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दोहरा बंधन

देव के कदम तेज़ी से कार पार्क की ओर बढ़ रहे हैं। आज काम पर इतनी देर हो गई कि समय का कुछ पता ही नहीं चला। बेचारी मॉम परेशान हो रही होंगी। उन्हें एक फ़ोन तक नहीं कर पाया। "आज कस के डाँट खाने के लिये तैयार हो जा बेटा देव"। स्वयं से बातें करते हुए उसने कार स्टार्ट कर दी। उधर कैथरीन से भी काम के बाद मिलने का वादा किया हुआ है। "वह मुँह फुला कर बैठी होगी। मॉम को मनाना तो बहुत आसान है मगर कैथी.. उफ़। उसका गुस्सा तो इस समय जाने कौन से आसमान पर होगा"। सोचते हुए देव जैसे ही घर के दरवाज़े पर पहुँचा तो सामने रेखा, उसकी माँ इंतज़ार में खड़ी मिली।

देव मुस्कुराते हुए प्यार से माँ के गले लग गया

"मॉम, आप क्यों ऐसे दरवाज़े पर खड़ी रहती हैं, थक जाती होंगी"।

"हाँ, हाँ कितनी चिंता है माँ की वह तो देख ही लिया है। सारा दिन एक फ़ोन करने की भी फ़ुरसत नहीं मिली तुझे," रेखा बनावटी गुस्से से बोली।

"क्या करूँ, आज योरोप के कुछ क्लाईंटस के साथ मीटिंग थी, बस उसी में थोड़ी देऱ हो गई। चलिये ना बहुत ज़ोर से भूख लगी है माँ। मैं फ़्रेश हो कर आता हूँ आप जल्दी से खाना लगा दीजिये," देव बच्चों की तरह मचलते हुए बोला। कोई इन्सान कितना भी बड़ा क्यों ना हो जाए माँ को देखते ही छोटा सा बच्चा बन जाता है।

"एक तो देर से आते हो और दूसरा घोड़े पे सवार हो कर," रेखा बड़े गर्व से बेटे को प्यार से देखते हुए बोली।

"जानती हैं मामा आज सारा दिन काम में इतना बिज़ी था कि चाय पीने का भी समय नहीं मिला।"

"तो क्यों करते हो इतना काम जो कुछ खाने पीने की भी सुध ना रहे। बीबी आ गई तो यह सब नहीं चलेगा। सोचती हूँ कि अब रोज़ शाम को दरवाज़े पर खड़ी हो कर तुम्हारा इन्तज़ार करने वाली आ ही जानी चाहिये।"

"हाँ मॉम, अब कैथरीन मेरा इन्तज़ार करेगी या मुझसे करवायेगी यह तो समय ही जानता है।"

"कैथरीन?"

"जी मॉम। क्या आप अभी तक नहीं समझीं। मैं और कैथी कितने पुराने दोस्त हैं।"

"हाँ जानती हूँ बेटा कि तुम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हो मगर शादी तो किसी अपनी कम्युनिटी की ही लड़की से करनी चाहिये न।"

"वाह माँ, ये कहाँ का इन्साफ़ है कि प्यार किसी से और शादी किसी और से। कैथरीन ने उस समय मेरा साथ दिया है जब हम बहुत नाज़ुक दौर से गुज़र रहे थे। मेरे लिये उससे अच्छा जीवन साथी और कोई हो ही नहीं सकता। और फिर किसी लड़की से बिना मिले, बिना जाने इस लिये तो शादी नहीं कर सकता ना कि वह मेरी अपनी ही कम्युनिटी की है।"

"मगर बेटे कभी हम अपने देश जायेंगे तो वहाँ मैं क्या कहूँगी किसी को, कि मेरा एक ही बेटा है और उसने भी अपनी मर्ज़ी से गोरी से शादी कर ली। लोग तानें मारेंगे तुम्हारी माँ को।"

"क्यों मॉम? जब हमारा उनकी किसी बात में इंटरफ़ियरेंस नहीं है तो फिर हम अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से क्यों नहीं जी सकते। क्यों हम हमेशा इस बात से डरते रहते हैं कि हमारे रिश्तेदार क्या कहेंगे, जिनसे हम सालों के बाद मिलते हैं? अब आप इन सब बातों के बारे में सोचना छोड़ दीजिए। समय बहुत आगे बढ़ चुका है।"

"लेकिन बेटे माँ के भी तो कुछ अरमान होते हैं न। जब एक बेटा पैदा होता है तो माँ-बाप उसे लेकर ना जाने क्या कुछ सपने देखने लगते है।"

"सपने बच्चे भी देखते हैं माँ। क्या मुझे उन सपनों को पूरा करने का कोई हक़ नहीं जिनमें सिर्फ़ कैथी है? किसी और लड़की के बारे में तो मैं कुछ सोच भी नहीं सकता" देव की आवाज़ थोड़ी ऊँची हो गई।

"पर देव...."

"नहीं मॉम, आप कब यह मानेंगी कि अब यही हमारा देश है जहाँ हम रहते हैं। आप सोचती हैं कि हम कभी इंडिया वापिस चले जायेंगे, नहीं। मैं यहीं पैदा हुआ हूँ, यहीं कमाता खाता हूँ और इसी देश की लड़की से शादी भी करूँगा।"

"लेकिन" ....

"बस माँ, दीदी की शादी का अन्जाम आपके सामने है। मुझे तो बेचारे जीजू पर तरस आता है, जिन्होंने दीदी को कितना प्यार दिया। अगर मेरी पत्नी ने ऐसा किया होता तो मैं अपने घर से न निकलता बल्कि उन दोनों को धक्के दे कर घर से बाहर कर देता। वैसे भी आँखें मूँद कर आपकी पसंद की लड़की से शादी करके मैं जीजू की तरह अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकता। मैं उसीसे शादी करूँगा जिसे मैं बहुत सालों से जानता हूँ।"

बेटे की बातें सुन कर रेखा का चेहरा एकदम उतर गया।

माँ का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह बोला.. "मुझे मालूम है इस समय यह बातें आपको बहुत कड़वी लग रही होंगी। लेकिन बिना सोचे समझे और दबाव में आकर शादी करने से एक नहीं कितने ही ज़ीवन बर्बाद हो जाते हैं माँ।"

"जो जीजू के साथ हुआ है ज़रूरी नहीं कि तुम्हारे साथ भी हो देव"......

"प्लीज़ मॉम समझने की कोशिश करिये। इस बारे में मुझ पर ज़ोर मत डालियेगा। मेरा मकसद आपका दिल नहीं दुखाना नहीं। आप जानती हैं कि मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ, परंतु मेरी ज़िंदगी मुझे मेरे तरीके से जीने दीजिये इसी में हम सबकी भलाई है। मैंने और कैथी ने जल्दी ही शादी करने का फ़ैसला कर लिया है।"

"फैसला जब तुम लोगों ने कर ही लिया है तो मैं कौन होती हूँ कुछ बोलने वाली?"

बोला तो देव जिसे सुन कर रेखा को एक और झटका लगा "और हाँ मॉम जैसे ही हमारी शादी की तारीख पक्की हो जायेगी हम आपको बता देंगे।"

अब अपने ही बेटे की शादी की तारीख पक्की करने में उसकी सलाह की भी किसी को ज़रूरत नहीं रही।

मेरी सलाह की ज़रूरत तो इसके पापा को भी कभी महसूस नहीं हुई थी। अगर मानी होती तो विनी का यह हाल ना होता। आज फिर एक बार बोलने से पहले ही रेखा की ज़ुबान को बंद कर दिया गया था। आगे देव से क्या बातें हुईं उसे कुछ भी याद नहीं। बस एक ही बात उसके दिल पर हथौड़े मारती रही।

"दीदी की शादी का अन्जाम आपके सामने है"।

दीदी, हाँ देव की बड़ी बहन विनी। छोटी सी विनी जब अपनी तोतली आवाज़ में अंग्रेज़ी बोलती तो उसके पापा अतुल की आँखों में एक अजीब सी चमक आ जाती। वह बेटी को अंग्रेज़ी बोलने के लिये और प्रोत्साहित करते। रेखा कुछ विरोध करे उससे पहले ही उसे डाँट कर चुप करा दिया जाता था। बेटी तोतली आवाज़ में अंग्रेज़ी कविताएँ सुनाती तो उन्हें बहुत अच्छा लगता।

अच्छा क्यों न लगता। अतुल जब भारत छोड़ कर ब्रिटेन आए थे तो उस समय यहाँ का वातावरण कुछ और ही था। अंग्रेज़ लोग एशियंस को हीनता की नज़रों से देखते थे। उनके हिन्दुस्तानी एक्सेंट से अंग्रेज़ी बोलने पर मज़ाक उड़ाया जाता था। गोरों को यह भी डर था कि हिन्दुस्तानी लोग मेहनती होते हैं। ये हमसे हमारी नौकरियाँ छीन लेंगे। इतना पढ़े लिखे हो कर भी अतुल ने इस देश में बहुत कुछ सहा ।

सहा तो रेखा ने भी परंतु ख़ामोशी से। सारा दिन फ़ैक्ट्री में काम करने के बाद आते ही वह किचन में लग जाती । एक पल का भी आराम नहीं था उसे। बच्चों के स्कूल की पढ़ाई चाहे मुफ़्त थी लेकिन ऊपर के ख़र्चे भी तो बहुत थे। रेखा रात को बिस्तर पर लेटती तो डर से कराह भी नहीं सकती थी कि कहीं अतुल के कानों में आवाज़ ना पड़ जाये। यही कारण था कि उनके बच्चे जब अंग्रेज़ी एक्सेंट से इंगलिश बोलते तो उन्हें यह सोच कर ख़ुशी होती कि हमारे बच्चे भी अंग्रेज़ बच्चों से कम नहीं हैं। वह तो यही चाहते थे कि जो पीड़ा उन्होंने सही है उनके बच्चे उस से दूर रहें। वह दूर ज़रूर हो गये मगर अपनी भारतीय संस्कृति से।

भारतीय संस्कृति जो बच्चों के लिये किताबों तक रह गई थी। बेटी विनी तो हर प्रकार से अंग्रेज़ी रंग में रँग चुकी थी। क्लबों में जाना, रात देर तक घर से बाहर रहना। माँ रोकती तो कड़ा जवाब मिल जाता, "माँ, आइ एम नॉट ए चाईल्ड। आई कैन लुकआफ़टर माई सैल्फ़।"

हाँ वह अपना कैसा लुकआफ़टर कर रही है यह तो माँ को अपने सामने ही नज़र आ रहा है। विदेशी संस्कृति ने बच्चों को यह शिक्षा ज़रूर दी है कि अपने से बड़ों को कैसे जवाब दिया जाये। जब अपना ही बच्चा माँ-बाप से यह कह दे कि "कितने साल हो गये आप को इंडिया से यहाँ आए लेकिन अभी भी आप वहीं के दकियानूसी उसूल, संस्कार जाने क्या-क्या ले कर चल रहे हैं। प्लीज़ हमें इन दो देशों के दोहरे बंधन में मत बाँधिये। आप भी थोड़ा आगे बढ़िये और हमें भी हमारी ज़िंदगी अपने तरीके से जीने दीजिये। उस समय ख़ामोशी से बच्चों का मुँह देखने के सिवाए कोई और चारा भी तो नहीं होता"।

मुँह दिखाने के डर से ही तो अतुल चाह कर भी कभी वापस इंडिया नहीं जा पाए। उन के समान और भी सैंकड़ों परिवार अपने ही बच्चों के सामने हार मान चुके थे। एक माँ हर मुश्किल का डट के सामना कर सकती है परंतु अपने पेट के जायों के सामने ख़ामोश हो जाने के लिये मजबूर हो जाती है। इस के लिये कौन किसको दोष दे।

दोष तो सारा विनी का भी नहीं था। यह रास्ता भी उसे अपनों ने ही दिखाया था। अब वह अंग्रेज़ी बोलती ही नहीं थी बल्कि अंग्रेज़ों के तौर-तरीके और रंग-ढंग भी अपना रही थी। रेखा का दिल किसी अन्जाने डर से काँप उठता मगर यह उसकी मजबूरी समझो या पति से विरोध का डर जो वह बेटी के भटकते कदम न रोक सकी -

"मॉम मैं दोस्तों के साथ जा रही हूँ आने में देर हो जाएगी।"
"विनी बेटे तुम्हारे सारे ही अंग्रेज़ दोस्त हैं। एक भी बीच में इण्डियन होता तो मुझे तसल्ली रहती," रेखा ने थोड़ा परेशान हो कर कहा।

"ओह मॉम प्लीज़, अब फिर से शुरू मत हो जाना।"

बाप के समान बेटी भी ज़ुबान खुलने से पहले ही रेखा को चुप करा देती।

 चुप होने के स्थान पर काश। उस समय रेखा ने इस बात का विरोध किया होता तो शायद बेटी के घर से बाहर उठते कदमों पर कुछ अंकुश लगा पाती। "कई बार अपनी ही ख़ामोशी मजबूरी बन कर स्वयं पर भारी साबित हो जाती है"।

यह रेखा की मजबूरी ही तो थी जो बेटी को पतन में गिरने से रोक ना सकी। विनी कई बार रातों को भी घर से बाहर रहने लगी थी। हमारे भारतीय संस्कार जिसे पाप समझते हैं वो यहाँ का मॉडर्न कल्चर माना जाता है। जो रेखा के अपने बच्चे बाख़ूबी अपना रहे थे।

अपनाया तो हमें इस देश ने उस दौलत से, जिसने अपने ही बच्चों के सामने हमारे मुँह पर ताले लगा दिये। माना इस देश में रह कर हमने बहुत धन दौलत कमाई है। उस धन दौलत ने हमें दिया क्या, अकेलापन। जो जीवन का सबसे बड़ा श्राप है। जब औलाद होने पर भी कोई अकेला हो। बिमार होने पर कोई पानी देने वाला ना हो तो इससे बड़ा अभिशाप और क्या हो सकता है। जब देखते ही देखते बच्चे बड़े हो जाते हैं तो कितनी ही उम्मीदें माँ-बाप के दिलों में उमंगें लेने लगती हैं।

उम्मीद तो आज एक बार फिर रेखा की टूटी थी। कैसे अपना ही बच्चा यह कह कर चल दिया कि "शादी की तारीख पक्की हो जाने पर आपको बता दिया जाय़ेगा"। जैसे मैं उसकी माँ नहीं शादी में आने वाली एक मेहमान हूँ।

मेहमानों से तो उस दिन घर भरा हुआ था। कितने ख़ुश थे सब लोग। अतुल हीथरो ऐयरपोर्ट गये हुए थे अपने दोस्त प्रमोद और उसके परिवार को लेने के लिये। दोनों दोस्त अब रिश्तेदार जो बनने वाले थे। विनी भी उत्सुक थी संयम.. अपने होने वाले पति से मिलने के लिए। वैसे संयम उसके लिये अन्जान नहीं था। वह देखना चाहती थी कि गोल मटोल सा संयम डाक्टर बन के कैसा लगता है।
भई अच्छा क्यों नहीं लगता। पढ़ा लिखा अठाईस साल का बांका गबरु जवान है संयम।

शादी के बाद विनी को संयम के साथ इतना ख़ुश देख कर दोस्तों को कुछ जलन सी महसूस हुई। जो विनी दिन रात उनके साथ रहती थी, उनपे पैसा लुटाती थी। उसे वह इतनी आसानी से कैसे जाने देते। उन्होंने उसे हिंदुस्तानी दुल्हन कह कर चिढ़ाना शुरू कर दिया। विनी जिसने सदैव स्वयं को अंग्रेज़ समझा, वह अपने लिये हिन्दुस्तानी शब्द कैसे सहन कर सकती थी और वह भी अंग्रेज़ दोस्तों के सामने। साबित करने के लिये उसने फिर से क्लबों में आना जाना शुरू कर दिया। बस दोस्त यही तो चाहते थे।

दोस्तों के चाहने का ख़्याल ना करके यदि विनी ने अपने पति का ख़्याल किया होता तो शायद उसके लड़खड़ाते कदमों को सहारा मिल जाता। कोई अगर मज़बूत हो तो किसी की क्या मजाल जो उसे अपने इरादों से हिला सके। विनी तो शुरू से ही कनफ़्यूज़्ड लड़की थी जो दो संस्कृतियों के झूले में झूल रही थी। उसने तो यह सोचा था कि वह संयम को भी अपने रंग में रँग लेगी।

कुछ रंग इतने पक्के होते हैं कि उन पर आसानी से कोई और रंग नहीं चढ़ सकता। शायद संयम बहुत भावुक इन्सान था। वह नया-नया भारत से आया था। अभी उस पर यहाँ के तौर तरीकों का कुछ प्रभाव नहीं हुआ था। संयम ने सोचा कि धीरे-धीरे अपने प्यार से वह पत्नी को भी बदलने की कोशिश करेगा। वह अपने अतुल अंकल से बहुत प्यार करता था। नहीं चाहता था कि उसके कारण घर में किसी को भी किसी प्रकार की तकलीफ़ हो। शायद विनी ने उसकी इसी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाया था।

फ़ायदा उठाना कभी दूसरों के साथ-साथ स्वयं पर भी भारी पड़ जाता है। संयम सारे दिन का थका हुआ घर आया तो देखता है कि विनी कहीं जाने के लिये तैयार हो रही है।

"हज़ूर की सवारी कहाँ जाने के लिये तैयार हो रही है," संयम ने छेड़ते हुए प्यार से पूछा।

"मैं क्लब जा रही हूँ," विनी बेरुख़ी से बोली।

उसकी बेरुख़ी को नज़र अंदाज़ करके संयम ने बाहें विनी की कमर में डाल कर कहा, "भई हमने तो सोचा था आज की शाम हम अपनी ख़ूबसूरत पत्नी के साथ बिताऐंगे, आज मैं बहुत थका हुआ हूँ विनी ...," इससे पहले कि उसकी बात पूरी होती विनी बेरुख़ी से उसका हाथ झटक कर बोली-
"थके हुए हो तो जा कर सो जाओ। मैं कोई सोलहवीं सदी की पतिव्रता स्त्री तो हूँ नहीं जो रोज़ शाम को घर बैठ कर पति की सेवा करूँगी। अगर तुम्हें सही मायनों में अपनी थकावट मिटानी है तो तुम भी चलो मेरे साथ क्लब।" संयम अभी यहाँ के रंग ढंग से दूर ही था। वह चुपचाप दूसरे कमरे में चला गया।

उस रात तो विनी ने हद ही कर दी थी। बताना मुश्किल था कि "विनी ने कुछ खोया या संयम का संयम टूटा"। आधी रात को नशे में चूर विनी अपने एक शराबी अंग्रेज़ दोस्त के साथ घर आती है।

घर के बाहर कार रुकने की आवाज़ सुन कर सयंम ने जैसे ही दरवाज़ा खोला उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। आज विनी ने विवाहित जीवन की हर हद को पार कर दिया था। वह शराब के नशे में धुत, अपने दोस्त के बदन से चिपकी उस का चुम्बन ले रही थी। दरवाज़ा खुलने की आहट सुन कर भी वह अलग नहीं हुए। संयम ही इस शर्मनाक दृष्य को और ना देख सका और पलकें झुका कर अंदर कमरे में चला आया। एक ख़ुद्दार पति अपनी पत्नी को किसी परपुरुष की बाहों में कभी भी सहन नहीं कर सकता।

सहन तो विनी भी नहीं कर पा रही थी अपने नशे को। वह लड़खड़ाते कदमों से कमरे में आई।
कमरे मे आते ही संयम सोफ़े से उठते हुए बोले "विनी घड़ी देखी तुमने और इस समय ये कौन था तुम्हारे साथ।"

"मैं तुम्हारे हर सवाल का जवाब देना उचित नहीं समझती। अभी मुझे नींद आ रही है। तुम अपनी वकालत सुबह कर लेना।"

"मैं सुबह तक का इंतज़ार नहीं कर सकता। देखो विनी मैं तुम्हारा पति हूँ और इस तरह तुम्हे पतन में गिरते हुए नहीं देख सकता," सयंम आगे बढ़ते हुए प्यार से बोला।

"नहीं देख सकते तो चले जाओ अपने देश वापिस। तुम्हे रोका किसने है। तंग आ चुकी हूँ मैं तुम्हारी रोज़-रोज़ की रोक-टोक से। इतना तो मेरे पापा ने भी मुझे कभी नहीं टोका था," वह बेरुख़ी से बोली।
"काश। उन्होंने समय पर तुम्हें रोका होता तो तुम्हारा जीवन बर्बाद होने से बच जाता।"

"बर्बाद तो तुमने कर रखा है मेरे जीवन को। तुमसे शादी का मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारी गुलाम हो गई हूँ और अपने दोस्तों को छोड़ दूँ। और हाँ, इस समय मैं तुम्हारा भाषण सुनने के मूड में नहीं हूँ समझे," वह लड़खड़ाते हुए बोली।

समझ तो संयम को नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। इस तरह रात को वह कोई तमाशा खड़ा करना नहीं चाहता था। पति के होते हुए पत्नी आधी रात को नशे की हालत में किसी परपुरुष को घर ले कर आये। एक पति के लिये इस से ज़्यादा शर्मनाक बात कोई हो ही नहीं सकती। वैसे भी आज कल विनी की हरकतों से वह काफ़ी परेशान रहने लगा था। विनी बात-बात पर उससे झगड़ने का बहाना ढूँढती रहती जो वह उसे नीचा दिखा सके। वह जब देखो कटाक्ष करती....

"तुम भारतीय कितने भी पढ़-लिख क्यों ना जाओ लेकिन रहोगे देहाती ही। आज ज़माना कितना तरक्की कर रहा है, और तुम वही अपने पुराने उसूलों में भटक रहे हो। यहाँ हर कोई अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीता है मिस्टर। मैं आज़ाद ख़्यलात की लड़की हूँ। तुम मुझे बाँध कर नहीं रख सकते।"

बंधा हुआ तो संयम था। एक तरफ़ अपनी पत्नी से और दूसरी ओर अपने विचारों से अपनी संस्कृति से। वह दोनों को ही नहीं छोड़ सकता था।

कभी दूसरों को ख़ुश करने के चक्कर में इन्सान अपना सुख चैन खो देता है। सयंम अभी तक पापा और अतुल अंकल की दोस्ती के कारण ख़ामोश था। उसे विश्वास था कि एक दिन विनी को भी इस बात का एहसास हो जायेगा कि वह किसी की ब्याहता पत्नी है। मगर नहीं, वह कितना ग़लत था। विनी बहुत आगे निकल चुकी थी। उसमें सुधरने के कोई लक्षण ही दिखाई नहीं दे रहे थे। आज तो संयम के संयम ने भी उससे बेवफ़ाई कर दी। वह और अपमान ना सह सका। उस ने बिना किसी से एक शब्द बोले उसी समय हमेशा के लिये घर छोड़ दिया।

संयम ने तो घर छोड़ा मगर अतुल यह दुख ना सह सके। उन्होंने जहान ही छोड़ दिया। जिस दिन उन्होंने बेटी की शादी की बात सोची थी कितना ख़ुश थे।

"रेखा, ये प्रमोद का बेटा संयम कैसा रहेगा हमारी विनी के लिये?" अतुल ने पत्नी से पूछा।

"संयम तो बहुत अच्छा लड़का है लेकिन क्या हमारी विनी वापस भारत जाने के लिये तैयार हो जायेगी?"

"अरे उसे जाने की क्या ज़रूरत है। हम संयम को यहाँ बुला लेंगे। वह डाक्टर है। उसे तो यहाँ किसी भी हास्पिटल में फौरन नौकरी मिल जायेगी।"

"नौकरी तो मिल जायेगी परंतु सोच लीजिये। आप विनी की चाल-ढाल तो देख ही रहे हैं। फिर प्रमोद भाई साहब मानेंगे बेटे को इतनी दूर भेजने के लिये? सबसे बड़ी बात तो यह है कि संयम भारतीय संस्कृति में पला बड़ा है। क्या वह दोनों एक दूसरे के साथ एडजस्ट कर पाऐंगे?"

"तुम औरतें तो यूँही चिंता करती हो। देखना शादी के बाद हमारी विनी भी बदल जाएगी। आख़िर वह मेरी बेटी है। हमें अपने बच्चों पर भरोसा करना चाहिये।"

"इस भरोसे के भरोसे ही तो इन्सान क्या कुछ सोच लेता है"। बस अतुल को यही ग़म ले गया कि प्रमोद ने आँखें मूँद कर यारी निभाई मगर मैंने तोड़ दिया यार का भरोसा। अपने ही दोस्त के साथ धोखा किया है। बस इसी ग़म के साथ उन्होंने पत्नी को छोड़ मौत को सीने से लगा लिया। रेखा ने पति को तो खोया ही वह बेटी से भी हमेशा के लिये दूर हो गई।

अब बेटे से दूर होने का डर उसे सता रहा था। जब अपने पेट की जाई हुई अपनी नहीं रही तो कैथी तो पराई है। अंग्रेज़ है। बिल्कुल अलग माहौल में पली हुई। जब अपने ही बच्चे अपने ना रहे तो दूसरों से क्या उम्मीद की जा सकती है।

किसी उम्मीद के टूटने से कितना दर्द होता है यह रेखा से अधिक और कौन जान सकता है। वह सोचने लगी कि क्या अब बेटे का मुँह देखने को भी तरस जाया करेगी? पोते पोतियों को गोद में खिलाने की हसरत ही रह जायेगी? भारत वापिस भी तो नहीं जा सकती। लोगों के ताने सुनने से तो अच्छा है कि यहीं इसी देश में घुट कर जितनी ज़िंदगी बची है काट ली जाये।

हाँ वह ज़िंदगी ही तो काट रही है जब से यहाँ आई है एक के बाद एक वज्रपात सह कर। जब ख़ुशी से ज़्यादा ग़म मिलें तो उनको सहते हुए इन्सान दर्द का दर्द भी भूल जाता है। पहले देश छूटा फिर पति अब बारी-बारी से बच्चे भी अपना रंग दिखा कर दूर होते जा रहे हैं।

अभी जो हो रहा था वह क्या कम था कि बेटे ने एक और झटका दे दिया। "मॉम आप तो जानती हैं कि कैथरीन माँ बाप की एकलौती सन्तान है। कैथी की मॉम चाहती हैं कि हमारी शादी चर्च में हो। आपको कोई एतराज़ तो नहीं।"

"एतराज़?" रेखा हैरान हो कर बोली। "कैथरीन एक कैथोलिक लड़की है। कैथोलिक चर्च में शादी करने का मतलब जानते हो देव। तुम्हे भी हिन्दू धर्म छोड़ कर कैथोलिक बनना पड़ेगा तभी तुम्हारी शादी उस चर्च में सम्पन्न हो पायेगी। इसका मतलब तुम कैथरीन के लिये अपना धर्म भी छोड़ दोगे।"

"मॉम आप जानती हैं कि मैं धर्म-वर्म को नहीं मानता। मैं एक इन्सान हूँ और इंसानियत ही मेरा धर्म है। फिर कैथोलिक बनूँ या हिंदू रहूँ क्या फ़र्क पड़ता है मॉम, रहूँगा तो आपका बेटा ही ना।"

"अब बेटे भी कब तक रहोगे पता नहीं..."। रेखा ने अपने उमड़ते हुए आँसुओं को पी लिया। "जब तुमने ठान ही ली है तो एतराज़ करके होगा भी क्या बेटा। शादी तुम्हारी है। जैसा ठीक समझो करो," रेखा अपनी उदासी छुपाते हुए बोली।

उदासी बेटे ने तो नहीं देखी हाँ कैथी की नज़र से ना छुप सकी। उसे दोनों के वार्तालाप की भाषा तो ज़्यादा समझ नहीं आई क्योंकि बातें आधी इंगलिश और आधी हिंदी में हो रहीं थीं। फिर भी जो उसे समझना था वह समझ गई।

समझ तो देव नहीं पाया कैथी की बात को। देव कार में बैठने लगा तो कैथी बोली, "देव, मैं सोचती हूँ कि हम पहले मन्दिर में शादी करेंगे फिर चर्च में।"

"क्या........? आर यू मैड कैथी? प्लीज़ तुम कम ही सोचा करो तो अच्छा है। पहले ही हम बजट से ज़्यादा ख़र्च कर रहे हैं और उस पर दूसरी शादी का ख़र्चा। यह तुम्हारे दिमाग में आया भी कैसे? फिर जब मॉम को सब कुछ मंज़ूर है, तुमने देखा कि उन्होंने किसी बात पर भी ऐतराज़ नहीं जताया तो फिर ये सब किस लिये।"

"मंज़ूर है इसीलिये तो" कैथी कुछ सोचते हुए बोली, "तुम औरतों को समझना"... बहुत मुश्किल है" कैथी ने अपने एक्सेंट से वाक्य पूरा कर दिया तो देव मुँह बना कर रह गये।

कैथरीन को रंग-बिरंगी लहंगा चोली में दुल्हन के रुप में सजा देख कर देव मुँह बनाना भूल गये। यह कहना मुश्किल था कि वह भारतीय लिबास में दुल्हन बनीं ज़्यादा सुंदर लग रही थी या चर्च में सफ़ेद गाऊन में लिपटी हुई। दुल्हन किसी भी जाति या धर्म की क्यों ना हो शादी के समय तो रूप निखर ही आता है।

शादी हो जाने के बाद देव और कैथी के कहने पर भी रेखा ने अपनी नौकरी नहीं छोड़ी।

उसने सोचा अगर मैं काम नहीं करूँगी तो इतना लम्बा समय कैसे व्यतीत कर पायेगी। देव और कैथी भी कुछ समय बाद अपने नए घर में चले गये थे। अब तो रेखा ने अकेले रहने की आदत भी डाल ली थी। फिर भी वह एक माँ है। बच्चों के इंतज़ार में कान हर समय दरवाज़े पर ही लगे रहते।

दरवाज़े से अंदर आते हुए कैथी कुछ झुंझला कर बनावटी गुस्से से बोली "जल्दी करो देव तुम तो मैथ्यू से भी छोटे हो। तैयार होने में इतनी देर करते हो।"

"अरे मॉम के घर ही तो जाना है," देव जैकेट पहनते हुए बोले।

"हाँ, तो मॉम के घर भी समय से पहुँचना चाहिये जनाब। जानते नहीं कि आज दीवाली है। माम बेचारी अकेले ही सारा काम कर रही होंगी।"

"तो वहाँ जाकर भी तुम कौन सा काम करने वाली हो," देव ने छेड़ते हुए कहा।

"आपकी तरह नहीं कि वहाँ पहुँचते ही छोटे बच्चे की तरह टी.वी. के सामने पसर जाओ और मम्मा पे हुक्म चलाने लगो, ’मॉम एक कप चाय मिलेगी प्लीज़’।"

"अरे हाँ चाय से याद आया इस बार तुम मॉम से अच्छी चाय बनाना ज़रूर सीख लेना," कैथी ने तकिया उठा कर ज़ोर से देव की ओर फेंका जिसे हँसते हुए देव ने रास्ते में ही रोक लिया। जब भी मम्मा के घर जाना होता कैथी और देव की पहले से ही छेड़छाड़ शुरू हो जाती।

छेड़छाड़ का मज़ा तो रेखा भी भरपूर लेती जब बच्चे घर पर होते। वह हमेशा बहु का साथ देती तो देव चिढ़ जाता। रेखा वैसे तो दीवाली की तैयारियों में बिज़ी है मगर कान दरवाज़े पर पोते की आवाज़ सुनने के लिये लगे हुए हैं।

"दादी माँ बाहर से ही मैथ्यू की आवाज़ आई तो रेखा लपक कर दरवाज़े की ओर बढ़ी। घर तरह तरह के पकवान व सुगंधों से भरा हुआ था।

"हैपी दीवाली मॉम।"

"बड़ी देर कर दी बच्चो" रेखा प्यार से बोली।

"इटस डैडी, दादी माँ।"

"तुम्हारे डैडी तो हैं ही लेज़ी।"

"यैह।" मैथ्यू ताली बजा कर डैडी को चिढ़ाते हुए बोला तो देव उसके पीछे भागने लगे मारने के लिये। बच्चे यही तो चाहते हैं।

"अरे भई इतनी अच्छी ख़ुशबूऐं आ रही हैं। मेरी तो भूख तेज़ हो रही है। चलो मॉम जल्दी से पूजा की थाली तैयार करें," कैथी रेखा को रसोई घर की ओर ले जाते हुए बोली।

"जानती हूँ खाना देख कर तुम लोग सब कुछ भूल जाते हो," रेखा हँसते हुए पूजा की थाली सजाने लगी तो कैथी उनके हाथ से थाली ले कर बोली- "मॉम आज थाली मैं सजाऊँगी। आप मुझे बताईये क्या क्या रखना है।" कैथी ने रेखा की सहायता से एक बड़ी सी थाली में रंगबिरंगी रंगोली भी बनाई। रंगोली देख कर मैथ्यू भी उसमें और रंग भरने लगा। बच्चों को तो वैसे भी रंगबिरंगी चीज़ें आकर्षित करती हैं।

आकर्षित तो कैथी को दूर पड़ी मिठाई कर रही थी। रेखा किचन से पटाके और मिठाई ले कर आई तो कमरे में बहू कहीं दिखाई नहीं दी। "अरे यह कैथी कहाँ चली गई? अभी तो उसे बड़ी ज़ोर से भूख लगी हुई थी।"

"उसकी मत पूछो मॉम, उसे तो यहाँ आते ही भूख लग जाती है।"

"मैं सब सुन रही हूँ आप ममा से मेरी जो भी शिकायत कर रहे हैं," कंप्यूटर रूम से कैथी बोली जहाँ से संगीत की आवाज़ आ रही थी।

"मॉम आरती शुरू होने वाली है जल्दी से पूजा के लिये तैयार हो जाईये। और हाँ, आज पूजा मैं करूँगी।"

"तुम कैसे करोगी? नहीं, नहीं पूजा मॉम को करने दो। तुम्हें नहीं आती करनी," देव जल्दी से बोले।

"अरे भई नहीं आती तो मैं सिखा दूँगी। पूजा घर की बहू ही करती है बेटा।"

कैथी ने देव को जीभ दिखा कर पूजा की थाली अपने हाथ में ले ली और पास ही सोफ़े पे रखे स्कार्फ़ से अपना सिर ढक कर जैसे-जैसे ममा ने बताया बड़ी लगन से वह पूजा करने लगी।

इतने में दूसरे कमरे से कम्पयूटर पर संगीत के साथ "ओम जय जगदीश हरे", आरती शुरू हो गई। कैथी भी अपने अंग्रेज़ी एक्सेंट में आरती के साथ स्वर से स्वर मिला कर गाने लगी। पोते ने आगे बढ़ कर सबके माथे पर चंदन का टीका लगाया। देव मुस्कुराते हुए ख़ामोशी से ताली बजाते रहे।

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