बोल
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता सुरेश चन्द्र 'सर्वहारा'15 Aug 2025 (अंक: 282, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
बोलें हम सब ऐसे बोल
सब ख़ुशियों से जाएँ डोल,
बोलों में है छुपा हुआ
इस जीवन का असली मोल।
लें पहले हम मन में तोल
तब बोलें मुँह धीरे खोल,
बात कहें सीधी सच्ची
खुले न जिससे पीछे पोल।
बोल कभी ना बोलें गोल
ठीक नहीं है टालमटोल,
कहें बोल सबसे मीठे
अपनेपन की मिश्री घोल।
बोल बनें ना फूटे ढोल
आडम्बर का चढ़े न झोल,
नहीं रहेंगे कल को हम
रह जाएँगे केवल बोल।
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