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धरती तेरे कितने रूप

पुस्तक: धरती तेरे कितने रूप
लेखक:  डॉ. राम सुधार सिंह
प्रकाशक: अमृता प्रकाशन 
पृष्ठ संख्या: 258
प्रकाशन वर्ष: 2021
मूल्य: ₹210

आधुनिकता के इस बढ़ते दौर में साइकिल जैसे साधन से यात्रा की कल्पना कठिन कार्य है। साइकिल से लगभग 1700 किलोमीटर की लंबी यात्रा सोचकर के ही हृदय रोमांचित हो जाता है। अब कल्पना कीजिए कि इस कार्य को करने वाले को कितना आनंद आया होगा और उसने कितना साहसिक कार्य किया है। इस आनंद की गाथा धरती तेरे कितने रूप यात्रा-कथा में मिलती है जिसके लेखक डॉ. राम सुधार सिंह हैं। 2 महीने तक चली इस यात्रा की गाथा अपने साथ पाठक को भी यात्रा पर ले जाती है। 

यात्रा का उद्देश्य वहाँ की भौगोलिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक विरासत का अध्ययन करना तो होता ही है पर इस यात्रा में एनसीसी की बटालियन का पर्यावरण संरक्षण और आपसी समरसता सौहार्द के प्रति जन जागरण का संदेश भी इस यात्रा का उद्देश्य रहा है। इस यात्रा वृत्तान्त का एक और महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य यह है कि यह पूरी तरह से डायरी शैली में लिखा गया है।

अब सबसे बड़ा प्रश्न है यह यात्रा वृत्तांत क्यों पढ़ा जाना चाहिए? सर्वप्रथम यह  कि यह यात्रा वृत्तांत साइकिल से होते हुए हवाई जहाज़ की यात्रा तक का सफ़र कराता है जो अपने आप में प्राचीनता और आधुनिकता दोनों को गूँथते हुए चलता है। 

हम यदि अपने देश से प्रेम करते हैं तो उसकी भौगोलिक सांस्कृतिक धरोहर को समझना हमारा परम कर्तव्य है और यह यात्रा इस परम कर्तव्य की पगडंडियों से होकर गुज़रता है।

40 विद्यार्थियों के साथ साइकिल की यात्रा करते हुए वाराणसी से द्वारका तक भारत को जब विद्यार्थी अपनी आँखों से देखता है तो यह भारत को अलग नज़रिए से दिखाता है। पुस्तक के माध्यम से हम जब जनपदों के किसानों और कारीगरों की ग़रीबी और शिक्षा व्यवस्था, उनकी मेहनत, हुनर उनकी कला उनकी सेवा ईमानदारी तथा आपसी सौहार्द सहायता करने का मानवीय गुण इत्यादि देखते हैं तो हृदय में संवेदना और सहानुभूति के जो भाव उत्पन्न होते हैं वह भाव पाठक से सीधे जुड़ जाते हैं। इस कारण से यह यात्रा साहित्य की कसौटी पर पूर्णतया खरा उतरता है।

विंध्याचल की ओर बढ़ते हुए लेखक सोचता है कि विंध्याचल और मैहर के 2 शक्तिपीठों के बीच के क्षेत्र से गुज़रते हुए बेला नदी के पास पहुँचा तो पाया कि पुल को थोड़ा पहले बाँधकर नहर निकाली गई है। इस कारण आगे नदी बिल्कुल सूख गई है। चारों और चट्टानें पसरी हुई नदियों पर बाँध बनाकर उसकी प्राकृतिक गति को रोक देना शायद इन पर सबसे बड़ा अत्याचार है। यह सब विकास के नाम पर किया जा रहा है। यह छोटी नदी भी अपनी स्वाभाविक सुंदरता खोकर उदासीन हो गई है।

गंगा की गति को जीवन से जोड़कर चाहे जो व्याख्या की जाए पर पहाड़ों से टकराती वह जिस जीवंतता के साथ आगे बढ़ती है उसे वही जान सकता है जो निरंतर चलता है। निरंतर चलते हुए हम भी उस जीवंतता को समझ रहे हैं और उसकी टकराहट को भी।

4 किलोमीटर लंबी यात्रा में पड़ने वाले विभिन्न मुश्किलें विभिन्न कठिनाइयाँ और उनसे संघर्ष करता यह यात्री दल 2 दिसंबर को पुनः वाराणसी में अपनी वापसी करता है। इस दौरान होने वाली सभी घटनाएँ लेखक ने अपनी डायरी में तिथि वार लिखी हुई है।

भौगोलिक ज्ञानवर्धन की दृष्टि से यह यात्रा वृत्त अद्भुत है क्योंकि इसमें मात्र भौगोलिक ज्ञान ही नहीं बल्कि उसे उसे देखने की एक साहित्यकार की दृष्टि भी है। मिर्जापुर से गुज़रते हुए पहाड़ियों को देखते हुए रचनाकार कहता है कि मेरा मन हजारी प्रसाद द्विवेदी के कुटज को खोजने लगा मजबूरन इस पलाश से ही मन का नाता जोड़ लिया जिसे जायसी ने बन ढांक कहा है। इस ढांक को बचपन में गाँव में देखा था फिर जायसी में भी टेसू से भरा पलाश देखने को मिला था। इस मौसम में इन पेड़ों पर टेसू नहीं है पर नीचे खेतों की मिट्टी ज़रूर लाल है। जायसी को तो पलाश के लाल टेसू नागमती के रक्त आँसू लगे थे कवि यदि यहाँ की लाल मिट्टी देखता तो इसे वीर बहूटी की जैसी कोई उपमा अवश्य दे देता।

आज़ादी के बाद गाँवों के विकास के लिए न जाने कितनी योजनाएँ बनीं किंतु वे यहाँ तक पहुँच कहाँ पाईं। हाँ सड़कों के किनारे बोर्ड अवश्य लगे हैं आपकी सरकार आपके द्वार, किंतु सरकार तो केवल बड़ों के द्वार को सजा रही है इस द्वार पर तो केवल चुनाव के समय ही आती है।

खजुराहो का वर्णन करते हुए लेखक ऐतिहासिक एवं पौराणिक दोनों पक्षों से गुज़रता है। वह कहते हैं कि रास्ते में देवेंद्र नगर और पन्ना ऐतिहासिक महत्व के स्थान हैं। पन्ना का उल्लेख विष्णु पुराण में भी हुआ है जिससे इसकी पौराणिकता सिद्ध है। पन्ना आने पर परमवीर चंपत राय और उनके पुत्र छत्रसाल की वीरता याद आ गई।

इतिहास का ज्ञान अपने आप में अद्भुत व रोचक है जो यात्रा वर्णन को और रुचिकर बना देता है। चंदेल राजाओं के संदर्भ में लेखक का यह कथन तत्कालीन समय की कलाकृतियों और उसके सौंदर्य को और बढ़ा देता है साथ ही वह स्थल देखने के लिए भी प्रेरित करने लगता है। लेखक कहता है कि चंदेल राजाओं के उत्कर्ष काल में इन मंदिरों का निर्माण हुआ है। श्रेष्ठतम प्रतिमा 950 से 1050 ई. के बीच की है। कहा जाता है कि चंदेलों ने खजुराहो में पचासी विशालकाय वैष्णव तथा जैन मंदिर बनवाए थे किंतु वर्तमान में कुल 20 मंदिर ही शेष बचे हुए हैं। यहाँ के मंदिरों को तीन समूहों में बाँटा गया है पश्चिमी समूह में 64 योगिनी मंदिर चित्रगुप्त मंदिर आदि हैं। कलाकार की दक्षता एवं कुशलता पर आश्चर्य होता है जिसने पत्थरों को सजीव बना दिया।

इस यात्रा वृत्तांत में क्षिप्रा नदी, भारती हरि गुफा गढ़, कलिका मंदिर, सिद्ध वट मंगलनाथ मंदिर आदि उज्जैन के दर्शनीय स्थल देखने को भी मिलते हैं। यात्रा वृत्तांत में लेखक का कवि हृदय भी साथ-साथ यात्रा करता रहा है। कवि मर्म की एक झलक इन पंक्तियों में दिखाई देती है—

पुष्कर मेले में 
अल्हड़ बाला की खिलखिलाती हँसी ताज़गी से भर गई 
वही हँसी तलाशता हूँ 
एक बेचैनी लिए 
पर कहाँ पाऊँ उसे 
इसी द्वंद्व में पैडल मारता रहता हूँ 
इस उम्मीद में कि 
वह हँसी शायद फिर दिख जाए

यह यात्रा वृत्तांत एकांगी नहीं है इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि कवि हृदय के साथ लेखक वैज्ञानिक तथ्य को अपने साथ लेकर चलता है। संपूर्ण भौगोलिक तथ्य और मानवीय संवेदना के साथ इस तथ्य का समावेश इस यात्रा वृत्तांत को श्रेष्ठ बनाता है। वह कहते हैं कि किताब में पढ़ा था कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी चलती है लेकिन यात्रा के अनुभव में पाया कि सूरज तो सुबह से शाम तक हमारे साथ ही चलता रहता है। हवा कभी दुलार देती है और कभी प्रोत्साहित करती है लेकिन जब विपरीत दिशा से चलती है तो उसका ग़ुस्सा देखते ही बनता है। चाहे जितनी चिरौरी की जाए सुनती ही नहीं। रास्ते के पेड़ बच्चों की तरह अचकचा कर देखते हैं फिर सिर हिला कर हौसला अफ़ज़ाई करते हैं।

इस यात्रा वृत्त में लेखक समकालीन समस्या की भी चर्चा करता है जो अपने आप ही मैं पुस्तक के सौंदर्य की भाषा है। लेखक कहते हैं कि एक ओर इतनी बेरोज़गारी है भुखमरी है फिर भी मंदिर–मस्जिद को लेकर इतनी मारामारी क्यों है?

पहाड़ की पुकार लेखक को गढ़ से चंपावत तक ले जाती है। लोहाघाट, असुरचुल, बाणा सुर का क़िला को देखते समय केदारनाथ और मंगलेश डबराल की कविताओं से गुज़रते हुए यात्रा पूर्ण  होती है। इस साथ ही ट्रैकिंग का आनंद भी पाठक को कराता है। अन्य यात्रा वृत्त से अपना अलग मुक़ाम रखता यह यात्रा वृत्त संग्रह में शामिल होने की अद्भुत क्षमता रखता है। 

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