथा संसार–एक दृष्टिकोण’

 

हिंदी का प्रवासी कथा साहित्य हिंदी साहित्य में अपना विशेष स्थान रखता है प्रवासी कथा साहित्य को अनेक कृतियों से समृद्ध किया है इसमें प्रवासी कथाकारों की रचनाएँ विशेष महत्त्व की है इनके साथ ही विश्व के विभिन्न देशों से अलग-अलग रचनाकारों की प्रतिनिधि रचनाएँ लेकर संकलित करना स्वयं में विशिष्ट कार्य है यह कृति इसी प्रकार का एक प्रयास है इस कृति में ग्यारह कहानियाँ हैं जो भारतीय जीवन का प्रतिनिधित्व तो करती ही हैं साथ ही अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, कैनेडा, ब्रिटेन की धरती के दर्शन भी कराती है इस दृष्टि से यह कहानी संग्रह एकदम अलग स्थान रखता है

डॉ. मुक्ति शर्मा का अनथक प्रयास इसमें परिलक्षित होता है कहानी संग्रह में संकलित सुदर्शन प्रिदार्शनी की कहानी ‘अखबारवाला’ विदेशों में संबंधों की सच्चाई को खोलती है भारतीय समाज जहाँ एक ओर बहुत दूर के सम्बन्ध और सामान्य से परिचय को भी बड़ी गहनता के साथ निभाता है वहीं पश्चिम में संबंधों के वृत्त बहुत सीमित और छोटे होते हैं प्रवासी भारतीय स्त्री के मन की कसक, पराये लोगों में अपनापन ढूँढ़ने और उसका बैचैनी के आकाश का कैनवस है किसी के निधन पर मन में उठने वाली भावनाओं का वेग सिर्फ़ भारत में है जबकि पश्चिमी देशों में ऐसा नहीं है! सुमन कुमार घई की कहानी ‘लाश’ में भी कुछ इसी प्रकार की स्थितियाँ दिखाई देती है भारतीय सन्दर्भों में देखें तो यहाँ का समाज संबंधों के विस्तार को साथ लेकर चलता है! 

रेखा राजवंशी की कहानी ‘गोरी डायन’ विवाहेत्तर संबंधों की कहानी कहती है कहानी का शीर्षक आकर्षक होने के साथ ही विवाहेत्तर सम्बन्ध के उस पक्ष को बड़ी सहजता के साथ व्यक्त कर देता है। 

कहानी संग्रह में तेजिंदर शर्मा की ‘जमीन भुरभुरी क्यों है’ प्राण शर्मा की ‘अकेलापन’ और अरुण सब्बरवाल की ‘उड़ारी’ कहानियाँ भी संकलित है हिंदी के प्रवासी कथा साहित्य में ये तीनों नाम किसी परिचय की अपेक्षा नहीं रखते हैं इनकी कहानियों में प्रवासी जीवन के अनेक रंग निखरते हैं अपनी मिट्टी से बिछड़कर विदेश की धरती पर जाने के कारण अलग अलग हो लेकिन हर भारतीय प्रवासी बड़ी सहजता से उस देश में अपने कर्म बल की अमिट रेखाएँ खींचता है तीनों कहानियों में इसी मूल स्वर को देख सकते हैं! 

हिंदी का प्रवासी कथा साहित्य प्रवासी कथाकारों के सारस्वत प्रयासों से पुष्पित और पल्लवित है! प्रवासी कथाकारों की रचनाएँ न केवल विदेश की धरती के क़िस्सों को, वहाँ के जीवन को, वहाँ की सांस्कृतिक विशेषता को प्रकट करती है, वरन्‌ प्रवासियों के जीवन संघर्षों का ख़ाका भी खींचती है अनेक रंग, विविध कलेवर और विभिन्न भावभूमियों के साथ हिंदी का प्रवासी कथा साहित्य अपना विशेष स्थान रखता है इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए यह कथा संग्रह पाठकों के हाथों में है डॉ. मुक्ति शर्मा का संकलन और संपादन! मुक्ति शर्मा स्वयं भी कथाकार व् उपन्यासकार है उनकी साहित्यिक सक्रियता के रूप में यह कृति विशेष महत्त्व रखती है! 

कुसुम सबलानिया
शोधार्थी ( पीएचडी )
दिल्ली विश्वविद्यालय
ईमेल: kusumsabal9@gmail.com
मो. 8802324084

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