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हेडमास्टर

“मैडम हमारे यहाँ छात्रों की उपस्थिति कुछ कम है पर हम लोग प्रतिदिन समय से स्कूल आते हैं और छात्रों को पढ़ाते लिखाते हैं।” स्कूल विज़िट करने आई मैडम से एक शिक्षक ने कहा। मैडम उस शिक्षक की बातों को सुनते हुए सीधे हेडमास्टर साहब के ऑफ़िस में दाख़िल हुईं। मैडम को हेडमास्टर ऑफ़िस में प्रवेश करते देख दो शिक्षक पीछे से दौड़े। कहने लगे, “मैडम जी! हमारे हेडमास्टर ऑफ़िस से इसी तरह हमेशा ही ग़ायब रहते हैं। प्रतिदिन आना, हाज़िरी बनाना और फिर स्कूल से तुरंत चले जाना उनकी आदत है। जब हम लोगों में से कोई पूछता है कि कहाँ जा रहे हैं? तो बड़े गंभीर मुद्रा में कहते हैं—प्रखंड में मीटिंग है। कभी कहते हैं, ज़िला में विभागीय मीटिंग है। वैसे भी, आप लोगों को क्या मतलब। मेरे ज़िम्मे बहुत सारा काम है।”

एक दिन एक शिक्षक ने पूछा, “सर आपको कल ज़िला मीटिंग में क्या बताया गया?”

“तू तो बड़ा बदतमीज़ है,” हेड मास्टर साहब ने कहा। 

“सर, इसमें बदतमीज़ी की क्या बात है,” शिक्षक ने कहा।

“तू जानता नहीं कि मेरे सिग्नेचर से तुम्हें वेतन मिलता है? अगर अगली बार से फिर इस तरह का ऊटपटांग सवाल किया तो मैं अबसेंटी काट कर विभाग को भेजूँगा।” हेडमास्टर ने रूखाई से कहा।

हेडमास्टर साहब की बात स्कूल के अन्य शिक्षकों को बुरी लगी। सबने कहा, “सर, हम लोग भी इस स्कूल के शिक्षक हैं, इसलिए हमारा भी हक़ है स्कूल की गतिविधियों के बारे में जानना।”

ये सारी बातें हरीश सर ने एक ही साँस में मैडम जी से कह सुनाईं।

मैडम ने अपने मोबाइल से हेडमास्टर साहब को फोन लगाया, “हेलो! मैं सुपरवाइज़र बोल रही हूँ। कहाँ हैं आप?”

“जी, मैडम जी! नमस्ते!” उधर से आवाज़ आई।

मैडम जी ने कहा, “नमस्ते! कहाँ हैं आप?” मैडम ने अपने सवाल दोहराए। 

“जी मैडम जी बस, आ ही रहे हैं। रास्ते में हैं।”

मैडम ने घड़ी की तरफ़ नज़र दौड़ाई और कहा, “देखिए, इस समय 11:45 हो रहे हैं। आप स्कूल के प्रधान शिक्षक हैं, यदि आप ही इतनी देर से आएँगे तो इस स्कूल की व्यवस्था कौन देखेगा और इसी में मध्याह्न भोजन योजना की भी देखरेख करनी हैं। इसके अतिरिक्त पोशाक योजना, छात्रवृत्ति योजना आदि कार्य हैं।”

स्कूल के आसपास एक बहुत बड़ा बग़ीचा है। जिसमें शाम के समय बच्चे विभिन्न प्रकार के खेल खेलते हैं। स्कूल परिसर में एक पकड़ी का वृक्ष है, जो विशाल तो नहीं कहा जा सकता, परंतु है बहुत छायादार। जिस की छाँव में मध्यांतर में स्कूल के बच्चे धमाचौकड़ी मचाते हैं। वैसे तो इस स्कूल में वही बच्चे आते हैं जो गाँव में रहने वाले ग़रीब बस्ती के हैं और इसलिए आते हैं कि थोड़ी-बहुत ज्ञान के साथ-साथ दोपहर का भोजन भी मिल सके। नहीं तो इस अव्यवस्थित स्कूल में कौन आता। शौचालय के नाम पर एक रद्दी शौचालय और पानी के नाम पर जल-जमाव वाला चापाकल; जिसमें कभी स्वच्छ पानी नहीं निकलता। गाँव के जो थोड़े से संपन्न व्यक्ति हैं वे अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में दाख़िला दिलाते हैं। अमीर लोगों की तो बात ही अलग है।

स्कूल विज़िट करने आई मैडम जी ने बेसब्री से हेडमास्टर साहब के आने की राह देखने लगीं। कुछ देर बाद लगभग 12:00 बजे हेडमास्टर साहब आए। आते ही अपने कार्यालय की तरफ़ तेज़ी से बढ़े। जहाँ पहले से ही मैडम जी बैठी थीं। मैडम जी ने सवाल किया कि क्या इतनी ही देर से प्रतिदिन स्कूल आते हैं? मैडम के इस सवाल के जवाब में हेडमास्टर ने सिर्फ़ टुकुर-टुकुर उनकी ओर देखने के सिवा कोई उत्तर नहीं दिया।

मैडम ने दूसरा सवाल किया, “क्या आप प्रतिदिन बच्चों की उपस्थिति दर्ज कर रिपोर्ट आगे भेजते हैं?”

हेडमास्टर फिर मौन!

मैडम ने फिर सवाल किया, “क्या आपने छात्र-छात्राओं की सूची, पोशाक एवं छात्रवृत्ति योजना हेतु तैयार कर ली है?”

मैडम सवाल पर सवाल किए जा रही थीं, परंतु जवाब के नाम पर हेडमास्टर साहब ने आज बिना तिथि के ही मौनव्रत धारण कर रखा था, या फिर ऐसा जान पड़ता था कि हेडमास्टर साहब को किसी अदालत के वकील ने सिखाया हो कि जो समझ में आए तो बोलना नहीं तो मौन ही रहना। तभी उस स्कूल के एक शिक्षक ने बड़े ही मनोरंजक ढंग से कहना आरंभ किया:

“मैडम जी मैं अगर ग़लत बोलूँ तो कुत्ता काटे, दरअसल बात यह है कि यहाँ छात्रों की उपस्थिति एक दिन बाद बनती है। आज की उपस्थिति ख़ाली छोड़ दी जाती है। कल वाली आज बनती है और आज वाली आने वाले कल। ताकि छात्रों की संख्या को बढ़ाया जा सके और इसी आधार पर मध्याह्न भोजन योजना का लाभ उठाया जा सके। और तो और, यहाँ गाँव वाले कई बार हमारे हेडमास्टर साहब को मारने के लिए लाठी लेकर आ जाते हैं।”

मैडम ने पूछा कि ऐसा क्यों करते हैं गाँव वाले? उनकी नाराज़गी का क्या कारण है?

इस पर शिक्षक ने कहा, “मैडम जी गाँव वाले इसलिए रुष्ट हैं कि आज चार साल से इस स्कूल में पढ़ने वाले उनके बच्चों को न पोशाक योजना का लाभ मिला है और ना ही छात्रवृत्ति योजना का। इतना सब होने के बाद भी मध्याह्न भोजन योजना के अंतर्गत स्कूल में बनने वाला दोपहर का भोजन भी एक दिन बनता है तो दूसरे दिन किसी न किसी बहाने से नहीं बनता है। गुप्त सूत्रों से पता चला है कि हमारे हेडमास्टर साहब हेडमास्टरी के लिए चालीस हज़ार रुपए शिक्षा विभाग को रिश्वत दिए हैं। जिसकी भरपाई मध्याह्न भोजन योजना से करना चाहते हैं और कर भी रहे हैं। जिस दिन स्कूल में दोपहर का भोजन नहीं बनता है उस दिन मध्यांतर के समय ही आधे से अधिक बच्चे घर भाग जाते हैं, किन्तु जो बचते हैं छुट्टी के समय हेडमास्टर साहब मुर्दाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए स्कूल से बाहर निकल जाते हैं।”

एक अन्य शिक्षक ने कहा, “मैडम जी, एक दिन तो हद हो गई, जब स्कूल में शिक्षा पदाधिकारी साहब आए थे। उन्होंने हमारे हेडमास्टर साहब से कहा कि छात्र उपस्थिति पंजी लाइए, भंडार पंजी लाइए, कैश बुक, लेजर बुक सब लाइए। इस पर हेडमास्टर साहब ने कहा कि ये सभी पंजी मध्याह्न भोजन योजना पदाधिकारी के पास है। जब वे मध्याह्न भोजन योजना पदाधिकारी को फ़ोन लगाने लगे तो हमारे हेडमास्टर साहब शिक्षा पदाधिकारी से बोले कि ये सभी पंजी हमारे घर पर है। तब साहब ने पूछा, ’घर पर क्यों है? आपका घर कार्यालय है क्या? कार्यालय स्कूल में है, यहाँ पंजी रहना अनिवार्य है। अगर इस तरह की बात है तो हम निश्चित तौर पर आप पर मध्याह्न भोजन योजना में अनियमितता का रिपोर्ट ज़िला में अभी करते हैं।’ इस पर हमारे हेडमास्टर साहब भयभीत हो रोनी सूरत बनाए साहब की ओर देखने लगे। तत्पश्चात सांकेतिक भाषा में उनसे कुछ कहा। इसके बाद शिक्षा पदाधिकारी उठकर स्कूल के बाहर पकड़ी के वृक्ष की ठंडी छाँव में चले गए। उनके पीछे हेडमास्टर साहब भी गए। हम सबको वहाँ जाने की इजाज़त नहीं मिली। हम लोग वर्ग कक्ष में चले गए, परंतु उन दोनों को दूर से ही देखते रहे तथा मन ही मन यह सोचते रहे कि शिक्षा पदाधिकारी की इस रूखाई और सख़्ती से अब शायद स्कूल की व्यवस्था सुधर जाए, परंतु हम लोगों ने देखा कि अभी कुछ देर पहले जिस प्रकार शिक्षा पदाधिकारी के तेवर थे, अब बिल्कुल बदले हुए थे, परंतु हेडमास्टर साहब का चेहरा रुआँसा ही था, पर उनके चेहरे पर किसी प्रकार का भय नहीं दिखाई दे रहा था। शिक्षा पदाधिकारी ने हँसते हुए अपने ड्राइवर से गाड़ी घुमाने के लिए कहा। ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की। रास्ते की ओर घुमाया और उस पर शिक्षा पदाधिकारी साहब बैठ गये। और हम सब की उम्मीद पर पानी फिर गया।”

शिक्षक की बात को बड़े ग़ौर से मैडम सुन रही थीं। वे सुपरवाइज़र का पद सँभालने के बाद पहली बार स्कूल का निरीक्षण करने आई थीं। स्कूल की स्थिति को देख सुन कर हतप्रभ थीं और मन ही मन सोच रहीं थीं कि जब बड़े-बड़े पदाधिकारी इस अव्यवस्था के जड़ में संलिप्त हैं, तो आख़िर शिकायत की भी जाए तो किससे की जाए। फिर भी, मैडम हार मानने वालों में से नहीं थीं। वे हर हाल में व्यवस्था को सुधारना चाहती थीं। छात्रों को उनके हक़ का लाभ दिलाना चाहती थीं। उन्होंने हेडमास्टर साहब से दोस्ताने भाव से कहा, “आपको ही व्यवस्था सुधारनी होगी। आपके मध्याह्न भोजन योजना खाते में राशि हो तो प्रतिदिन स्कूली छात्रों के लिए भोजन बनवाइए। जो सरकारी लाभ पोशाक छात्रवृत्ति आदि के लिए छात्रों की सूची बनानी है उसमें अपने सहक़र्मियों से सहयोग लीजिए, अगर वे भी असमर्थता दिखाएँ या सहयोग करना नहीं चाहते हों, तो आप बेहिचक हमारे कार्यालय में आ जाइए। समय निकालकर मैं आपकी मदद अवश्य करूँगी। रही बात गाँव वालों से अच्छे व्यवहार बनाने की, तो आप उनके नन्हे-मुन्नों को अपनी ही संतान समझिए। उनके पठन-पाठन को सुव्यवस्थित ढंग से चलाइए, जितना आप से हो सके, स्कूली हर योजना का लाभ उन्हें दिलवाइए। गाँव वालों से आपके सम्बन्ध यों ही सुधर जाएँगे।”

मैडम की बात सुनकर हेडमास्टर साहब का मौन व्रत टूटा और वे बड़े शांत भाव से मुस्कुराए और धीमे स्वर में कहा, “जीवन में आज एक नए मानव से मुलाक़ात हुई।”

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टिप्पणियाँ

जस राज जोशी 2022/01/30 04:48 PM

मैं शिक्षा विभाग का सेवानिवृत अध्यापक हूं ! कहानी 'हेड मास्टर' के सभी तथ्य सही लिखे गए हैं ! स्थिरीकरण एरियर का भुगतान मुझे काफी प्रयास करने के बाद [रिटायर होने के बाद]मिला ! ईश्वर जानता है या मैं जानता हूं , कि इस बिल के भुगतान बाबत मैंने कार्यालय में कितने चक्कर लगाये होंगे ! आज उस वक़्त को याद करता हूं मेरे बदन में ठंडी लहर की सिहिरन उठ जाती है ! लेखिका सीमा कुमारीजी से निवेदन है वे आगे भी ऐसे प्रकरणों पर कहानी तैयार कर शिक्षा विभाग में व्याप्त करप्शन पर रोशनी डालती रहें ! - जस राज जोशी निवास - भैरव-भवन, लोड़ो की गली, वीर-मोहल्ला, जोधपुर [राजस्थान].

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