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क्रॉस ड्रेसर

दिखने में अच्छा ख़ासा था एहसास, और अब तो अच्छी ख़ासी नौकरी भी लग गई थी एमएनसी में। माँ को उसकी शादी की फ़िक्र हुई।

“इतनी जल्दी क्या है माँ?” 

“जल्दी, अट्ठाईस का हो गया है तू,” माँ ने अपना फ़ैसला सुनाया जैसे। और फिर दिखाई एक तस्वीर, नीता की, सुंदर, सुशील और पढ़ी लिखी। ना करने का कोई कारण ही नहींं था। फिर नीता शादी करके उसके घर आ गई। नीता का आना उसके जीवन में वैसा ही था, जैसे सुबह को शबनम और भी ख़ुशगवार बना देती है। दोनों की आते ही यूँ जम गई जैसे बचपन के दोस्त हों, चंचल स्वभाव की नीता धीर गंभीर एहसास के जीवन की धुरी बन गई। साल यूँ बीत गया जैसे कुछ दिन बीतते हैं। इस बार नीता ने अपनी माँ के यहाँ पंद्रह दिन जाने का फ़ैसला लिया, उसके कजिन की शादी भी थी, जाना तो एहसास भी चाहता था पर क्लोज़िंग की वजह से उसे छुट्टियाँ नहींं मिल पाई। नीता से मिलने के बाद पहली बार उस से इतने दिन के लिए अलग हो रहा था। 

पहली रात ही वो बेचैन सा हो उठा, वैसे दिन भर में पाँच-छह बार फ़ोन पर बात कर चुका था। पर अकेला घर उसे जैसे काट रहा था। माँ होती तो शायद इतना अकेला महसूस ना होता पर माँ भाई के पास गई थी। उसने नीता को फ़ोन लगाने को फ़ोन उठाया, वक़्त देखा, रात के साढ़े ग्यारह बज गए थे। अब तक तो सो गई होगी। उसने सोचा। फिर कमरे में टहलने लगा। ड्रेसिंग टेबल के पास जाकर रुक गया, नीता के मेकअप के सामान को देखने लगा। कितनी सुंदर लगती है ये बिंदी नीता के माथे पर। फिर अचानक पता नहींं उसके मन में क्या आया कि उसने वो बिंदी अपने माथे पर लगा ली। फिर स्वतः ही उसके हाथ नीता की फेवरेट कलर की लिपस्टिक की तरफ़ बढ़ गए। फिर चूड़ी और साड़ी। अब वो पूरी तरह तैयार हो गया था। किसी नई नवेली दुलहन की तरह। सब कुछ इतना स्वः स्फूर्त हुआ कि एहसास ने ये सोचने का प्रयत्न ही नहींं किया कि हो क्या रहा है। घर के पिछले दरवाज़े से बाहर निकलते हुए भी उसे कोई संकोच नहींं हुआ। पूरा मोहल्ला नींद के आग़ोश में था। 

चलते-चलते वो एक हाईवे पर आ पहुँचा, जो अभी पूरी तरह सोया नहींं था। कुछ दूर चलते ही एक बाइक उसके पास आकर रुका।

“चलेगी क्या मेरे साथ,” पूछने वाले ने शराब पी रखी थी, लगभग उसी की उम्र का लड़का, एहसास को मन में हँसी-सी आई, चेहरे पर मुस्कुराहट। 

लड़का फिर से बोला, “चल आ, पाँच सौ दूँगा तुझे, मैं बिल्कुल अकेला हूँ।” 

“मैं लड़की नहींं हूँ,” हँस कर एहसास बोला। 

“हाँ पता है मुझे, तू सी डी है।” 

“क्या?” 

“क्रॉस ड्रेसर।” 
 
क्रॉस ड्रेसर, ये शब्द उसने पहली बार सुना था। एहसास के लिए जैसे ये किसी रोमांचक कहानी के जैसा था। एक अजीब सी धुन में वो उस लड़के के साथ बैठ गया। अपने रूम में ले जाकर उस लड़के ने पैग बनाते हुए उस से पूछा, “पियोगी?” 

एहसास ने उसके हाथ से पैग ले लिया। दोनों शराब के नशे में खोने लगे। लड़का उसके क़रीब आ गया। धीरे-धीरे उसकी बिंदिया, चूड़ी, साड़ी सब उतारता गया। 

लड़का उसके उतना ही क़रीब आ गया था, जितना वो नीता के क़रीब होता है। फिर भी लड़का उस से उतना ही दूर भी था, जितना दूर वो नीता से उस एक पल में हो गया था। लड़के के लिए यह एक खेल था और वो उस खेल का हिस्सा भर बस। 

सुबह ऑफ़िस में वो बेजान सा था, इस बीच तीन-चार बार नीता का फ़ोन आया, एहसास का मन पश्चाताप से भरा हुआ था। उसे समझ नहींं आया कि ये सब कैसे हुआ? उसने अपने आप से कई बार पूछा पर कोई जवाब नहींं मिला। घर आया तो एक अजीब सी बेचैनी से भरा हुआ था। पश्चाताप तो था पर साथ ही एक अलग उत्तेजना भी। उसने ख़ुद को रोकने की कोशिश की पर नियत समय पर वो फिर से ठीक वैसे ही तैयार हो कर उसी जगह की ओर चल दिया, पर वो लड़का कहीं नहींं दिखा। कुछ देर बाद एक कार उसके पास आ कर रुकी, कार वाले ने दरवाज़ा खोला, एहसास ने अंदर देखा, कोई चालीस एक साल का आदमी अंदर बैठा था, “आजा!” वो बोला। 

“नहींं,” एहसास ने कहा और तेज़ी से डिवाइडर पार कर सड़क के दूसरी तरफ़ चल दिया, उसके कानों में आवाज़ गूँजी, “नखरे करती है टैक्सी।” 

ग्लानि से भर वो वापिस चल दिया। उसे लगा जैसे उसका दिमाग़ काम नहींं कर रहा। ये सब क्या हो रहा है! किस जाल में उलझता जा रहा है वो! 

अगले दिन उत्तेजना और भी ज़्यादा थी, इस बार उसने तैयार होने में वक़्त लिया, पर आज तैयार होते वक़्त नीता की याद नहींं आई, वो अनजान लड़का उस के सामने था। 

सड़क पर चलते-चलते वो काफ़ी आगे निकल आया था, वक़्त रोज़ से ज़्यादा हो गया था। उसे कोई नज़र नहींं आया, अब उसे कोई उम्मीद नहींं थी, वो वापसी को हुआ कि अचानक एक बाइक आती दिखी जो उसके पास आकर रुक गई। 

“कहाँ थे कल तुम?” नाराज़गी और खीझ से भर कर एहसास ने पूछा, ऐसे अधिकार से जैसे कोई प्यार करने वाला प्रेमी या प्रेमिका पूछता है। 

“कल कोई और मिल गई थी जान,” बेशर्म सी आवाज़ में वो हँस कर बोला, “पर तेरे जैसा नमक नहींं था उसमें।” 

एहसास के अंदर कुछ दरक सा रहा था जैसे, लड़का उसे फिर से अपने साथ ले गया। 

खेल चलता रहा। 

एहसास को लगा कि इस खेल का हिस्सा बनना उसकी नियति थी शायद। 

नीता के वापिस आने में सिर्फ़ दो दिन रह गए थे, एहसास की बेचैनी बढ़़ रही थी। इतने कम वक़्त में सब कुछ कितना बदल गया था। वो कैसे सामना करेगा नीता का। उसकी ख़ामोशी पहले से बढ़़ रही थी। 

नीता के आते ही एहसास उस से लिपट गया, किसी बच्चे की तरह। 

“इतना मिस किया मुझे, अच्छा बाबा अब नहींं जाऊँगी इतने दिनों के लिए, अब साँस तो लेने दो, देखो मैं आपके लिए क्या-क्या ले कर आई हूँ।” 

नीता के आते ही सब पहले जैसा हो गया। कुछ दिन बाद माँ भी आ गई, उनके लिए जैसे कुछ बदला ही नहींं था, पर एहसास के लिए बहुत कुछ बदल गया था। हालाँकि ज़िन्दगी वापिस पहले ढर्रे पर आ गई थी, घर, ऑफ़िस, घूमना-फिरना सब वैसे ही था। फिर भी एहसास पहले से भी ज़्यादा चुप रहने लगा। 

“कल माँ का बर्थडे है,” नीता ने याद दिलाया। 

“ओह मैं तो भूल ही गया था।” 

“जानती हूँ, सब मर्द एक से ही होते हैं इन मामलों में,” हँस कर नीता बोली, “क्यों ना माँ को सरप्राइज़ पार्टी दें?” 

“हाँ, बिल्कुल,” एहसास ने कहा, हालाँकि उसके मन में आया कि नीता से कह दे कि सब मर्द एक से नहींं होते। 

अगले दिन एक अच्छे से रेस्तरां में माँ को सरप्राइज़ बर्थडे पार्टी दी। तीनों बहुत ख़ुश थे, उस दिन का वो बेहतरीन समय था। तभी एहसास ने देखा कि सामने के टेबुल पर दो कपल आ कर बैठ गए। एक पल को वो चौंक गया, उनमें से एक वही लड़का था। लड़के ने उसकी तरफ़ देखा नहींं, यूँ एक बार दोनों की सरसरी निगाह मिली, पर ऐसे ही जैसे अक़्सर रेस्तरां में अजनबी लोगों की नज़र मिल जाती है। एहसास को लगा कि उसने उसे शायद पहचाना नहींं, लड़के ने उसे उसी रात वाले रूप में ही देखा था। 

उस रात जब वो बिस्तर पर लेटा तो उसे अजीब सी आवाज़ें सुनाई देने लगी। मानो बिंदिया उसे बुला रही हो, साड़ी उसकी तरफ़ देख खिलखिला रही हो, नेल पॉलिश, लिपस्टिक कुछ गीत जैसा। वो बेचैनी से भरा हुआ था। “मत कर एहसास, निकल इस सब से”! 

फिर वो आवाज़ें सपनों में ढल अलग रूप में आने लगीं। एक दिन एहसास हड़बड़ा कर उठ दिया, उसके ऐसे उठने से नीता की नींद भी खुल गई। 

“क्या हुआ, तबीयत तो ठीक है आपकी, कोई बुरा सपना देखा क्या?” 

“हाँ, बहुत अजीब सा सपना, मैंने देखा कि मैं बहुत छोटा हूँ और माँ और मैं मेरे लिए कपड़े लेने जा रहे हैं। हम बस में हैं और रात बहुत ज़्यादा हो गई है। मैं बस से बाहर सुनसान सड़क पर देख रहा हूँ कि अचानक दुलहन सी सजी एक औरत सड़क पर अकेली जा रही है। वो पीछे मुड़कर देखती है तो उसका चेहरा बिल्कुल मेरे जैसा है। फिर एक पल में ही वो, तुम में बदल जाती है। इतने में माँ आती है और कहती है कि सब कपड़े ख़त्म हो गए बाज़ार में। अब सिर्फ़ यही फ़्रॉक बची है, अब यही पहननी होगी . . .”


“बड़ा अजीब सपना है,” नीता ने कहा, “पर सपना ही तो है, फिर इसमें भी एक बात अच्छी लगी कि तुम और मैं एक ही शरीर में नज़र आए, शायद ये हमारे प्यार का सूचक है।” 

बात आई गई हो गई। एहसास ने भी धीरे-धीरे ख़ुद को सँभाल लिया। वक़्त के साथ वो अपनी ज़िन्दगी में रम गया। साल बीतते-बीतते वो उस क़िस्से को लगभग भूल ही गया। बारिश की बूँदों की ठंडक और उसके बाद की उमस भरी गर्मी की चुभन हमें बहार के मौसम में नहींं याद रहती। 

नीता माँ बनने वाली थी, रस्म के मुताबिक़ पहले बच्चे की डिलीवरी मायके में ही होनी थी। दोनों बहुत ख़ुश थे, उन्होंने ढेर सारी ख़रीदारी मिल कर की थी। नीता के पापा आए और वो उसे ले कर चले गए। एहसास ने भी हर वीकेंड में आने का वादा किया। 

रात जब आती है तो वो अपने साथ अँधेरा ले कर आती है, पर उस अँधेरे में वो कितना कुछ छुपा लेती है, जो बेहद क्रूर और वीभत्स भी हो सकता है, करुण और मार्मिक भी, और निःस्वार्थ प्रेम स्पर्श भी, हरेक के अहसास अलग-अलग। 

उस रात एहसास उतना बेचैन नहींं था। दिन का ज़्यादा वक़्त उसने भविष्य के सपनों में बिताया था। खाना खाकर वो बेडरूम में आया, ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी बिंदिया ने उसे आकर्षित नहींं किया। कुछ देर वो यूँ ही लेटा रहा फिर उठ कर बाहर चल दिया। हल्की सर्दी थी और उसने ट्रैक सूट पहन रखा था। हाईवे पर लोग आ जा रहे थे, एक दम एहसास को अजीब सा लगा जब एक मोटसाइकिल उसके पास आ कर रुका, सामने उस लड़के को देख कर वो हैरान रह गया। सबसे पहली बात जो उसके मन में आई वो थी, “इसने मुझे पहचाना कैसे?” 

“पहचाना?” लड़के ने पूछा। 

एहसास ने हाँ में सर हिलाया। 

“आओ, बैठो,” और एहसास बिना किसी झिझक के उसके साथ चल दिया। रास्ते में एक ख़ामोशी पसरी रही, हालाँकि एहसास के मन में आया कि उस से पूछे कि उसने उसे पहचाना कैसे, पर वो उस ख़ामोशी के फैलाव के बीच कहीं व्यवस्थित हो गया था जैसे। 

“तुम्हें याद है?” पहला पैग डालते हुए लड़के ने कहा, “एक बार रेस्तरां में हम आमने-सामने बैठे थे, तुम अपनी फ़ैमिली के साथ थे।” 

एहसास को जैसे करंट सा लगा, ’तो उस दिन इसने मुझे पहचान लिया था, पर महसूस नहींं होने दिया,’ उसने सोचा। एहसास अजीब से ख़्यालों में खो गया उसे ख़ुद भी नहींं मालूम था कि उसके मन में क्या चल रहा है। लड़का कुछ ना कुछ बोलता ही जा रहा था, पर एहसास ने जैसे कुछ सुना ही नहींं, फिर वो लड़का एकदम से उसके पास आया और बोला, “तुम मुझ से खुल कर बात कर सकते हो, आख़िर मैं भी तो तुम जैसा ही हूँ।” 

’आख़िर मैं भी तो तुम जैसा ही हूँ’ ये शब्द एहसास के कानों में गूँजे, उसे लगा कि जैसे वो ख़ुद नीता है और वो लड़का एहसास है, और नीता ने अपने एहसास को हमेशा के लिए खो दिया है। 

और वो उस लड़के के कंधे पर सर रख कर ज़ार-ज़ार रो पड़ा . . .  

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