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बूढ़ी बुआ

“बाबू, एक लोटा पानी दो न, मुझे बहुत प्यास लगी है,” बूढ़ी बुआ अपने बड़े बेटे के दरवाज़े के सामने सड़क के पास बैठी अपने पोते से बोली। इतने में बूढ़ी बुआ की बड़ी बहू एक कनकटे लोटे में पानी छलकाते हुए घर से बाहर निकली और अपने सास को देते हुए बोली, “इस ठंडी में भी पानी पीने का सहूर नहीं है। लो पी लो और जुड़ा जाओ।” 

अपनी पतोहू की व्यंग्य्य भरी बात को सुनकर भी बूढ़ी बुआ बिना कुछ बोले पानी पीकर तृप्ति की साँस ली। यह वही बुआ है जब अपने ज़माने में किसी भी बात पर तंज़ कसा करती थी। अपनी दोनों बहुओं को सामाजिक रीति-रिवाज़, लोकाचार आदि की बातें क़दम-क़दम पर बताती रहती थी और उन्हें चेतावनी देते रहती थी कि ख़बरदार! कुछ भी इधर-उधर हुआ तो! क्या मजाल की कोई बुआ की बातों को अनसुनी कर दे। घर में बहुत रौब-दाब था बुआ का। वह अब बूढ़ी हो गई हैं। कुछ परिस्थितियों ने किया है और कुछ बीमारी ने। 

बुआ के पति का देहांत जिस समय हुआ उस समय बुआ के बड़े बेटे मनोहर लाल की उम्र 8 वर्ष, छोटे बेटे धरोहर लाल की उम्र 5 वर्ष तथा बेटी सोनिया की उम्र लगभग 3 वर्ष थी। अपने जीवन में आए उस तूफ़ानी घटना से बुआ इतना आहत हुई थी कि कई दिनों तक बिस्तर से उठी ही नहीं। न कुछ खाया, न पिया, न स्नान किया। बस यूँ ही बिस्तर पर पड़े-पड़े विलाप करते रहती। अपनी माँ को रोता देख तीनों बच्चे भी बिलखने लगते। पास पड़ोस के लोगों ने इस विकट परिस्थिति में बुआ के बच्चों की देख रेख की तथा बुआ को ढाढ़स बँधाया, “देख जगिया, अगर तू इस तरह अपना देह छोड़कर रोएगी तो इन तीनों बच्चों को कौन सँभालेगा?” पड़ोस में रहने वाले बुआ के लालचंद काका ने कहा। वैसे तो जगिया बुआ को बहुत लोग सांत्वना देते थे, पर लालचंद काका की बातों में इतना असर था कि बुआ झटपट बिस्तर से उठी और अपने आँसू पोंछ लिए तथा अपनी तीनों संतानों को बाँहों में भर कर गले लगा लिया। तब से बुआ दिन रात खेती-बारी, मेहनत-मज़दूरी करके अपने बच्चों का भरण-पोषण करती आ रही थीं। 

कुछ दिन पहले ही बुआ की तबीयत ख़राब हुई है। डॉक्टर ने बताया, उन्हें अस्थमा (दमा) हो गया है। यह बात बुआ के दोनों बहुओं को पता है। वे दोनों अब बुआ के पास नहीं जाती हैं, न अपने बच्चों को ही जाने देती हैं। दूर-दूर से ही खाना-पानी देकर चली जाती हैं। जब से बीमारी का पता चला है, बुआ की हर तरह से उपेक्षा ही की जाती है घर में। इतना ही नहीं, अब बुआ के दोनों बेटे भी अपनी माँ की बातों पर उतना ध्यान नहीं देते। अब बुआ अंदर ही अंदर बीमारी और घरेलू उपेक्षा, दोनों से लड़ाई लड़ रही है, बिस्तर पर पड़े-पड़े। वे अब रात दिन ईश्वर से गुहार लगाती हैं, अपने मौत की याचना करती हैं कि हे ईश्वर! अब मुझे इस दुनिया में नहीं जीना, किसके लिए जीना, और क्यों जीना? अब मुझे मौत दे दे। 

बुआ की बेटी सोनिया अब दो बच्चों की माँ है। ससुराल में अपने पति के साथ रहती है जैसे-तैसे, क्योंकि उसका पति शराबी है। बुआ ने अपनी हैसियत के अनुसार घर-वर ढूँढ़ा, केवल कमाऊ-खाऊ। उसके पास कोई चल–अचल सम्पत्ति नहीं है। जो भी मेहनत मज़दूरी करके दिन भर कमाता है, शाम को शराब पीकर नशे में धुत्त होकर घर आता है। उसके बाद शुरू होती है सोनिया के घर महाभारत का दुर्योधन चीर-हरण-लीला। यह लीला एक दिन की नहीं है, लगभग हर रोज़ की है। तंग आ गई है सोनिया इससे। ससुराल की इस दुरावस्था को झेलती हुई सोनिया कभी-कभार अपने मायके आती है अपने माँ के पास, तो माँ को अपना दुखड़ा सुना फूट-फूट कर रोती है। यह देखकर बुआ की दोनों बहुएँ अंदर ही अंदर ख़ूब जलती हैं और ख़ुश भी होती हैं। यह बात उनके चेहरे के भाव से समझ में आती है। सोनिया के मायके में भी ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो उसके जले पर मरहम लगा सके। कभी ऐसा नहीं हुआ कि दोनों भाभियों ने कहा हो या दोनों भाइयों ने कहा हो कि ‘कोई बात नहीं, हम लोग हैं न।’ लोग सही कहते हैं कि एक दुखिया ही दूसरे दुखिया का दर्द समझ सकता है। माँ–बेटी आपस में बातें कर अपने मन का बोझ हल्का करतीं और कुछ देर तक अपनी अंधियारी दुनिया में खोई किसी उजाले की तलाश करती रहतीं हैं। 

एक दिन जब सोनिया अपनी माँ के पास बैठी थी, बुआ ने अपने दोनों बेटों और बहुओं को सुना करके कहा—अजी! मुझे जो वृद्धा पेंशन के पैसे मिलते हैं उसे मैं सोनिया को दे दूँगी। इससे ज़्यादा नहीं तो, इस बेचारी के नमक तेल का तो ख़र्चा हो सकेगा। यह सुनते ही बुआ के बेटों और बहुओं के चेहरे के रंग उड़ गए। दोनों बेटों ने एक स्वर में कहा, “तुम्हारा इलाज कैसे होगा?” फिर बड़ी बहू ने कहा, “खाना बनाने के लिए और देने के लिए, नौकरानी ढूँढ़ लेना, मैं नहीं देने वाली, समझी! सोनिया अपने ससुराल में रहे, अपना घर गृहस्थी सँभाले, जो उसकी क़िस्मत में था, वह हुआ। अब यहाँ उसका कोई हक़ हिसाब नहीं है। आपका जमाना लद गया। जो पहले चला सो चला, अब नहीं चलने वाला। समझी!” अपने बेटे और बहू के ऐसे व्यंग्य बाण के प्रहार से बुआ के हृदय छलनी-छलनी हो रहे थे और माथा सुन्न होता जा रहा था। अब बुआ कहे तो क्या कहे। वह चुप्पी साध ली। पति उत्पीड़न से व्यथित सोनिया के लिए यह सब कुछ जले पर नमक छिड़कने का काम कर रहा था। 

बात ऐसी भी नहीं कि बुआ के पास कोई अचल सम्पत्ति नहीं है। उनके पास लगभग एक एकड़ ज़मीन है। वह भी काफ़ी उपजाऊ भूमि है। अच्छी ख़ासी उपज होती है। बुआ के पास शादी के समय के ही कुछ सोने-चाँदी के ज़ेवर भी हैं। फिर भी, उनके बेटों की निगाह वृद्धा पेंशन पर ही रहती है, जो तीन सौ रुपए प्रतिमाह के हिसाब से मिलती है, पर मनोहर लाल और धरोहर लाल के लिए वह तीन हज़ार से कम की राशि नहीं दिखती है। लगता है, उस घर का सारा ख़ज़ाना बुआ के वृद्धा पेंशन में ही गड़ा है। पर बुआ ने फ़ैसला कर लिया है, चाहे जो हो, वृद्धा पेंशन तो अब सोनिया को ही दूँगी। 

बुआ को एक साथ तीन महीने की पेंशन मिली। बुआ ने सोनिया को रुपए भिजवा दिए हैं। यह बात बुआ के बहुओं को रास नहीं आई और उन्होंने बुआ का खाना-पानी बंद कर दिया है। अपनी माँ के पैसे भेजने की ख़बर से मनोहर लाल और धरोहर लाल भी रुष्ट है। इसलिए उन दोनों ने भी अपनी माँ की कोई खोज-ख़बर नहीं ली है कि तुमने खाना खाया है कि नहीं। 

आज बिना खाए बुआ का दूसरा दिन है, जब अपने बड़े बेटे के दरवाज़े के सामने सड़क के पास बैठी अपने पोते से एक लोटा पानी माँग रही है। प्यास से उसका गला सूखा जा रहा है। उधर सोनिया ने ‘घरेलू उत्पीड़न’ को सहते-सहते तंग आकर, अपने पति पर ‘घरेलू उत्पीड़न’ का मुक़दमा दायर किया है और अपने भाइयों और भाभियों से उपेक्षा की मार खाकर ‘बंटवारे’ की। फ़रियाद अभी बाक़ी है। 

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टिप्पणियाँ

जस राज जोशी 2022/01/30 05:07 PM

आजकल लड़कियों को मां के द्वारा अच्छे संस्कार नहीं मिलते है, जब यह लड़की बहू बनकर ससुराल जाती है तब सास-ससुर को पराया समझकर उन्हें दुःख देती रहती है ! लड़कियों की मां अपनी लड़कियों को भड़काकर उनके ससुराल में महाभारत मचाती रहती है ! उस वृद्ध दम्पति [सास-ससुर] की मौत ही उन्हें इस जिल्लत भरी ज़िन्दगी से छुटकारा दिलाती है ! इस कहानी में सीमाजी ने तथ्यों को प्रस्तुत करने में बहुत ईमानदारी बरती है ! - जस राज जोशी 'लतीफ़ नागौरी'

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